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तो फिर हार्दिक पटेल के कांग्रेस में होने का मतलब ही क्या है?

यह किसी के भी समझ में न आनेवाली बात है कि आखिर कांग्रेस अपने संभावनाशील युवा नेताओं की कद्र क्यों नहीं कर पा रही। सुष्मिता देब, जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया का जाना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा, लेकिन जो बचे हैं, उनमें हार्दिक पटेल जैसे क्षमतावान व चहेते युवा नेता को ताकत देने के मामले में कांग्रेस की कंजूसी समझ से परे हैं। गुजरात में वैसे भी कांग्रेस के पास खोने को बाकी रहा क्या है!

भारतीय राजनीति में युवा नेतृत्व की कमी है। लेकिन कमी के इस माहौल में हार्दिक पटेल वो युवा चेहरा है, जिनकी राजनीति न केवल गुजरात की नई पीढ़ी में उम्मीद जगाती है, बल्कि देश भर के उस युवा वर्ग की भी उम्मीद है, जो हमारे हिंदुस्तान के राजनेताओं में जादू कोई जादू जैसा करिश्मा तलाश रही है। देखा जाए, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तक ने युवा वर्ग का समर्थन पाने की कोशिश में स्वयं को युवा बताकर राजनीति की फसल रोपी है। लेकिन उम्र और अनुभव के लिहाज से देश में वास्तविक युवा नेता तो हार्दिक पटेल ही हैं, जो भारतीय राजनीति में हाल के समय में एक ऐसे प्रतिनिधि चेहरे के रूप में उभरे हैं, जिनसे देश के युवा वर्ग को एक नए नेतृत्व की उम्मीद है। फिर भी कांग्रेस नेतृत्व ने अगर हार्दिक की राजनीतिक हैसियत की कद्र नहीं की, तो राजनेताओं को तो वैसे भी अपना पता बदलते देर नहीं लगती और फिर कांग्रेस में तो सुष्मिता देब, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी जैसे नेता अपना पता बदलने के ताजा उदाहरण हैं।

देखा जाए, तो भारतीय राजनीति के आज के चर्चित युवा चेहरों में हार्दिक पटेल कम से कम लोकप्रियता व सांगठनिक क्षमता के मामले में तो सब पर भारी पड़ रहे है, जबकि दूसरे युवा नेताओं की तरह राजनीति उनको विरासत में नहीं मिली है। कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी सहित राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी, मुलायम सिंह यादव के बेटे विधायक अखिलेश यादव, लालू यादव के बेटे विधायक तेजस्वी यादव, रामविलास पासवान के बेटे सांसद चिराग पासवान, राजेश पायलट के बेटे विधायक सचिन पायलट, दिनेश राय डांगी के बेटे राज्यसभा सांसद नीरज डांगी, वसुंधरा राजे के बेटे सांसद दुष्यंत सिंह, मुरली देवड़ा के बेटे पूर्व मंत्री मिलिंद देवड़ा, जितेंद्र प्रसाद के बेटे पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, संतोष मोहन देव की बेटी पूर्व सांसद सुष्मिता देव, माधवराव सिंधिया के बेटे केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे मंत्री आदित्य ठाकरे और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर जैसे कई नेता पुत्रों की तरह हार्दिक पटेल को राजनीति कोई विरासत में नहीं मिली है। फिर भी वे विरासत से विकसित हुए वारिसों को पछाडकर अपनी राजनीतिक पहचान बनाकर खुद की अहमियत को उंचा उठाने में कामयाब रहे हैं।

वंश की विरासत के वारिस उपरोक्त सभी युवा नेताओं के मुकाबले हार्दिक पटेल एक भरोसेमंद और ताकतवर नेतृत्व देनेवाले युवा चेहरे के रूप में देखे जाते हैं, क्योंकि पाटीदार आंदोलन के इस प्रणेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके घर में ही उस वक्त सबसे बड़ी चुनौती दी थी, जब मोदी अपने जीवन के सबसे मजबूत राजनीतिक दौर में प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तेजी से आगे बढ़ रहे थे। वैसे, सन 2015 में शुरू हुआ पाटीदार आंदोलन समाज के लिए आरक्षण की मांग को लेकर था, लेकिन हार्दिक पटेल की सूझबूझ और रणनीतिक समझदारी से पाटीदार आंदोलन ने कई ताकतवर राजनेताओं की राजनीति को राख में तब्दील करने की ताकत पा ली थी। हार्दिक का यह आंदोलन और चुनौती दोनों ही भले ही शुद्ध रूप से सामाजिक थे, लेकिन आंदोलन के परिणाम तो राजनीतिक ही होने थे। सो, पाटीदार आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल सीधे प्रदेश के नेता बन गए और आज गुजरात में वे कांग्रेस को ताकत देनेवाले नेता तो हैं ही, देश भर के युवा वर्ग में भी वे बेहद चहेते हैं।

