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गुमनामी के अंधेरे में खोने वाली इन 11 महिला वैज्ञानिकों को अब बच्चा-बच्चा जानेगा

नई दिल्ली। कोई भारत की पहली महिला फिजिशियन हैं, तो किसी महिला ने विज्ञान में पहली बार डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। विज्ञान और तकनीक और महिला और बाल विकास मंत्रालय ने फैसला किया है कि ऐसी 11 महिलाओं को चुना जाएगा और उनके सम्मान में देश के इंस्टीट्यूट्स में उनके नाम पर चेयर (पद) स्थापित की जाएंगी। सिर्फ महिला रिसर्चर्स को ही इन पदों पर लिया जाएगा और उन्हें रिसर्च के लिए 1 करोड़ रुपए तक का फंड दिया जाएगा। ये वो महिलाएं होंगी, जिन्हें लोग भूल गए हैं या भूल रहे हैं, जिनसे सबको रूबरू कराया जाएगा। बता दें कि अभी तक भारत में सिर्फ मदर टेरेसा के नाम पर ही इंस्टीट्यूट्स में चेयर बनाई गई है। ये 11 महिलाएं प्रसिद्ध मानव विज्ञानी इरावती कर्वे, कायटोजेनेटिसिस्ट अर्चना शर्मा, वनस्पति विज्ञानी जानकी अम्माल, आर्गेनिक साइंटिस्ट दर्शन रंगनाथन, रसायन विज्ञानी आसिमा चटर्जी, डॉ. कादंबिनी गांगुली, मौसम विज्ञानी अन्ना मणि, इंजीनियर राजेश्वरी चटर्जी, गणितज्ञ रमण परिमाला, भौतिक विज्ञानी बिभा चौधरी और बायो मेडिकल शोधकर्ता कमल रणदिवे हैं। आइए बताते हैं इनमें से कुछ के बारे में।

1- बिभा चौधरी

भौतिक विज्ञान में अपने लोहा मनवाने वाले होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई के बारे में तो हर कोई जानता है, लेकिन उनके साथ काम कर चुकीं बिभा चौधरी एक गुमनाम चेहरा बनकर रह गई हैं। उन्होंने नोबल पुरस्कार विजेता भौतिकशास्त्री पी.एम.एस ब्लैकेट के साथ भी काम किया था, जो वैज्ञानिक अनुसंधान शुरुआत करने से जुड़े मामलों में पंडित नेहरू के सलाहकार रह चुके थे। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में चौधरी ने कई दशकों तक काम किया। 1913 में पैदा हुईं बिभा चौधरी का आखिरी शोध पत्र सह-लेखक के रूप में 1990 में उनकी मृत्यु (1991) से करीब साल भर पहले इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स में प्रकाशित किया गया था। उनके बारे में तो ये भी कहा जाता है कि वह नोबल पुरस्कार भी जीत सकती थीं, लेकिन उन्हें पर्याप्त फोकस नहीं मिला और वह एक गुमनाम चेहरा बनकर रह गईं, जिन्हें अब इंस्टीट्यूट में चेयर स्थापित कर के सम्मान दिए जाने का फैसला लिया गया है। बता दें कि उनकी उपलब्धियों और गुमनामी को ध्यान में रखकर एक किताब भी लिखी गई है ‘ए ज्वेल अनअर्थेड: बिभा चौधरी।’

2- इरावती कर्वे

इरावती का जन्म तो 15 दिसम्बर 1905 में बर्मा में हुआ था, लेकिन उनकी पढ़ाई लिखाई पुणे में हुई। 1928 में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की। 1930 में बर्लिन विश्वविद्यालय से नृविज्ञान में पीएचडी की। वह पुणे के डेक्कन कॉलेज के समाजशास्त्र और नृविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष भी रहीं। 1947 में उन्होंने दिल्ली में हुए भारतीय विज्ञान कांग्रेस के नृविज्ञान विभाग की अध्यक्षता भी की। बता दें कि उन्होंने मराठी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में कई विषयों पर लिखा है। उनकी रचना ‘युगान्त’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

3- कमल रणदिवे

8 नवंबर 1917 को पुणे में जन्मी कमल रणदिवे ही वह महिला हैं, जिन्होंने सबसे पहले स्तन कैंसर और आनुवंशिकता में संबंध के बारे में बताया था। उनके बाद बहुत से शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की। बबता दें कि कमल रणदिवे ने शुरुआती दौर में कैंसर को लेकर कई शोध किए थे। उनके अभूतपूर्व काम की वजह से ही भारत सरकार ने उन्हें चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 1982 में पद्म भूषण से नवाजा था। बता दें कि कमल रणदिवे के पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बनें और किसी डॉक्टर से ही उनकी शादी भी हो, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। उन्होंने फर्गुसन कॉलेज से वनस्पति विज्ञान और जूलॉजी में ग्रेजुएशन किया और भारत की पहली और अग्रणी महिला वैज्ञानिक बनकर उभरीं। वह भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की प्रमुख संस्थापक सदस्य भी थीं। 2001 में उनकी मौत हो गई।

4- राजेश्वरी चटर्जी

कर्नाटक से पहली महिला इंजीनियर रहीं राजेश्ववरी चटर्जी 24 जनवरी 1922 में कर्नाटक में ही पैदा हुई थीं। उनकी स्कूलिंग तो उनकी दादी द्वारा शुरू किए गए स्पेशल इंग्लिश स्कूल से हुई, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने सेंट्रल कॉलेज ऑफ बेंगलोर में दाखिला लिया। वहां से राजेश्वरी चटर्जी ने बीएससी और एमएससी की डिग्री ली। बता दें कि इनके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिले। बीएससी के लिए उन्हें मम्मदी कृष्णराज वोडेयार पुरस्कार और एमएससी के लिए एमटी नारायण अयंगर पुरस्कार और वाल्टर्स मेमोरियल पुरस्कार मिला। उन्होंने अमेरिका पीएचडी की और 1953 में भारत लौटीं। वह बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर रहीं और इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष भी रहीं। माइक्रोवेव इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया। 3 सितंबर 2010 को उनकी मौत अपने ही घर में गिरने के कारण चोट लगने के चलते हो गई।

5- रमण परिमाला

जब कभी बीजगणित का जिक्र होता है, तो रमण परिमाला का जिक्र जरूर होता है। 21 नवंबर 1948 में जन्मीं रमण परिमाला एक भारतीय गणितिज्ञ हैं, जिन्होंने बीजगणित में एक बड़ा योगदान दिया है। वह एमोरी विश्वविद्यालय में गणित के कला और विज्ञान की प्रतिष्ठित प्रोफेसर हैं। इससे पहले वह कई सालों तक वह मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में प्रोफेसर भी थीं। 1987 में उन्हें भटनागर पुरस्कार भी दिया गया था। 1999 में लॉज़ेन विश्वविद्याल ने उन्हें मानद डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया। 2003 में उन्हें श्रीनिवास रामानुजम जन्म शताब्दी पुरकार भी मिला। गणित के लिए वह 2005 में ‘द वर्ल्ड अकेडेमी ऑफ साइंसेज़’ पुरस्कार भी पा चुकी हैं। अब उनके नाम पर भारत के इंस्टीट्यूट्स में चेयर भी होगी।
साभार – नवभारत टाईम्स से