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खस्ताहाल नैशनल हेरल्ड की कैसे सुधर गई चाल?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे एवं पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नियंत्रण वाली एसोसिएटेड जर्नल्स करोड़ों के घाटे वाली कंपनी से मुनाफा कमाने वाली कंपनी बन गई है। इसका पता कंपनी पंजीयक को दिए गए ब्योरे से चलता है। यह ब्योरा दिखाता है कि इस मुनाफे से पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए घाटे को कम करने में मदद मिल रही है। इसके साथ ही कंपनी निर्माण से संबंधित गतिविधियों में भारी निवेश कर रही है, जिससे उसकी आमदनी में सुधार की संभावना है। यंग इंडियन के इसे अधिग्रहीत करने से पहले के तीन वित्तीय वर्षों में इसे कर पूर्व लाभ और भारी आमदनी हुई थी। यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी कंपनी है, जिसका नियंत्रण सोनिया गांधी, राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस के पास है।
राष्ट्रीय राजनीति में नैशनल हेरल्ड का जो मसला गरमाया हुआ है, उसकी वजह एसोसिएटेड जर्नल्स ही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठï नेता सुब्रमण्यन स्वामी द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया है। इसके बाद कांग्रेस ने इसे बदले की राजनीति बताते हुए सियासी पारा गरमा दिया है और इस कदम को राजनीतिक बदला करार दिया है। इस बीच भाजपानीत सरकार ने कहा है कि यह न्यायालय का आदेश है और इस पूरे मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
नवंबर, 2010 से जनवरी, 2011 के बीच यंग इंडियन ने एसोसिएटेड जर्नल्स के खातों की कुल 90 करोड़ रुपये की देनदारी खुद ली और उसके बदले में उसे कंपनी के 99 फीसदी हिस्सेदारी के शेयर जारी किए गए। स्वामी वर्ष 2012 में न्यायालय गए और उन्होंने आरोप लगाया कि यह सौदा कंपनी के 1,000 से अधिक वास्तविक शेयरधारकों के लिए अनुचित है, जो इसके बाद अल्पांश हिस्सेदार बन गए हैं और इस तरह कंपनी की वास्तविक रियल एस्टेट संपत्तियों में उनके वाजिब हक से उन्हें वंचित किया गया। स्वामी के मुताबिक ये संपत्तियां तीन साल पहले 1,600 करोड़ रुपये की थीं। उनके समर्थकों का कहना है कि अब इस संपत्ति की कीमत बढ़कर 2,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है।
मुश्किलों के भंवर में

अधिग्रहण से पहले एसोसिएटेड जर्नल्स खस्ताहाल थी। मार्च, 2008 में समाप्त वित्त वर्ष में उसे 5.96 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, जो इससे पिछले साल हुए हुए 1.01 करोड़ रुपये के घाटे से करीब छह गुना अधिक था। वर्ष 2008 वह साल था, जब एसोसिएटेड जर्नल्स के मुख्य प्रकाशन नैशनल हेरल्ड का प्रकाशन बंद हुआ था। आय के लिहाज से प्रसार से होने वाली आमदनी वर्ष 2007-08 में घटकर 64.31 लाख रुपये पर आ गई, जो इससे पिछले साल 2.86 करोड़ रुपये थी। विज्ञापन आमदनी 30 फीसदी घटकर 3.63 करोड़ रुपये से घटकर 2.57 करोड़ रुपये रह गई। इसमें किराया आमदनी ही सकारात्मक पहलू थी, जो 86 लाख रुपये से बढ़कर 1.02 करोड़ रुपये हो गई। परिचालन बंद होने का संकेत देते हुए अखबारी कागज पर खर्च 2.52 करोड़ रुपये से घटकर 63.17 लाख रुपये पर आ गया। मगर वेतन एवं भत्ते पर खर्च 4.28 करोड़ रुपये से बढ़कर 4.73 करोड़ रुपये हो गया।
इसके बाद और अधिक घाटा हुआ। वर्ष 2008-09 में 33.78 करोड़ रुपये, वर्ष 2009-10 में 1.9 करोड़ रुपये और वर्ष 2010-11 में 0.39 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज हुआ। वर्ष 2008-09 में इतना भारी घाटा कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की वजह से हुआ। इससे वेतन पर खर्च बढ़कर 34.12 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। लेकिन अब स्थिति काफी बदल चुकी है। अगर वर्ष 2012-13 को अपवाद छोड़ दिया जाए तो पिछले तीन वित्त वर्षों के दौरान दो वित्तीय वर्षों में कंपनी को शुद्घ लाभ हासिल हुआ। वर्ष 2012-13 में कंपनी को 4.65 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान हुआ था, जिसकी वजह 10.59 करोड़ रुपये को बट्टे खाते में डालना था।
मालिकाना हक में बदलाव के साथ एक साल बाद वर्ष 2011-12 में कंपनी को 2.22 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। वर्ष 2013-14 में एसोसिएटेड जर्नल्स को 7.95 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ। वर्ष 2013-14 में उसकी आय का सबसे बड़ा स्रोत निवेश संपत्ति से किराया आमदनी थी। यह आमदनी 9.4 करोड़ रुपये रही, जो वर्ष 2012-13 में 6.02 करोड़ रुपये और वर्ष 2011-12 में 2.68 करोड़ रुपये से अधिक थी। इस किराया आमदनी का एक हिस्सा नई दिल्ली स्थित हेरल्ड हाउस में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा संचालित पासपोर्ट सेवा केंद्र से आता है।
यहीं से नैशनल हेरल्ड प्रकाशित होता था। सावधि जमाओं पर ब्याज वर्ष 2013-14 में तेजी से गिरकर 59,638 रुपये पर आ गया, जो इससे पिछले साल 14.10 लाख रुपये था। यह इस बात का संकेत है कि इनमें से कुछ को भुना लिया जाना चाहिए। व्यय के लिहाज से बड़े खर्चों में 19.19 लाख रुपये का बिजली खर्च और 16.02 लाख रुपये इमारत की मरम्मत पर खर्च हुए। इसके बाद सुरक्षा पर 7.95 लाख रुपये और कानूनी खर्च 6.38 लाख रुपये रहा। अनुबंधित भुगतान और निकाय शुल्क जैसे पानी और संपत्ति कर को विविध खर्च के तहत रखा गया है, जिस पर कुल खर्च 84 लाख रुपये खर्च हुए, जो वर्ष 2012-13 के खर्च 68.77 लाख रुपये से अधिक है। तब ब्याज लागत के तौर पर 2.48 करोड़ रुपये का खर्च सबसे बड़ा व्यय था लेकिन चूंकि पूंजीगत कार्य प्र्रगति में था तो इसका लाभ भी मिला।

