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चित्रनगरी संवाद मंच में ‘धानी चूनर’ का रस बरसा

रविवार 16 अक्टूबर 2022 को केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की सप्ताहिक बैठक की अध्यक्षता प्रतिष्ठित शायर डॉ सागर त्रिपाठी ने की। डॉ त्रिपाठी ने नवीन चतुर्वेदी की हिन्दी ग़ज़लों के कथ्य, भाषा और अभिव्यक्ति के सलीक़े की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। डॉ त्रिपाठी के अनुसार नवीन की ग़ज़लें कृष्ण की बांसुरी की तरह हैं। उन्हें जितनी बार सुनो उतनी ही ज़्यादा अच्छी लगती हैं। नवीन चतुर्वेदी के यहां हिंदी की ख़ूबसूरत शब्दावली है। धर्म, अध्यात्म और नैतिक मूल्य हैं। उन्होंने इन्हीं से अपनी ग़ज़लों को समृद्ध करने का सराहनीय कार्य किया है। धानी चुनर की ग़ज़लों में नयापन और ताज़गी है। साथ ही ये ग़ज़लें ग़ज़ल के छंदशास्त्र पर भी खरी उतरती हैं।

नवीन चतुर्वेदी की पुस्तक धानी चूनर के बहाने चित्रनगरी संवाद में नवीन चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर रसपूर्ण चर्चा हुई। नवीन जी ने अपनी काव्य साधना से जिस पवित्रता के साथ हिंदी को और हिंदी के विलुप्त हो रहे शब्दों को पुनर्जीवित किया है वह अपने आप में एक उदाहरण है। देवमणि पाण्डेय और सागर त्रिपाठी ने जब नवीन जी के व्यक्तित्व और उनकी रचनाधर्मिता की खूबियों पर चर्चा की तो उपस्थित श्रोताओं के लिए ये एक अद्भुत अनुभव था। देवमणिजी और सागरजी ने चूनर धानी की ऐसी समीक्षा की कि जिन्होंने इसे पढ़ लिया होगा वो भी उस तरह से इसका रसास्वादन नहीं कर पाए होंगे जो इन समीक्षाओं को सुनने के बाद किया होगा। एक पुस्तक पाठक को कितनी संवेदनाओँ और भावों से तृप्त कर सकती है, ये चूनर धानी पढ़ने के बाद ही महसूस किया जा सकता है। पुस्तक रूपी हीरा जब सागरजी और देवमणिजी जैसे जौहरियों के हाथ मे ंपहुँचता है तभी उसकी चमक और कीमत का एहसास होता है। नवीनजी चतुर्वेदी ने बृज गजलों के माध्यम से हिंदी की काव्यधारा को एक नई ऊँचाई और संपन्नता प्रदान कर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उनकी काव्य साधना को पढ़कर लगता है कि हिंदी हो या बृजभाषा उसकी मिठास कभी कम नहीं होगी।

देवमणि जी जब किसी कार्यक्रम का संचालन करते हैं तो वह मात्र संचालन ही नहीं होता बल्कि गीत, गज़ल और शेरो-शायरी के खजाने से अनमोल मोती चुन चुनकर श्रोताओं को तृप्त करते जाते हैं। मौजूँ दौर से लेकर गुजरे दौर के हर शायर, गीतकार और कवि को देवमणिजी अपने ही अंदाज में पेश करते हैं और कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान करते हैं। कार्यक्रम का संचालन करेत हुए उन्होंने बताया कि फ़िराक़ गोरखपुरी ने एक बातचीत में कहा था कि हिंदुस्तान में ग़ज़ल को आए हुए अरसा हो गया। अब तक उसमें यहां की नदियां, पर्वत, लोक जीवन, राम और कृष्ण क्यों शामिल नहीं हैं? कवि नवीन चतुर्वेदी ने अपने हिंदी ग़ज़ल संग्रह ‘धानी चुनर’ में फ़िराक़ साहब के मशवरे पर भरपूर अमल किया है। उनकी हिंदी ग़ज़लों में हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ हमारे पौराणिक चरित्र राम सीता, कृष्ण राधा, शिव पार्वती आदि अपने मूल स्वभाव के साथ शामिल हैं।

दूसरे सत्र में आयोजित काव्य संध्या में डॉ सागर त्रिपाठी, डॉ बनमाली चतुर्वेदी, उदयभानु सिंह, अर्चना जौहरी, अलका शरर, नवीन नवा, नवीन चतुर्वेदी, आकाश ठाकुर और जबलपुर से पधारे कवि सतीश जैन नवल ने कविता पाठ किया। कवियों की इस टीम में गुजराती से राजेश हिंगू और मराठी से चंद्रशेखर सानेकर भी शामिल थे। गुजराती और मराठी कविताओं का भी उपस्थित श्रोताओं ने भरपूर लुत्फ़ उठाया।

देवमणि_पांडेय के फेसबुक https://www.facebook.com/devmani.pandey.3 से प्राप्त समीक्षा के साथ
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