1

खीर भवानी मंदिर के वार्षिक मेले के लिए जुटे हजारों कश्मीरी पंडित

जम्मू: कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच, जम्मू से सैकड़ों विस्थापित कश्मीरी पंडित श्रद्धालु आज सोमवार, 10 जून को ज्येष्ठ अष्टमी पर लगने वाले वार्षिक मेले माता खीर भवानी मेला में भाग लेने के लिए कश्मीर के लिए रवाना हुए. यह इस विस्थापित समुदाय के सबसे बड़े धार्मिक उत्सवों में से एक है. उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुल्ला गाँव में स्थित खीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडितों की पूजनीय देवी, रागन्या देवी की मूर्ति है, जो कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है. 10 जून को ज्येष्ठ अष्टमी पर शुरू होने वाले खीर भवानी मेले के दौरान भारत और विदेशों के विभिन्न हिस्सों से 60 से 70 हजार से अधिक विस्थापित पंडितों के कश्मीर घाटी में पांच प्रसिद्ध मंदिरों की यात्रा करने की उम्मीद है. उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले में स्थित तुलमुल गांव में स्थित माता राग्नी का खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है।

 

 

खीर भवानी मेला कश्मीरी पंडितों का सालाना त्योहार है. ऐसा कहा जाता है कि रावण के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर मां राज्ञा माता (क्षीर भवानी या राग्याना देवी) प्रकट हुई थीं. इसके बाद रावण ने उनकी स्थापना कुलदेवी के रूप में करवाई. हालांकि कुछ समय बाद रावण के व्यवहार और बुरे कर्म के चलते देवी नाराज हो गईं और रावण की नगरी छोड़कर चली गईं. इसके बाद भगवान राम ने जब रावण का वध किया तो राम ने हनुमान से कहा कि वह राग्याना देवी की स्‍थापना किसी उपयुक्त स्थान पर करवाएं. इसके बाद हनुमान की मदद से कश्मीर के तुलमुल में देवी की स्थापना की गई.

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में एक कश्मीरी पुरोहित को माता ने सपने में बताया कि उनके मंदिर का नाम खीर भवानी ही रखें. शायद इसी वजह से हर साल पूजा से पहले मंदिर के कुंड में दूध और खीर की भेंट चढ़ाई जाती है. इस खीर से चश्मे का पानी रंग बदलता है. इस मंदिर में पानी का एक स्रोत है जिसे चमत्कारिक माना जाता है. खीर का मतलब दूध और भवानी का मतलब भविष्यवाणी है. यही कारण है कि झरने की मंदिर में बहुत महत्ता है.

खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुल्ला मुल्ला गांव में स्थित है। ये मंदिर माँ खीर भवानी को समर्पित है। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं। ये मंदिर, कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है। महाराग्य देवी, रग्न्या देवी, रजनी देवी, रग्न्या भगवती इस मंदिर के अन्य प्रचलित नाम है। इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरी सिंह द्वारा पूरा किया गया। कश्मीर में अमरनाथ गुफा के बाद इसे दूसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. 1989 में आतंकी घटनाओं से वहां के कश्मीरी पण्डित विस्थापित हो गए थे.