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संघ प्रमुख के संदेश को समरसता में देखने की जरूरत है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (जिसको लगाव से, आम भाषा में “संघ “कहा जाता है)के प्रमुख माननीय मोहन भागवत जी के बयान/ भाषण को शुभ एवं सकारात्मक रूप से समाज को लेना चाहिए। आज भी भारत में सामंतवाद शासक वर्ग की सोच, जागीरदार की सोच व मानसिकता, जमींदारी की मानसिकता एवं ऊंच-नीच की भावना से ग्रसित व्यक्ति एवं समाज है। इसका जीता – जागता उदाहरण बिहार की जातीय जनगणना है ,देश(राज्य) को दंगों (कायरों का हथियार )आरक्षण वाद एवं सांप्रदायिकता ( धर्म के द्वारा मोहित करना) को बढ़ाने का है ।

भागवत जी का एक नवीनतम पुस्तक आई है,” यशस्वी भारत ” जो समाज में समरसता, जाति विहीन व्यवस्था ,छुआछूत की समाप्ति एवं ऊंच-नीच की समाप्ति पर लिखी गई है, या इन बुराइयों को हटाने का संकल्प दे रही है । लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक उन्नयन की दृष्टि से यह किताब” महान घोषणापत्र” के रूप में अपनी उपादेयता दे रही है; क्योंकि इस किताब से मानव धर्म (मानव सेवा) ही सर्वोच्च/ उच्चतम धर्म हैं।

मैं अभी तक की जीवन – यात्रा में ‘ हिंदुत्व ‘ का आशय इसी किताब को पढ करके समझा हूं कि हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है।हिंदुस्तान का प्रत्येक नागरिक हिंदू है, अर्थात हिंदुत्व एक विचारधारा है ;जो समाज एवं राज्य का पथ प्रदर्शन करता है।

भागवत जी एक संत है ,जो परिवार व कुटुंब छोड़कर के सन्यासी का जीवन जी रहे हैं।( वर्णाश्रम वाला सन्यासी), उनके संदेश का मौलिक उद्देश्य है कि हम घमंड मुक्त जीवन को जीने का प्रयास करें ।हमें अपने भीतर के शत्रु( काम, क्रोध, मद एवं लोभ) को जीतना होगा, जिससे हम एक समतामूलक व समरसता का पाठ दे सके ।आदरणीय भागवत जी का संदेश सांप्रदायिक सौहार्द व मधुर संबंध वाला समाज बनाने का मजबूत संदेश है। वर्तमान में समाज का जो वर्ग – चरित्र है जिससे धार्मिक वैमनस्य व जातीय दुर्भावना, चापलूसी ,सही व्यक्ति को बुरे व्यक्ति सिद्ध करने का चातुर्य आ चुकी है, जिसके कारण व्यक्तित्व की कलात्मक क्षमता ,प्रतिभा एवं योग्यता का हनन होता जा रहा हैं,समाज एवं व्यवस्था में उसकी उपादेयता न्यून होती जा रही है ।एक आदर्श समाज का निर्माण व्यक्तियों के चारित्रिक सौंदर्यता (सत्य निष्ठा, कर्तव्यनिष्ठ,धर्मनिष्ठ एवं निः स्वार्थ भाव) से होती हैं।

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