अब तो खैर, हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिए गए हैं, और उनकी ताकत के तेवर भले ही तीखे हैं, लेकिन कम उम्र में उनके जितनी समझदारी देश के बड़े बड़े, अनुभवी और उम्रदराज नेताओं में भी ढूंढने से भी नहीं मिलती। फिर भी कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में उनके प्रति जो रवैया दिख रहा है, उससे साफ लगता है इस संभावनाशील ताकतवर युवा नेता को कांग्रेस अपने साथ लंबे समय तक जोड़े रखने की कोई गंभीर कोशिश नहीं कर रही। फिर भी पार्टी से परे निकलकर, नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से अपनी राजनीतिक ताकत बनाते हुए हार्दिक पटेल बहुत तेजी के साथ देश भर में युवा पीढ़ी की आवाज के रूप में देखे जाने लगे हैं। सन 2015 में शुरू हुआ पटेलों को ओबीसी समुदाय में शामिल किये जाने की मांग का यह आंदोलन भले ही आरक्षण दिलवाने में अभी सफल होना बाकी है, लेकिन गुजरात की राजधानी गांधीनगर से नई दिल्ली और देश के विभिन्न राज्यों से लेकर यूरोप व अमेरिका तक हार्दिक पटेल ऐसे छा गए कि देश उनको हैरत से देखने लगा। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह रही कि हार्दिक ने सिर्फ 25 साल की उम्र से भी पहले देश के सबसे बड़े युवा नेताओं में किसी करिश्मे की तरह खुद को स्थापित कर दिया।

पटेल का पाटीदार आंदोलन एकमात्र कारण रहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में बीजेपी को बहुत मेहनत करने के बावजूद वो बहुमत नहीं मिला, जिसके लिए वह असल प्रयास में थी। कुल 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में जैसे तैसे करके बीजेपी 99 सीटें ही ले पाई, वह भी तब, जब हार्दिक ने स्वयं चुनाव नहीं लड़ा था, क्योंकि उम्र ही उनकी चुनाव लड़ने लायक नहीं थी। वरना, पटेल वोट बैंक का बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ जा सकता था। अब अगले साल 2022 के आखिर में गुजरात में फिर चुनाव होने हैं। बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री बदल दिया है, विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बन गए हैं। हार्दीक के आंदोलन ने बीजेपी को किसी पटेल को मुख्यमंत्री बनाने के मजबूर किया, लेकिन उनकी अपनी ही कांग्रेस पार्टी में अपनी क्षमता साबित करने के लिए हार्दिक पटेल को आलाकमान से ताकत की उम्मीद करनी पड़ रही है। राजनीति में नेतृत्व से मिली शक्तियों के आधार पर नेता स्वयं की ताकत को द्विगुणित करते है, लेकिन न केवल देश भर का युवा वर्ग मानता है कि कांग्रेस आलाकमान को ही अगर हार्दिक पटेल के सामर्थ्य व क्षमता की कद्र नहीं है, तो फिर हार्दिक पटेल के कांग्रेस में होने का मतलब ही क्या है?

दरअसल, यह सही समय है कि हार्दिक पटेल को संगठन में ताकतवर बनाया जाए, वरना प्रदेश में कांग्रेस का बंटाधार तो यह है ही, देश की सबसे पुरानी पार्टी, अपने ही नहीं, देश के सबसे युवा नेता को खो दे, तो भी कोई आश्चर्य नहीं होगा। कांग्रेस वैसे भी राहुल गांधी के अलावा किसी और नेता की बहुत ज्यादा चिंता करती नहीं दिखती, और यही रवैया उसे लगातार कमजोर भी करता जा रहा है। गुजरात में कांग्रेस के पास खोने को वैसे भी बहुत कुछ बचा नहीं है। पुराने नेताओं की ताकत चूक चुकी है, मगर हार्दिक लंबे चलने वाले नेता हैं। फिर भी कांग्रेस की अपनी नई पीढ़ी को गुजरात में ताकत सौंपने के मामले में कंजूसी समझ से परे है। कुछ कट्टर कांग्रेसी और स्थापित नेताओं के गुलाम मानसिकता वाले सेवक भले ही अपनी इस बात से सहमत न हों, लेकिन सच यही है कि कांग्रेस, अगर समय रहते हार्दिक पटेल जैसे अपने संभावनाशील युवा नेताओं की अहमियत भी न समझे, तो देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास में समा जाने का रास्ता तलाशने के लिए छोड़ देना चाहिए।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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