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शेखावाटी (राजस्थान ) की धरती पर साकार हुई ईश्वर सृष्टि की कल्पना

राजस्थान के सीकर के पास चारों ओर खेतों से घिरी 9 एकड़ की जो जगह कल तक वीरान पड़ी थी वो आज ईश्वर सृष्टि के नाम के एक ऐसे प्रकल्प की साक्षी बनी हुई है जहाँ का विशुध्द प्राकृतिक वातावरण देखकर ईश्वर की सृष्टि का सुखद एहसास होता है।

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इस ईश्वर सृष्टि में आज सैकड़ों पेड़ पौधे लहलहा रहे हैं। चारों ओर हरियाली है और 42 गायों की गौशाला है। यहाँ आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्सा का केंद्र है जहाँ देश भर से लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए आ रहे हैं। ईश्वर सृष्टि की इस कल्पना को साकार कर दिखाया है मुंबई के श्री कमलेश पारीक ने।

आप बस कल्पना ही कर सकते हैं कि इस उजाड़ जमीन को एक रमणीय प्राकृतिक केंद्र में बदलने में कमलेश जी पारीक ने किस मुसीबत का सामना नहीं किया होगा। वे काम की चलाश में मुंबई चले गए तो लोगों ने इस जमीन पर कब्जा कर लिया। लोगों से कब्जा हटवाया तो यहाँ निर्माण कार्य को लेकर क्षेत्रीय असामाजिक तत्वों ने हर तरह के रोड़े अटकाए। कोई चाहता था कि काम का ठेका उसे मिले तो कोई सप्लायर चाहता था कि सारा सामान उसके आदमी के यहाँ से खरीदा जाए। कमलेश जी ने अपनी तिकड़म से इन सब बाधाओं से पार पाया और आज ये जगह सीकर की एक पहचान बन गई है।

इसका निर्माण पूरा होते ही कोरोना का कहर आ गया और सब-कुछ थम गया, लेकिन कमलेश जी ने हिम्मत नहीं हारी। मुंबई की अपनी सुख सुविधा और सारा कारोबार छोड़कर संन्यस्त भाव से वे यहाँ वृक्षारोपण करने से लेकर इसके विकास में लगे रहे। यहाँ उन्होंने सैकड़ों प्रजातियों के जड़ी-बूटियों, फलों से लेकर नीम, पीपल बरगद आँवला, नींबू, सीताफल आम ,अमरुद आदि के पौधे लगा दिए आज ये सब पौधे पेड़ बन गए हैं।

इस परिसर में शंकर जी का मंदिर भी बनाया गया है जहाँ पारीक जी प्रतिदिन अपने कर्मचारियों और उनके बच्चों के साथ सत्संग करते हैं।

इस हरे भरे प्राकृतिक परिसर में आज आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से लोग स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। यहाँ दस दिन के पैकेज में कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक चिकित्सा, मृदा चिकित्सा, जल चिकित्सा, योग चिकित्सा, पंचकर्म फिज़ियो थैरेपी, अभंग चिकित्सा व शरीर शुध्दि का लाभ लेकर अपनी कई गंभीर बीमारियों का ईलाज करवा सकता है। यहीं पैदा हुई जैविक खेती की सब्जियों का स्वाद आप जीवन भर नहीं भूल सकते। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक आप हर समय प्रकृति से घिरे रहते हैं। चारों ओर छाया गहरा सन्नाटा आपको सुकून और शांति प्रदान करता है।

इसके आसपास चारों ओर चरनोई की भूमि है जहाँ गौशाला की 42 गायें चरती है। इन गायों को खुले शेड में बगैर बाँधे रखा जाता है। इन गायों में सहीवाल. थरपारकर, राठी, नागोरी और गिर जैसी देसी नस्ल की गायें हैं।