घटता घाटा

एसोसिएटेड जर्नल्स द्वारा दिए गए ब्योरे के विश्लेषण से पता चलता है कि मुनाफे से धीरे-धीरे बहीखाते में कुल घाटा कम होता जा रहा है। वर्ष 2013-14 के अंत में कुल घाटा 66.96 करोड़ रुपये था, जो मालिकाना हक में बदलाव से पहले वर्ष 2010-11 के अंत में 72.50 करोड़ रुपये दर्ज किया गया था। एसोसिएटेड जर्नल्स के खातों में अचल संपत्ति की कुल कीमत वर्ष 2013-14 के अंत में 1.71 करोड़ रुपये बताई गई थी, जो हजारों करोड़ों रुपये की होने के दावे से बहुत दूर है। सालाना रिपोर्ट में खातों के नोट में कहा गया है, ‘अचल संपत्तियां लागत में से मूल्य हृास घटाने पर आधारित हैं।’ इस पर जवाब के लिए कंपनी को भेजे गए ई-मेल पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।
सालना रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 63.31 करोड़ रुपये का ‘पूंजीगत काम प्रगति’ पर था। सालाना रिपोर्ट में दिखाया गया है कि ये निर्माण उन कदमों में शामिल हैं, जो नैशनल हेरल्ड को फिर से शुरू करने के लिए उठाए जा रहे हैं। कंपनी के अनुसार मुंबई, पंचकूला, पटना और लखनऊ जैसी चार जगहों पर उसका निर्माण कार्य चल रहा था। मुंबई का क्लोजिंग बैलेंस सबसे अधिक 36.35 करोड़ रुपये था। उसके बाद पंचकूला का 14.8 करोड़ रुपये और लखनऊ का 11.94 करोड़ रुपये था। पटना में निर्माण खर्च महज 20.19 लाख रुपये रहा और इस साल साल खर्च में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
ब्योरे से पता चलता है कि मुंबई के बांद्रा में जमीन सरकार द्वारा 1983 में आवंटित की गई थी। कंपनी ने यह भी कहा है कि जमीन और प्रकाशन को लेकर इंदौर से विष्णु गोयल के साथ विवाद चल रहा है। इसमें कहा गया है, ‘इंदौर की जमीन के संबंध में कंपनी ने वहां से नैशनल हेरल्ड के प्रकाशन के लिए विष्णु गुप्ता के पक्ष में जारी की गई जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी कुछ वर्ष पहले रद्द कर दी थी। यह मामला माननीय उच्च न्यायालय के विचाराधीन है।’ एक समय मुश्किलों से जूझ रही एसोसिएटेड जर्नल्स की हालत में हुआ यह सुधार दर्शाता है कि गांधी परिवार न केवल राजनीति में बल्कि कारोबारी पैमाने पर भी बेहद कुशाग्र है। हालांकि इसको लेकर कुछ विवाद भी शुरू हो गए हैं।

साभार- http://hindi.business-standard.com/ से