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क्षेत्रवाद की राजनीति से जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों पर कुठाराघात

जम्मू कश्मीर राज्य के निबासी पहले ही ६ दशकों से भी अधिक समय से मानसिक दूविदाओं और विवादों के वातावरण से जूझ रहे है इस लिए क्षेत्रबाद की राजनिति करने बालों को रोकने के लिए इस राज्य के लोगों को एकजुट होना होगा . जिस डंग से आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज जम्मू कश्मीर राज्य में कहाँ खोला जाए विषय को राजनीतिक स्तर पर कुछ नेताओं ने रियासत के लोगों में और अधिक  दूरियां पैदा करने में इस्तमाल किया है बड़ा ही खेद जनक है.
 
बीजेपी के केंद्रीय नेत्रित्व को लोगों को बताना होगा कि  केन्द्र सरकार द्वारा आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) जम्मू क्षेत्र के लिए रखा गया था या कश्मीर क्षेत्र के लिए  और इस पर  विवाद पैदा करने के पीछे किस का हाथ था ?
 
बीजेपी को यह भी लोगों को बताना होगा कि जब कश्मीर घाटी में पहले से ही आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज  के स्तर  का शेर ए कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज था तो फिर बीजेपी पीडीपी के एजेंडा फॉर अलायन्स में कश्मीर घाटी के लिए ही फिर से एक आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज जैसा संस्थान रखने के पीछे क्या तर्क था.

 “साल एक शुरूआत अनेक”  के संधर्व में जम्मू में राज्य के बीजेपी अध्यक्ष के साथ पत्रकारों से बात करते हुए ४ जून को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार में राज्य मंत्री जतिंदर सिंह जी ने कहा था कि बे एक बात साफ़ करना चाहते हैं कि अखिल भारतीय आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज जम्मू में जरूर बनेगा  और इस प्रकार का कोई भी संसथान जम्मू कश्मीर में किसी ओर भाग में तब तक नहीं बनेगा जब तक किउस से पहले एम्स जम्मू में बन जाए. इस वक्तब्य को जम्मू कश्मीर के करीब करीब सभी समाचार पत्रों ने प्राथमिकता दे कर छापा था. केन्द्र के एक राज्य मंत्री के ऐसा कहने के बाद दूसरे दिन ही फेडरेशन  ऑफ़ चैम्बर एंड इंडस्ट्री कश्मीर के अध्यक्ष मोहमद अशरफ मीर ने आने बाले दिनों में एक गंभीर विवाद के संकेत दे दिए थे जब उन्हों ने यह कहा कि बे भी चाहते हैं कि जम्मू क्षेत्र  को भी ऐसी ही कोई ऊच स्तर की स्वास्थ सुविधा मिले पर जिस प्रकार से एक मंत्री ने इस विषय  को एक तरह से क्षेत्र और धर्म की राजनीति में घसीटने के संकेत दिए हैं खेद जनक है. क्षेत्रबाद बाद के खेल से अशरफ मीर खुद भी बाहर नहीं दिखे जब उन्होंने  जम्मू  में एम्स के लिए आन्दोलन कर रही संस्थाओं पर आरोप लगा दिया कि उन का अभियान कश्मीर में एम्स न बनने देने के लिए है. आने बाले दिनों में केन्द्र सरकार के लिए दुविदाओं के संकेत देते हुए अशरफ मीर ने यह भी कह दिया था कि बे माग करते हैं कि इस से पहले कि जम्मू क्षेत्र में आईआईएम और आईआईटी काम करना शुरू करें कश्मीर घाटी में भी आईआईएम और आईआईटी बनने चिहिएं. उसी समय केन्द्र सरकार को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिये था पर ऐसा नहीं हुआ  और आज क्षेत्रबाद की कोम्प्लें और अधिक फूलती दिख रही हैं और यह जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए हानिकारक है.

 
 
इस के साथ साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जतिंदर सिंह जी ने यह  भी कहा था कि जम्मू में  एम्स की नीम्ब वाजपई जी की सरकार की सरकार में स्वास्थ मंत्री  सुषमा स्वराज जी ने १० साल पहले रखी थी पर बाद की कांग्रेस सरकार ने उस को पूरा नहीं किया. क्या ही अच्छा होता अगर बीजेपी के यह  नेता जिन्हों ने १ मार्च को यह कहा भी  था कि मोदी जी की केंद्र सरकार ने २०१५-१६ की बजट पेश करते हुए एम्स  जम्मू के लिए रखा था इस बात को भी लोगों के सामने रखते कि अगर ऐसा था तो फिर बीजेपी-पीडीपी की जम्मू कश्मीर सरकार के एजेंडा फॉर अलायन्स में एम्स कश्मीर घाटी के लिए क्यों रखा गया है.
 