जो लोग गाय पालते हैं उनके लिए कमलेश जी ने एक अभिनव योजना भी शुरु की है। उन्होंने गौसेवकों का प्रशिक्षण शुरु किया है। कोई व्यक्ति अगर गाँव में गाय पालता है और किसी काम् से परिवार सहित घर से बाहर जाना चाहता है तो गौसेवक उसके घर पर रहकर उनकी गायों की सेवा कर सकता है। किसी व्यक्ति के यहाँ अगर गाय ने बछड़े को जन्म दिया है और वो बछड़े को नहीं रखना चाहता है तो पारीक जी उसे अपनी गौशाला में लाकर पालते हैं। यदि कोई व्यक्ति गौसेवक को अपने घर पर नहीं रखना चाहता है तो वह अपनी गायों को पारीक जी की गौशाला में लाकर छोड़ सकता है और बाहर से वापस आने पर वापस अपने घर ले जा सकता है।

ईश्वर सृष्टि में भविष्य की योजनाओं को लेकर वे बताते हैं कि मैं इस जगह को एक ऐसा केंद्र बनाना चाहता हूँ जो सनातन संस्कृति का एक गौरवशाली प्रतीक बनकर उभरे। उनकी कल्पना है कि यहाँ ऋषि-कृषि-तंत्र-मंत्र के माध्यम से ऐसा केंद्र आकार ले जहाँ वैदिक विश्वविद्यालय, गौ अनुसंधान केंद्र और ज़डीबूटियों पर शोध, कुटुंब कृषि जैसे प्रयोग हों। इस केंद्र पर वैदिक रीति से विवाह, गर्भ संस्कार के साथ ही वैदिक व सनातन विषयों से जुड़े विषयों पर चर्चा, सेमिनार गोष्ठियों का आयोजन नियमित रूप से किया जाएगा।

वर्ष 2025 तक वे 100 विद्यार्थियों के साथ एक गुरुकुल व ऋषिकुल शुरु करना चाहते हैं जहाँ पढ़ने वाले छात्र को किसी तरह का कोई शुल्क नहीं देना होगा। इस गुरुकुल में पेमेंट लेने के लिए कोई खिड़की ही नहीं होगी। इस गुरुकुल में कर्मकांड, दैनिक वैदिक क्रियाएँ, त्रिकाल संध्या आदि नहीं सिखाई जाएगी। ये सभी क्रियाएँ यहाँ पढ़ने वाले व पढ़ाने वाले आचार्यों के दैनिक जीवन का हिस्सा होंगी। इस संस्थान से होने वाली समस्त आय गुरुकुल को दी जाएगी।

कमलेश पारीक जी इस संस्थान को लेकर कितने समर्पित हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 50 वर्ष की आयु पूरी होते ही उन्होंने इस संस्थान के लिए मुंबई में अपना जमा जमाया कारोबार छोड़कर संन्यास का भाव अपना लिया है। आने वाले 25 सालों तक वे इस संस्थान के विकास में योगदान देंगे और 25 साल के बाद के लिए उन्होंने अभी से अपना त्यागपत्र संस्थान को सौंप दिया है। उनका विश्वास है कि तब तक इस संस्थान से बेहतर लोग जुड़ चुके होंगे और ये हर तरह से आत्म निर्भर हो जाएगा।

उनका मानना है कि वैदिक व सनातन संस्कृति से लेकर गायों के संरक्षण की बात तो हम सब करते हैं लेकिन ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ ये सभी चीजें एक साथ व आत्मनिर्भरता के साथ दिखाई दें। ईश्वर सृष्टि उनकी इसी कल्पना का हिस्सा है।

आज ईश्वर सृष्टि की एक विशिष्ट पहचान बन गई है और यहाँ दिल्ली, मुंबई से लेकर देश के हर स्थान से लोग आ रहे हैं और इस प्राकृतिक वातावरण में स्वास्थ्य लाभ लेकर एक नए जीवन का अनुभव ले रहे हैं।