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मत मिट्टी फेंको आज दिये की बाती पर, वर्ना भगवा लहराएगा अब तुम्हारी छाती पर

(आरएसएस और आईएसएस की एक समान तुलना करने पर गुलाम नबी आज़ाद को जवाब देती कविता)

केसर की क्यारी में उपजा पौधा एक विषैला है,
ये गुलाम आज़ाद नबी तो बगदादी का चेला है,

संघ,जहाँ पर मानव सेवा पाठ पढ़ाया जाता है,
संघ,जहाँ पर देश धर्म का सबक सिखाया जाता है,
संघ,जहाँ पर नारी को देवी सा माना जाता है,
संघ,जहाँ पर निज गौरव पर सीना ताना जाता है,
संघ जहाँ पर फर्क नही है हिन्दू या इस्लामी में,
एक नज़र से सेवा करते बाढ़ और सुनामी में,

संघी वो है,जिसने भू पर बीज पुण्य का बोया है,
कश्मीर-केदारनाथ के भी घावों को धोया है,
महामारियों में रोगी की छूकर सेवा करते हैं,
संघी वो हैं जो भारत की खातिर जीते मरते हैं,

इनकी तुलना कैसे कर दी,
रक्त चाटने वालों से,
नन्हे मुन्हे मासूमों के शीश काटने वालों से,

नारी को अय्याशी का सामान बनाने वालों से,
बाज़ारो में इज़्ज़त को नीलाम कराने वालों से,

तुमने घर की तुलसी को विषबेल बताया, शर्म करो,
भगवा का काले झंडे से मेल बताया,शर्म करो,

ऐ गुलाम,मत मिटटी फेंको आज दिये की बाती पर,
वर्ना भगवा लहराएगा, अब तुम्हारी छाती पर ||