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पेट के रास्ते संस्कृति का सफ़र : लन्दन

अगर कल को हमारे यहाँ कुछ लोग पिज़्ज़ा या फिर चाउमीन की लोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रीय डिश घोषित करने की माँग करने लगें तो उन्हें इटली के पिट्ठू या चीनी दलाल के ख़िताब से नवाज़ दिया जाएगा . लेकिन हमारा अपना चिकेन टिक्का मसाला ब्रिटेन की राष्ट्रीय डिश बन चुका है . यह एक ऐसी डिश है जो वहाँ महारानी , प्रधान मंत्री से लेकर संतरी तक पसंद करते हैं . एक ख़ालिस भारतीय डिश कब और कैसे ब्रिटेन के लोगों के दिल को इतनी भा गयी इस बारे में खोजबीन काफ़ी मज़ेदार होगी. यह भी मानना पड़ेगा कि ब्रिटिश किसी भी विदेशी प्रभाव या फिर चीज़ को बहुत ही सहजता से अपना लेते हैं .

जब से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत के साथ व्यापार करना शुरू किया , संस्कृति के आदान प्रदान का सिलसिला शुरू हो गया , लोग पढ़ने , सेना के साथ , जहाज़ी बनके या फिर व्यापार के लिए ब्रिटेन जाने लगे . ऐसा ही एक बंगाली प्रवासी शेख़ दीन मोहम्मद 18 वीं शताब्दी में लन्दन पहुँचा था . वह ईस्ट इंडिया कम्पनी के जहाज़ों में काम करते हुए कप्तान के पद तक पहुँच गया था . उसने लंदन पहुँच कर वहाँ का पहला भारतीय रेस्तराँ हिंदुस्तान काफ़ी हाउस खोला . लंदनवासियों को पहली बार भारतीय भोजन का स्वाद शेख़ दीन ने ही चखाया, चिकेन टिक्का मसाला उसके रेस्तराँ की एक ख़ास डिश हुआ करती थी .

1939 के आते आते ब्रिटेन में 6 भारतीय रेस्तराँ हो चुके थे , भारतीय डिशों का स्वाद लन्दनवासियों की ज़बान पर चढ़ने लगा था . 2005 में भारतीय रेस्तराँ के संख्या 8,500 हो गयी . तभी इंडिपेंडेंट समाचारपत्र ने लिखा था कि लन्दन में भारतीय शेफ़ की संख्या नई दिल्ली में काम करने वाले भारतीय शैली के शेफ़ से अधिक है.

चिकेन टिक्का मसाला की अतिशय लोकप्रियता का राज है बिना हड्डी वाले चिकेन को दही और सुवासित मसालों में कुछ समय डुबो कर रखा जाता है , जिसके कारण उनका स्वाद चिकेन में रच-बस जाता है . बाद में तंदूर की आँच में सिक कर उसका स्वाद और उभर कर आता है . बाद में इसे स्वादिष्ट करी में लपेट दिया जाता है . ब्रिटिश और यूरोपीय लोग भारतीयों की तरह से मसाले नहीं खाते हैं उनका ज़्यादातर खाना मसाला रहित होता है , टिक्का मसाला में उन्हें अलग ही स्वाद का एहसास हुआ और उनकी ज़बान को भा गया .

हम शाकाहारियों के लिए पनीर टिक्का मसाला और विगान के लिए टोफ़ू टिक्का मसाला के विकल्प हैं . लंदन में रहने वाले परिचितों की संस्तुति के हिसाब से हमने भी पिछले कुछ वर्षों में वहाँ कुछ ऐसे रेस्तराँ की खोज बीन शुरू की जहां का टिक्का मसाला भारतीय मूल के लोगों में ही नहीं फिरंगियों के बीच भी काफ़ी पसंद किया जाता है .

उदाहरण के लिए ब्रिक लेन को एक लम्बे अरसे से बेहतरीन करी के लिए जाना जाता है. यहाँ नज़रुल, अलादीन या फिर ब्रिक लेन ब्रेसरी इन सब में ज़्यादातर शौक़ीन यूरोपीय नज़र आएँगे .
अभिजात्य कोवेंट गार्डन इलाक़े में उत्तर भारतीय शैली का पंजाब रेस्टोरेंट है जो 1946 से लगातार कार्यरत है . यह एक ही परिवार के स्वामित्व में चला आ रहा है और इस समय उसकी चौथी पीढ़ी कार्य रत है. चिकेन टिक्का इन्होंने 1973 से परोसना शुरू किया. इस रेस्टोरेंट में दाम अभी भी इतने मुनासिब हैं कि जेब को भार नहीं लगता . क्रीमी आरेंज सास और नरम मुलायम नान के साथ उनका चिकेन टिक्का मसाला एक दम हिट है .

जब टिक्का मसाला की बात चली है तो हर्रोड़्स फ़ूड हॉल का भी ज़िक्र करना पड़ेगा . हर्रोड़्स दुनिया का सबसे मशहूर और संभवतः सबसे पुराना डिपार्टमेंटल स्टोर है , वहाँ के फ़ूड हॉल के क्या कहने , आर्ट डेको शैली में क़िसी भव्य संग्रहालय जैसा लगता है, फ़ूड काउंटर पर राजा या रानी की तरह से चिकेन टिक्का मसाला भी बीच में सजा रहता है , लोग बाग यहाँ के चिकेन टिक्का मसाला को भी काफ़ी पसंद करते हैं .

लेकिन यदि मुझसे मेरी पसंद पूछी जाय तो मैं धिशूँग का नाम लूँगा , यह लंदन की सबसे ट्रेन्डी रेस्तराँ शृंखला है , अंदर प्रवेश करते ही आपको लगेगा कि आप छठे या सातवें दशक के बम्बई में आ गए हों . यहाँ अग्रिम सीट बुकिंग नहीं होता , लोग यहाँ के इतने दीवाने है बाहर ठंड के बावजूद लाइन में खड़े हुए अपनी बारी का इंतज़ार करते रहते हैं , कड़कड़ाती सर्दी में आप शरीर को गर्म रखे रहें इसके लिए रेस्टोरेंट का एक कर्मचारी केतली में गर्मागर्म चाय ले कर घूमता रहता है और प्रतीक्षारत अतिथियों को पिलाता रहता है , यह सेवा पूर्णता मुफ़्त है . अच्छी डिश के लिए कुछ तो सब्र से काम लेना पड़ेगा !