एक गरीब की बेटी को बचाने के लिए एक आईएएस अधिकारी का संकल्प

दस साल पहले एक बीमार बच्ची का आईएएस अधिकारी से मदद का ऐसा अनूठा रिश्ता बना, जो आज भी कायम है। दरअसल रतलाम के छोटे से गांव मंडावल में रहने वाली 14 वर्षीय श्वेता पिता बनेसिंह जन्म से ही थैलेसिमिया बीमारी से पीड़ित है। नौ संतानों के इसी बीमारी से खत्म होने के बाद श्वेता अपने माता-पिता की दसवीं संतान है।

बेटी के इलाज में खेती, घर सबकुछ बिक गया। तब से आईएएस अधिकारी बच्ची के इलाज में मदद कर रहे हैं। बच्ची का इंदौर के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है और अधिकारी कहीं भी हो मदद बराबर अस्पताल में पहुंच जाती है।

आईएएस अधिकारी शेखर वर्मा फिलहाल मप्र शासन में अपर सेक्रेटरी है। वे अपनी ड्यूटी से अलग इस बेटी को बचाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। बीते दस सालों में इनके कई जगह तबादले हुए, लेकिन वे मदद करते रहे। वे श्वेता के अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसका खर्चा अस्पताल में पहुंचा देते हैं।

वे बीते दस साल से थैलीसीमिया पीड़ित श्वेता का इलाज करवा रहे हैं। बच्ची की जान बचाने का अभियान 2007 में शुरू हुआ था, जब वर्मा रतलाम में अपर कलेक्टर थे। पिता बनेसिंह उनके पास बेटी श्वेता के इलाज के लिए मदद मांगने गए थे।
उस समय रेडक्रास से मदद कराई गई, लेकिन एक साल बाद फिर तबीयत बिगड़ने लगी। पिता आवेदन लेकर पहुंचे तो पता चला कि वर्मा का तबादला शाजापुर हो गया है। शाजापुर से निजी स्तर पर मदद का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद उनका तबादला रीवा, गुना, अलीराजपुर में बतौर कलेक्टर हुआ, लेकिन वे मदद करते रहे।

श्वेता को संक्रमण हो जाने से सालभर में 3-4 बार इंदौर के सीएचएल अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। मरीज को अस्पताल लाने ले जाने से लेकर पूरा इलाज का कितना खर्च आता है परिवार को कुछ नहीं पता। अब तक श्वेता को 546 यूनिट ब्लड चढ़ चुका है। वह हेपेटाइटिस सी से भी पीड़ित हो गई है।

मददगारों के लिए पूजा-पाठ

बनेसिंह बताते हैं कि बेटी की जिंदगी बचाने के लिए जितने भी अधिकारी, डॉक्टर और आम लोग आगे आते हैं हम उनके लिए हर महीने घर में पूजा पाठ करवाते हैं। वे समय रहते मदद के लिए आगे नहीं आते तो बेटी का बचना मुश्किल हो जाता।

मैं भी बनूंगी डॉक्टर

अस्पताल जाते-जाते श्वेता की डॉक्टरों से काफी दोस्ती हो गई है। वह सातवीं कक्षा में पढ़ती है। वह कहती है कि मैं भी पढ़ लिखकर डॉक्टर बनूंगी और गरीब बच्चों का इलाज मुफ्त में करूंगी।

संतुष्टि मिलती है

बच्ची के इलाज के लिए उसके पिता का सबकुछ बिक गया। उनकी परेशानी देख मैं खुद को रोक नहीं पाता, इसलिए बेटी के इलाज के लिए कोशिश करता रहता हूं। इस काम से मुझे संतुष्टि मिलती है। और लोग भी बच्ची की मदद करेंगे तो मुझे खुशी होगी। शेखर वर्मा, आईएएस, मप्र शासन

साभार- http://naidunia.jagran.com/ से