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शोध का समाजोपयोगी बन जाना उसकी सार्थकता – डॉ. चंद्रकुमार जैन

राजनांदगांव। संस्कारधानी के सतत सृजनरत यशस्वी वक्ता और दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन ने कहा है कि आज अध्यापन के अलावा दूसरे क्षेत्रों में विशेषज्ञों की बढ़ती मांग ने शोध के प्रति रुझान बढ़ाया है। लेकिन, आज अकादमिक शोध के गिरते स्तर और शोधार्थियों को पेश आ रही मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए शोध के बारे में एक बुनियादी समझ बनाना जरूरी हो गया है। शोध का सन्दर्भ बन जाना उसकी अकादमिक सफलता है, किन्तु शोध का समाजपयोगी बन जाना उसकी सार्थकता है।

डॉ. जैन यह भी कहा कि समाज के लिए शोध कार्य की उपयोगिता पर भी चिंतन होना चाहिए। अलमारियों की शोभा बढ़ाने वाले रिसर्च और ज़िंदगी में नई समझ और बदलाव लाने वाले रिसर्च के अंतर पर भी गौर किए जाना चाहिए। शोध की गरिमा सिर्फ डिग्री में नहीं, समाज के उत्थान में उसकी भूमिका से तय हो तो कोई बात बने। शोधकर्ता में भी अपने कार्य के प्रति गर्वबोध तभी संभव होगा जब वह अपने दृष्टिकोण और निष्कर्षों की सही प्रस्तुति कर सकेगा। लिखे हुए शोध और जिए हुए शोध में अंतर को समझना होगा।

डॉ. जैन ने कहा कि प्रकृति ने संसार को अनेक चमत्कारों से नवाजा है। कुछ चमत्कारों की खोज भी एक लंबे अंतराल के शोध के बाद ही संभव हो सकी थी। यही कारण है कि किसी भी सत्य की खोज और उसकी पुष्टि के लिए शोध की सही दृष्टि का होना अनिवार्य होता है। कुशल ब्लॉग और वेब लेखक की विशिष्ट पहचान बनाने वाले डॉ. जैन ने यूनीनॉर की ताज़ा वेबनार में कहा कि मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति ने ही शोध प्रक्रिया को जन्म दिया । किसी भी सत्य को निकटता से जानने के लिए शोध एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है।

डॉ. जैन ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि समाज के जटिल होने से मानव की समस्या भी विकट होती जा रही है। हर दिन एक नई समस्या से उसे दो चार होना पड़ता है। ऐसे में शोध का महत्त्व बढ़ जाता है। मानव की सोच विविधता वाली होती है और उसकी रूचि, प्रकृति, व्यवहार, स्वभाव और योग्यता भिन्न – भिन्न होती है। इस लिहाज से अनेक जटिलताएं भी पैदा हो जाती हैं । मानवीय व्यवहारों की अनिश्चित प्रकृति के कारण जब हम उसका व्यवस्थित ढंग से अध्ययन कर किसी निष्कर्ष पर आना चाहते हैं तो वहां पर हमें शोध का प्रयोग करना पड़ता है । इस तरह डॉ. जैन ने कहा कि सरल शब्दों में कहें तो सत्य की खोज के लिए व्यवस्थित प्रयत्न करना या प्राप्त ज्ञान की परीक्षा के लिए व्यवस्थित प्रयत्न भी शोध कहलाता है।

डॉ. जैन ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि किसी भी विषय पर अच्छा काम कर उसे उपयोगी और महत्वपूर्ण बनाया जा सकता है। वैसे इन दिनों मानविकी और समाज विज्ञानों में दलित, आदिवासी, स्त्री, भूमंडलीकरण, गरीबी, निजीकरण, उदारीकरण, बाजारवाद, किसान, युवा असंतोष जैसे विषयों का चलन है। प्राकृतिक विज्ञानों में कोई भी नई खोज या प्रयोग महत्वपूर्ण होता है जिसमें नए और उत्तेजक निष्कर्ष निकल रहे हैं । चिकित्सा के क्षेत्र में नित-नई खोजें इसी प्रक्रिया का परिणाम हैं। माइक्रोबायोलॉजी, बायोटेक्नालॉजी और नैनो टैक्नोलॉजी इन दिनों शोधकार्यो में लोकप्रिय विषय हैं।

शोध क्यों, इस सवाल का ज़वाब देते हुए डॉ. चंद्रकुमार जैन ने कहा कि किसी घटना के बारे में नई जानकारी प्राप्त करना, किसी व्यक्ति परिस्थिति या समूह की विशेषता का सही चित्रण करना, किसी वस्तु या घटना के घटित होने के कारणों की छानबीन करना जैसे कई कारण शोध के सबब बनते हैं। इससे पुरानी मान्यताओं की पुष्टि और नए विचारों की जगह भी साथ-साथ बनती है।