उज्जैन पर प्रकाशित होगा दो हजार पन्नों का ग्रंथ, शहर का नाम भी बदलेगा

उज्जैन के नाम पर दुर्लभ उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ तैयार हो रहा है, जो शोध के लिए महत्वपूर्ण आधार बनेगा। यह दो हजार पन्नों का होगा, जिसमें देश के बड़े विद्वानों के लेख होंगे। सरकार उज्जैन का नाम बदलकर प्राचीन नाम उज्जयिनी करने की भी कवायद कर रही है। यह ग्रंथ इसी की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। खास बात यह कि ग्रंथ जैन धर्म और वैदिक धर्म पर आधारित होगा।

जैन संत प्रज्ञासागर जी महाराज की पहल पर उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ बनाने की तैयारी शुरू हो गई है, जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद भी रुचि ले रही है। मध्यप्रदेश सरकार भी इस ग्रंथ के सृजन में रुचि ले रही है। दरअसल, पुराने जमाने में उज्जैन का नाम उज्जयिनी था, लेकिन बाद में यह उज्जैन हो गया।

प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार के पास उज्जैन के कई विद्वानों के प्रस्ताव पहुंचे है, जिसमें नाम उज्जयिनी करने का सुझाव दिया गया है। देश के कुछ नगरों के नाम बदले जा चुके हैं, इसलिए प्रदेश सरकार उज्जैन का नाम भी बदलने पर विचार कर रही है। उज्जैन जिले के अंतर्गत महिदपुर स्थित अश्विनी शोध संस्थान ने उज्जैन का प्रतीक चिह्न जारी करने का प्रस्ताव भेजा है।

फिलहाल, उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने की तैयारी जोरशोर से चल रही है। इसके लिए संघ में सह सर कार्यवाह रहे अभा कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी और विहिप के प्रांतीय सलाहकार तथा तपोभूमि के ट्रस्टी अनिल कासलीवाल, विक्रम विवि के कुलगुरु प्रो. अखिलेश पांडे, पुरावेत्ता डॉ. रमण सोलंकी, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी, पूर्व एडीएम डॉ. आरपी तिवारी आदि की उपस्थिति में देश के 15 विद्वानों की महत्वपूर्ण मीटिंग में अहम फैसले लिए जा चुके हैं।

उज्जयिनी वैदिक ग्रंथ करीब दो हजार पन्नों का होगा, जिसके दो खंड होंगे। एक जैन परम्परा का और दूसरा वैदिक परंपरा पर आधारित होगा। इसमें उज्जैन का प्राचीन इतिहास नए कलेवर और आकर्षण के साथ संग्रहित होगा। संपादक मंडल में इंदौर, वाराणसी, नागपुर, जयपुर, भोपाल के विद्वान शामिल किए गए हैं। गत 4 और 5 मई को इस
सिलसिले में महत्वपूर्ण बैठक भी हो चुकी है।

ग्रंथ के प्रधान संपादक इंदौर निवासी प्रो. अनुपम जैन ने बैठक में बताया, यह ग्रंथ उज्जैन का इतिहास, पुरावैभव और महत्ता बताएगा। इसका उपयोग दुनिया के शोधार्थी और अध्येता कर सकेंगे। डॉ. तिवारी के अनुसार वैदिक परंपरा के साथ पौराणिक परंपरा को भी जोड़ा जाए क्योंकि स्कंदपुराण के सातवें अवंतिखंड में उज्जयिनी का वर्णन है। ग्रंथ में उत्खनन से।प्राप्त सामग्रियों का दस्तावेजीकरण भी किया जाएगा।

जैन समाज की कथा है कि अपनी  बेटी  मैना सुंदरी  से पूछे बिना ही राजा पहुपाल ने  उसका विवाह श्रीपाल नाम के एक ऐसे व्यक्ति से तय की जिसे कोढ़ की बीमारी थी। मैना सुंदरी की माता निर्गुनमति व राज्य के कई लोगों के लाख मना करने के बाद भी बेटी ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्रीपाल से ब्याह रचाया। मैनासुंदरी ने अपने सुश्रावक पतिदेव महाराजा श्रीपाल के कोढ़ रोग निवारण हेतु उज्जैन नगरी में सिद्धचक्रजी की आराधना करके उस भयंकर रोग से मुक्ति दिलायी थी।

अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर ने उज्जैन नगर का प्रतीक चिह्न जारी करने का प्रस्ताव मध्यप्रदेश सरकार को भेजा है। जिसमें बताया है कि चार रेखाओं से जुड़े चार वृत्त प्रतीक चिह्न बनाया जाए।उज्जयिनी शब्द को पढ़कर ही एक क्रॉस से जुड़े चार वृत्तों की कल्पना की जा सकती है। उज्जयिनी प्रतीक का यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि यह उज्जयिनी से प्राप्त सिक्कों पर प्रचुर मात्रा में दिखाई देता है। उज्जयिनी चिह्न अयोध्या, कन्नौज, कोशांबी, मथुरा आदि के सिक्कों पर पाया जाता है जो इसकी सार्वभौमिकता बताता है।

उज्जैन और इतिहास
यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी।
उज्जैन को कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि हैं।

जैन धर्म के आराध्य भगवान श्री 1008 महावीर स्वामीजी का समोशरण यहां आया था।
जैन समाज की सती महासुंदरी मैना देवी का भी उज्जैन से संबंध रहा है।