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अवैज्ञानिक औषधि – मृत्यु को निमंत्रण

पिछले वर्ष जब कोरोना वायरस का आरम्भ हुआ तो यह बात सुन सुन सभी डरे, सहमे रहे कि 1918 से 1920 के बीच स्पेनिश फ्लू से किस प्रकार भारत भर में डेढ़ करोड़ लोग मारे गये, पांच करोड़ लोग विश्व भर में मरे। परन्तु इस विषय पर औषधि और विज्ञान के किसी विशेषज्ञ ने यह नहीं बताया कि वास्तव में उस समय इतने लोगों की मृत्यु का कारण कोई फ्लू मात्र नहीं अपितु एस्पिरिन की ओवरडोज थी। लगभग 50 से 70 वर्ष बाद विज्ञान को यह पता लग पाया कि उस समय दी जाने वाली 8 से 30 ग्राम प्रतिदिन की एस्पिरिन आज टॉक्सिक माने जानी वाली इसकी खुराक से 10 से 30 गुना अधिक थी और इसी कारण इतनी बड़ी संख्या में लोग मरे भी। परन्तु क्या कारण है कि यह बात सभी चिकित्सा और औषधि अनुसंधान के लोगों द्वारा छुपाई जा रही है। लोग भी सुनने समझने की अपेक्षा भय में रहने को अधिक इच्छुक दिख रहे हैं।

एस्पिरिन की खोज उससे लगभग 30 वर्ष पहले की गई थी और बेयर कंपनी के पास इसे बनाने का एकाधिकार था। 1918 में ही बेयर का एकत्व अधिकार छीन लिया गया और बहुत सी कंपनियां एस्पिरिन बनाने लगी, बहुत लाभ कमाने लगी। वास्तव में तो ज्वर को अप्राकृतिक रूप से नीचे लाने का सम्भवतः यह पहला ही बड़ा प्रयोग भी था और परिणाम भी समक्ष है। आज भी हर वैज्ञानिक अनुसंधान यही बताता है कि इस प्रकार वायरस के प्रकोप में ज्वर को नीचे करने से रोग की अवधि भी लंबी होती है और मृत्यु दर भी बहुत बढ़ जाती है। आप यह जान कर भी अवाक् रह जायेंगे कि ज्वर नीचे करने वाली एस्पिरिन आदि दवाओं की खोज जो लगभग 1890 में हुई, उससे पहले कभी कोई वायरस महामारी भी विश्व भर में नहीं आयी थी।

यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि श्री रवीन्द्र नाथ टैगोर ने, जो आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाता भी थे, अपने आश्रम में स्पेनिश फ्लू से पीड़ित लोगों को आयुर्वेदिक काढ़ा- पंचतिक्त बना कर दिया और सब ठीक होते चले गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे एक पत्र में यह सामने भी आया कि उनके आश्रम में रोगियों के बिस्तर खाली पड़े थे। ऐसा ही समाचार जर्मनी से मिला कि वहां जिन लोगों ने होम्योपैथिक औषधियां लीं उनकी मृत्यु दर 30 गुना कम रही। आप स्वयं भी इन तथ्यों की पड़ताल कर सकते हैं।

जिस प्रकार विज्ञान 50 वर्षों तक यह नहीं पता कर पाया कि सन् 1918 से 20 के बीच इतने लोगों की मृत्यु हुई उसका कारण एस्पिरिन की ओवरडोज रही, हम वही अशुद्धि आज भी दोहरा रहे हैं और आज दिये जाने वाले उग्र एलोपैथिक उपचार और विशेष रूप से ज्वरनाशक पैरासिटामोल के अत्यधिक प्रयोग के कारण ही इतने लोग अकाल काल को प्राप्त हो रहे हैं।

एण्टीबायोटिक्स का प्रयोग: गोद के शिशु को छोड़ जो गर्भ में नहीं आया उसकी चिंता

बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि सामान्य रूप से जो एंटीबायोटिक हर रोग में दिए जाते हैं उनका उद्देश्य आपको आगे हो सकने वाली बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचाव के लिए भी होता है। मेडिकल की भाषा में इसे प्रोफिलेक्सिस कहते हैं। जैसे यदि आपका कोई बड़ा ऑपरेशन होना है तो दो-तीन दिन पहले से ही एंटीबॉयटिक खिलाने शुरू कर दिए जाते हैं।

ऐसा ही कुछ कोविड-19 में रहा है। चाहे आईसीएमआर ने या डब्ल्यूएचओ ने ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं दी है कि एंटीबायोटिक देना चाहिए। अपितु बड़े डॉक्टर और विशेषज्ञ यह बताते हैं कि कोविड-19 में एंटीबायोटिक नहीं देना चाहिए, उसका कोई लाभ नहीं। पर यहां आश्चर्य वाली बात है कि मैंने एक भी ऐसा कोविड का प्रिसक्रिप्शन नहीं देखा जिसमें कोई एंटीबायोटिक न लिखा हो। कुछ तो ऐसे भी देखे हैं जिनमें दो एंटीबायोटिक एक साथ लिखे हैं।

यदि मैं आपसे पूछूं कि आपकी गोद में जो आपका छोटा बच्चा है और वह बहुत बीमार है तो आप उसका इलाज करेंगे या उस बच्चे की चिंता करेंगे जो अभी गर्भ में भी नहीं आया। जबकि यहां तो आप गोद वाले बच्चे को हानि पहुंचा कर भी उस बच्चे को बचाने का प्रयास कर रहे हैं जिसका अभी कोई अता-पता ही नहीं। जी हां, मैं सच कह रहा हूं। सामान्य रूप से जब यह बात होती है कि हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ने ही वायरस के विरुद्ध एंटीबाडीज़ बनानी हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि हमारे व्हाइट ब्लड सेल्स जिनमें बी सैल्ज़ और टी सैल्ज़ विशेष रूप से वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी बनाते हैं और वायरस से इनफेक्ट हुए सैल्ज़ को नष्ट करते हैं।

कोई विश्वास नहीं करेगा जब यह मैं बताऊंगा कि सबसे सामान्य रूप से भी दी जाने वाले दो एंटीबायोटिक में से एक हमारे इम्यून सिस्टम के बी सैल को समाप्त करता है और दूसरा टी सैल को, अजितथ्रोमायसिन टी सेल को और डॉक्सीसाइक्लिन बी सैल को। तो अब आपको मौतों का कारण समझ में आएगा कि पहले तो आपने ज्वर उतारकर और वह भी पेरासिटामोल से शरीर की इम्युनिटी को इतना खराब कर दिया और ऑक्सीडेशन आरंभ हो गई, साईटोकाईन स्टौर्म जैसी भयंकर स्थिति बना दी, और फिर भी यदि हमारा शरीर कोई प्रयास कर रहा है वायरस से लड़ने के लिए तो आपने टारगेट करके अपने ही सेनापतियों का कत्ल भी कर दिया।

यह कोई सामान्य सी बात नहीं है कि आप पढ़ लें और भूल जाएं। यह जीवन या मरण का प्रश्न है। यह सारी बातें मेरी नहीं विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई है, विश्वविख्यात मेडिकल जरनल्ज़ में छपी हैं।

लेखक

विवेकशील अग्रवाल

(स्वास्थ सम्बंधित शोधकर्ता,समाज सेवी एवं व्यवसायी)

नई दिल्ली।

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