1

मंदिर की जमीन पर शॉपिंग मॉल बनाने पर न्यायमूर्तियों ने जताई हैरानी

मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिर की संपत्तियों को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पट्टे (लीज़) पर देने की बढ़ती प्रवृत्ति पर नाराजगी जताते हुए कड़ी फटकार लगाई है।

न्यायमूर्ति टीएस शिवगनम और न्यायमूर्ति एस अनाथी की खंडपीठ ने कहा, “पूजा से सम्बन्ध न रखने वाले, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मंदिर की संपत्ति को पट्टे पर देना विरासत की महत्ता को कम करता है।”

कोर्ट ने दुःख प्रकट करते हुए कहा: “विभिन्न मंदिरों के विरासत मूल्य से बेखबर अधिकारियों ने मंदिर की संपत्ति के साथ-साथ मंदिरों के बरामदे तक को पट्टे पर देकर व्यापारिक गतिविधियों को चलाने का लाइसेंस दे दिया है। जनता इन पवित्र स्थानों पर पूजा करने आती है, लेकिन यहाँ व्यावसायिक दुकानें खोलकर इन स्थानों को शॉपिंग मॉल बना दिया गया है।”

कोर्ट के सुरेश द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में तिरुवनंतपुरम में पद्मनाभस्वामी मंदिर (Padmanabhaswamy Temple) के समान ही अपने धर्मग्रंथों के अनुसार अधिकेशवन मंदिर (Adhikesavan Templ) में दैनिक अनुष्ठानों की बहाली की माँग की गई थी।

याचिकाकर्ता सुरेश ने कहा कि उन्होंने 5 मार्च, 2021 को मंदिर के सम्बंधित अधिकारियों को एक निवेदन पत्र भेजा था, लेकिन उन्होने इस पर कोई कार्यवाई नहीं की।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि इलाके के लोग देवता में अत्यंत श्रद्धा रखते हैं, लेकिन मंदिर की ठीक से देखभाल नहीं की जा रही और न ही शास्त्रों के अनुसार अनुष्ठान किया जा रहा है।

शिकायत का संज्ञान लेते हुए, कोर्ट ने कहा कि इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए केवल हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR & CE) को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि इसके लिए कई लोग जिम्मेदार हैं।

कोर्ट ने एक सूचीबद्ध रिट अपील याचिका का जिक्र करते हुए कहा: ” हमारे सामने एक रिट अपील सूचीबद्ध हुई थी, जिसमें कहा गया था कि वह मंदिर के भीतर एक दुकान चलाने का हकदार है, जबकि दुकान मंदिर की दीवार में सटकर बनी थी। यदि ऐसी स्थिति है तो जाहिर है, मंदिर बिना धन के होगा और और ऐसी सम्भावित दुःखद स्थितियों से बचा नहीं जा सकता है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “इसलिए इसके लिए अकेले मानव संसाधन और विभाग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, बल्कि इस तरह की खेदजनक स्थिति के लिए कई लोग दोषी हैं।”

हालाँकि, कोर्ट ने माना कि यह ये मानव संसाधन और सीई विभाग का कर्तव्य है कि वह मंदिर का रख-रखाव करे और भविष्य के लिए मंदिर के विरासत मूल्य को संरक्षित करे।

अदालत ने याचिकाकर्ता की इस बात से भी सहमति व्यक्त की कि तमिलनाडु के कई मंदिरों में पर्याप्त धन न होने के कारण पूजा नहीं की जा रही है। कोर्ट ने इस तरह के दुखद हालात के लिए उन पट्टेदारों को भी जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने सस्ती दर पर भूमि का पट्टा हासिल किया था।

कोर्ट ने कहा: “हमारे विचार में, ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने इस दुखद परिस्थिति को बनाने में योगदान दिया है, जिसके परिणामस्वरूप मंदिरों को धन की कमी हो गई है, जिसके चलते मंदिर पूजा और अनुष्ठान करने में असमर्थ हैं। इसके कई जिम्मेदारों में से एक मंदिर के पट्टेदार भी हैं, जिन्होनें मंदिरों को किराए या लाइसेंस शुल्क के रूप में मामूली राशि का भुगतान किया और उस मामूली राशि के बदले ये मंदिर की संपत्ति पर अनिश्चित काल तक बने रहना चाहते हैं।”

हालाँकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को प्रार्थना या अनुष्ठान की अनुमति देने से इन्कार करते हुए उसे कोर्ट के बजाय उपयुक्त मंच से संपर्क करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता के पास यह रूपरेखा है कि कैसे अरुलमिघू अधिकेशवन मंदिर को संरक्षित और पुनर्स्थापित किया जा सकता है, तो वह इसका विस्तृत विवरण मन्दिर के प्रतिनिधियों और सम्बंधित अधिकारियों के साथ साझा कर सकता है।”