 
 
कोई भी पूछ सकता है की अगर २००४ में बीजेपी की सरकार ने एक आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज जम्मू क्षेत्र के लिए दिया था जिस को गुलाम नबी आजाद ने खंडित कर दिया था तो फिर २०१४ में दिल्ली में आई बीजेपी सरकार ने उस  गलती को ठीक करते हुए इस को बीजेपी पीडीपी एजेंडा फॉर अलायन्स में जम्मू क्षेत्र के लिए रखना चाहिए था न कि कश्मीर घाटी के लिए . इसलिए बीजेपी के नेता अब अपनी गलती को यह कहकर सुधार नहीं सकते कि अगर कश्मीर घाटी के साथ साथ जम्मू क्षेत्र में भी आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज खोल दिया जाए तो उन को कोई आपति नहीं है या यह कह कर कि अगर आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज को जम्मू और श्रीनगर शहर के मध्य मार्ग में कहीं खोलना चाहिए.
 
 
जम्मू कश्मीर में २ आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज खोलना विवाद को सुलझाने और क्षेत्रबाद की राजनिति को त्रस्त करने के लिए सही कदम नहीं होगा . हो सकता है इस के साथ क्षणिक लाभ मिलते दिखे पर  समस्या यह का सही समाधान नहीं होगा. आने बाले दिनों में कश्मीर घाटी से यह मांग उठ सकती है कि इस से पहले कि जम्मू क्षेत्र में आईआईएम और आईआईटी काम करना शुरू करें इस से पहले कश्मीर घाटी में भी आईआईएम और आईआईटी बनने चाहिएं और इस के संकेत पहले ही मिल चुके हैं.
 
 
जम्मू कश्मीर के शीर्ष बीजेपी नेताओं ने जम्मू के एम्स आन्दोलनकारियों को १२ जून से आरंभ कि गई क्रमिक भूख हड़ताल स्थगित करने के लिए १८  जून को यह कह कर राजी किया था की केंद्र से २० जुलाई तक जम्मू के लिए भी एम्स ले लेंगे  पर बे ऐसा नहीं कर पाए और भूख हड़ताल फिर आरंभ हो गई.
 
 
आज के दिन बीजेपी-पीडीपी सरकार  कुछ प्रश्नों के घेरे में फंस गई है जेसे कि जो लोग १३ -१४ जून के आस पास यह कहते थे कि एम्स जम्मू के लिए २ या 3 तीन दिन में घोषित हो जाएगा उन्हों ने १८ जून को अन्दोलनकारिओं से एक महीने से ज्यादा का समय क्यों माँगा, अगर जतिंदर सिंह जी के अनुसार एम्स जम्मू के लिए पारित था तो फिर निर्मल सिंह जी २० जुलाई तक समय लेने के बाद भी जम्मू के लिए एम्स क्यों  नहीं ला पाए और क्या मुफ़्ती मोहमद सईद जी भी कश्मीर घाटी में  आईआईएम और आईआईटी खोलने की मांग के धर्म संकट में फंस गये हैं और निर्मल सिंह जी के असफल होने का कारण कही यह तो नहीं है ?
 
 
क्या ही अच्छा होता अगर बीजेपी का केंद्रीय नेत्रित्व कुछ नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक स्वार्थों में एम्स विषय को घसीटने के ओछे प्रयासों पर सही समय पर अंकुश लगा पाता.
 
 
बीजेपी और पीडीपी की साँझा सरकार के एजेंडा फॉर अलायन्स में साफ़ शब्दों में लिखा गया है कि आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज कश्मीर घटी में खोला जाएगा इस पर भी बीजेपी के एक नेता ने यह कह कर कि भारत सरकार ने आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज जम्मू क्षेत्र के लिए अपनी बजट में रखा था केंद्रीय वितमंत्री को भी विवाद में खींचते हुए जम्मू क्षेत्र और कश्मीर घाटी के बीच एक तरह से क्षेत्रबाद की लड़ाई के कुछ और बीज बो दिए थे . कम से कम बीजेपी से तो आशा की जाती थी कि कुछ विषयोँ  को राजनिति से ऊपर उठ कर देखा जाता पर इस के विपरीत किसी ने इस विवाद को दयानतदारी से हल करने की हिम्मत नहीं दिखाई. आज इस को क्षेत्रबाद की लडाई में बदल दिया गया है. इस के लिए सिर्फ पीडीपी को दोष देना उचित नहीं होगा क्यों कि दोनों दलों ने साफ़ कहा है की एक को जम्मू ने चुना है और दूसरे को कश्मीर घाटी ने.
 
 
जरा सोचिये जो नेता लोग बड़े जोर से कहते है कि जम्मू कश्मीर रियासत को तीन भागों में बांटना न राष्ट्र हित में होगा और न ही रियासत के हित में होगा जब बही नेता यह कहें कि अगर जम्मू क्षेत्र को कुछ दिया जाए तो बही कश्मीर घाटी को भी देना चाहिए तो क्या ऐसे लोग जम्मू रीजन  और कश्मीर घाटी को अलग राज्य बनांने की दिशा में काम नहीं कर रहे  हैं ?
 
लेखक जम्मू कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं और खुद भी इस समस्या के भुक्तभोगी हैं
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