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गोबी मरुस्थल के बंधुआ श्रमिक से व्हारटन बिज़नेस स्कूल के पीएच डी तक का सफ़र .

कल एक ऐसी शख़्सियत से मुलाक़ात हुई जिसने चीन की सांस्कृतिक क्रांति के इतिहास को एक भुक्तभोगी की तरह प्रस्तुत किया है. नाम है वेजान शान. शान की पुस्तक Out of Gobi इन दिनों अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी चर्चित है , एमजान के अपने बुक स्टोर शृंखला पर यह शीर्ष दस पुस्तकों में स्थान बना चुकी है.

चीन उन चंद ऐसे देशों में से एक है जिसके अंदर घटित होने वाली बातों की वहाँ के बाज़ार पूरी दुनिया के लिए खुलने केबावजूद अन्तरराष्ट्रीय मीडिया को आज भी सही सही भनक भी नहीं लग पाती है . तो फिर साम्यवाद के आगमन के बादख़ास तौर से सांस्कृतिक क्रांति के दौरान क्या हुआ इसका तो अभी तक पता ही नहीं था. शान की पुस्तक उस दौरान केघटनाक्रम की कुछ भयावह परतें खोलने की कोशिश करती है , यह बताती है की चीनी क्रांति के महानायक माओ नेयुवाओं की पूरी की पूरी पीढ़ी को शिक्षा से वंचित कर दिया फलस्वरूप देश उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल करने की बजायउन्हें दूर दराज़ के उजाड़ क्षेत्रों में वर्षों तक बंधुआ मजबूर के रूप में इस्तेमाल करता रहा बाद में जब यह सनकपूर्ण क़वायदसमाप्त हुईं युवा वापस अपने अपने शहरों में लौटे और तब तक वे शारीरिक और मानसिक रूप से इतने चुक गए थे किबाक़ी का जीवन मामूली नौकरियों या फिर मेहनत मजूरी में काटना पड़ा.

यह सिलसिला १९६६ से लेकर १९७६ तक चला , इस बीच देश के सारे स्कूल कालेज़ो में लगभग ताले पड़े रहे. चीन कीसाम्यवादी पार्टी के अध्यक्ष माओ की इस क़वायद का घोषित लक्ष्य पूंजीवाद और परम्परावादियों सोच से आबादीदिलाना और माओ की अपनी विचारधारा को समाज में स्थापित करना था . साम्यवादी दल के अन्य स्थापनकारों को एकएक करके माओ ने ठिकाने लगाया क्योंकि उनमें कुछ अपना स्वतंत्र सोच रखते थे और कुछ के बारे में माओ महसूस करतेथे कि वे उनकी तरह आमूल परिवर्तन वादी या रेडिकल नहीं थे , ऐसे नेता कहाँ लुप्त हो गए ठीक ठीक पता नहीं है , उनकेइस कदम से पाँच पूर्व पड़े अकाल के कारण लगभग ३ करोड़ लोग मौत का शिकार हुए थे।

और माओ ने सत्ता यह कह कर क़ाबिज़ कर ली थी कि उनके अन्य साथी अकाल की चुनौती को सही प्रकार से हैंडल नहींकर पाए थे. लेकिन सच यह है की माओ द्वारा की गयी सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीन की अर्थ व्यवस्था ध्वस्त हो गई , कई करोड़ लोगों को प्रताड़ना झेलनी पड़ी और लाखों लोग मौत के घाट उतार दिए गए शुरुआत तबके पेकिंग और आजके बीजिंग में लाल अगस्त से हुई थी , लाखों मारे गए और लाखों युवा ग्रामीण और दूर दराज़ इलाक़ों में भेज दिए गए . शान को उत्तरी चीन के मंगोलिया से सटे गोबी मरुस्थल में भेजा गया जहां जाड़ों में तापमान शून्य से बीस डिग्री नीचे रहताहै . गोबी में इतनी ठंड के वावजूद हाल यह था कि इन युवकों को रहने के लिए केवल कच्चे झोंपड़े थे जिनमें ठंड दूर करनेका कोई उपाय नहीं था . खाना लगभग राशन जैसा था केवल दो बार भोजन और वो भी जिन जिन कर . शान बताते हैं किसोच और योजना का पूर्णतः अभाव था , उस ठंडे रेगिस्तान में गेहूं और बाद में चावल की खेती करने का टार्गेट दिया गयाथा ! मनोरंजन के नाम पर केवल रेडियो प्रसारण हुआ करते थे केवल चुनी हुई आठ संगीत रचनाओं का प्रसारण होता थाजिनका चयन स्वयं माओ की पत्नी ने किया था . गोबी के उन युवाओं में शान के जो मित्र बने वे वहाँ से आ कर कुछ भीनहीं कर सके क्योंकि वहाँ की प्रतिकूल जलवायु और रहने की विपिन परिस्थितियों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था .

जनवरी १९७९ में सांस्कृतिक क्रांति का समापन हुआ और देंग शियाओपिंग ने कमान सम्भाली और चीन की अर्थव्यवस्थाको बाज़ार उन्मुख बनाने और देश को अन्तरराष्ट्रीय उत्पादन केंद्र बनाने का सिलसिला शुरू किया . अन्य युवाओं की तरहशान भी घर लौटे. पता नहीं किस जुगाड़ से शान को अमेरिका स्कालरशिप पर आने का मौक़ा मिल गया . शायद यहइसलिए सम्भव हुआ कि उस समय चीन की सरकार अपने कुछ युवाओं को अन्य देशों में पढ़ने को भेजना चाहती थी किदेश में कुछ ऐसे लोग तय्यार हो सकें जो विदेशी बाज़ारों के बारे में बुनियादी जानकारी दे सकें .

शान अमेरिका आए , व्हारटन बिज़नेस स्कूल पेंसिलवेनिया में एडमिशन हो गया , क्लासिक क़िस्सा यह हुआ कि एडमिशनतो हो गया पर शान की तो प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा ही नहीं हुई थी ! लेकिन शान ने दिन रात एक करके व्हारटन से पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली।

आज शान हांग कांग में ग्लोबल निवेशक के रूप में कार्यरत हैं , गोबी मरुस्थल से शुरू हुई शान की यात्रा अपने आप मेंबेमिसाल है. जाते जाते हमने सोच कि शान से जान लें कि चीन के आर्थिक कायाकल्प का क्या रहस्य है . शान का कहनाहै की बुनियादी तौर पर चीन निवासी उद्दयमि हैं इसलिए जब देंग शियाओपिंग ने अपने देश को बाज़ार अर्थव्यवस्था केलिए खोला और उद्दयमि लोगों को भरपूर संरचनात्मक ढाँचा और पूँजी प्रदान की , नतीजा सामने है . हालाँकि इस बाज़ारअर्थव्यवस्था ने चीन में ऐसे भ्रष्टाचार को जन्म दिया है जिससे वहाँ की सरकार आज भी जूझ रही है .

चीन और भारत ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत साथ ही साथ की थी लेकिन आज चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत कीतुलना में पाँच गुना है , जिस तरह चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है संभवतः वह विश्व नेता अमरीका को भीआगे छोड़ देगा .

शान कहते हैं कि अगर भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को तेज गति देनी है तो विनिर्माण और उत्पादन के क्षेत्र में लगेउद्यमियों को पूँजीगत निवेश प्रदान करना पड़ेगा ताकि उनकी उत्पादन प्रक्रिया विश्व स्तरीय बन सके .