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वीरांगना कलावती, जिसने पति की रक्षा के लिए उनके शरीर से विष चूस लिया

वीरांगना कलावती एक ऐसी वीर योद्धा थी, जिसने यह कर के दिखा दिया कि महिलाएं, कभी भी पुरुष से कम नहीं होती| भारतीय नारियाँ संकट के समय भी पुरुष के कंधे के साथ कंधा मिला कर शत्रु से लड़ने की शक्ति रखती हैं| नारियों को युद्ध क्षेत्र में भेजना नहीं पड़ता अपितु वह अपने जीवन की परवाह किये बिना ही अपने देश, अपने धर्म, अपनी जाति अथवा अपने परिवार की रक्षा के लिए स्वयं ही आगे आ जाती हैं| इतना ही नहीं यदि आवश्यकता पड़े तो अपने जीवन को भी इन सब से कम समझते हुए सब प्रकार का बलिदान देने के लिए सदा तैयार रहती हैं| इन में तो इतनी शक्ति होती है कि यह जहाँ अपने शत्रु पर विजयी होती हैं, वहां अपनी मृत्यु पर भी विजयी हो जाती हैं| जहाँ तक रानी कलावती का प्रश्न है, वह राजा कर्ण सिंह की पत्नी थी और समय आने पर उसने अपनी शक्ति का खूब प्रदर्शन किया और अपने पति को मौत के चंगुल से निकाल लाई|

भारत पर अलाउद्दीन खिलजी अपने राज्य के विस्तार में लगा था, इस उददेशय से ही उसने दक्षिण भारत पर भी अपने आधिपत्य का स्वप्न संजो लिया| अपने इस स्वप्न को साकार करने के लिए उसने अपने सेनापति को इसे संपन्न करने के लिए दक्षिण भारत की और एक भारी सेना के साथ रवाना कर दिया| जब वह दक्षिण भारत की और जा रहा था तो मार्ग में एक छोटा सा राज्य आ गया| इस राज्य का राजा कर्णसिंह था| राज्य तो छोटा सा था किन्तु हिम्मत इस राजा में किसी बड़े राजा से भी कहीं अधिक थी| अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ने इस राज्य की जानकारी मिलते ही सोच लिया कि क्यों न लगे हाथ इस राज्य पर भी अधिकार कर लिया जाव? यह विचार आते ही उस सेनापति ने राजा कर्ण सिंह को आधीनता स्वीकार करने के लिए सन्देश भेज दिया| उसे पूरा विश्वास था कि सन्देश मिलते ही यह छोटा सा राजा उसके झंडे के नीचे आ जावेगा किन्तु अपने सन्देश का प्रत्युत्तर सुनकर उसको अत्यधिक आश्चर्य भी हुआ और गुस्सा भी आया| प्रत्युत्तर था कि “ युद्ध किये बिना आधीनता स्वीकार करना क्षत्रिय धर्म के विपरीत है|”

उधर संदेशवाहक ने राजा का उत्तर अपने सेनापति को सुनाया और इधर राजा कर्ण सिंह ने समझ लिया कि अब युद्ध अनिवार्य है, इस कारण उसने तत्काल युद्ध की तैयारियां आरम्भ कर दीं| प्रत्युत्तर पाकर आगबबूला हुए सेनापति ने तत्काल अपनी सेना को इस राजा पर आक्रमण करने का आदेश दे डाला|

हमारे देश की यह प्राचीन परम्परा रही है कि जब जब देश पर विपत्ति आई और युद्ध् की अवस्था बनी तब तब राजा युद्ध मे उतरने से पूर्व अपनी पत्नी के पास जाकर उस से युद्ध के लिए विदा लिया करता है| अत: कर्ण सिंह भी विदाई के लिए अपनी पत्नी कलावाती के पास गया| रानी ने अपने पति को युद्ध के लिए विदा देने के स्थान पर उनके सामने अपनी एक मांग रख दी, जो इस प्रकार थी|

रानी ने अपनी इस मांग में अपने पति से प्रार्थना करते हुए कहा- ” पतिदेव! मैं सदा ही आपके संग रही हूँ, फिर चाहे वह महल हों या फिर राज दरबार हो| मैं आपकी जीवन संगिनी होने के कारण आप से अलग तो कभी होने का सोच भी नहीं सकती| इसलिए मुझे भी आप युद्ध में अपने साथ ले चलिए| युद्धभूमि में भी साथ रहने का अवसर पाकर मुझे आनंद आवेगा| इस शेरनी के प्रहार हो सकता है कि आपके समान न हों किन्तु आक्रमणकारी गीदड़ों का विनाश करने में तो पूर्णतया सक्षम ही होंगे|” आरम्भ में तो राजा ने उसे समझाने का प्रयास किया किन्तु उसकी दृढ़ता के सामने राजा झुक गया और उसे अपने साथ युद्ध में जाने की अनुमति दे दी| बस फिर क्या था रानी ने झटपट स्वयं को शस्त्रार्थ से सुसज्जित कर लिया और अपने पति राजा कर्ण सिंह के साथ युद्ध के लिए रवाना हो गई| दोनों अपनी बहुत ही छोटी सी सेना के साथ थे किन्तु इन दोनों की वीरता के कारण इस सेना का मनोबल इतना उंचा हो गया था कि वह अपनी विजय निश्चित मानकर युद्धभूमि की और बढ़ रहे थे|

खिलजी की सेना पहले से ही युद्धक्षेत्र में आ चुकी थी| राजा कर्ण सिंह कि सेना के सामने यह शत्रु सेना टिड्डी दल के समान दिखाई दे रही थी| अत: ज्यों ही दोनों सेनायें आमने सामने हुईं कि तत्काल युद्ध का शंखनाद हो गया और दोनों और की सेनायें एक दूसरे से आ भिडी| इस युद्ध में राजा कर्णसिंह की सेना ने भयंकर मारकाट्र मचा दी| दूसरी और राजा कर्ण सिंह और उनकी रानी कलावती, दोनों की तलवारें चपला के समान चल रहीं थीं और जिधर भी जातीं उधर ही शत्रुओं के मुंडों के ढेर लगा जाते| जब रानी इतने उत्साह के साथ शत्रु को काट रही थी तो इसे देख उनकी सेना का उत्साह भी अत्यधिक बढ़ गया और इस प्रकार बढे हुए उत्साह से उसकी सेना ने और भी अधिक भयंकर रूप धारण करके खिलजी की सेना को काटना आरम्भ कर दिया| अब इस वीर रानी की वीरता को देख उसके सब सैनिकों ने भी अपने प्राण हथेली पर रख लिए और युद्धभूमि में एक भयंकर दृश्य पैदा कर दिया| वह मिलकर खिलजी की सेना पर टूट पड़े| बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा और इस प्रकार इस छोटी सी सेना से सामना करने में स्वयं को असमर्थ पाकर खिलजी के सैनिक पीछे हटने लगे| शत्रु सेना के पीछे हटते ही राजा कर्ण सिंह की विजय हो गई| विजयी होते हुए भी राजा कर्ण सिंह को एक एसा बाण आ कर लगा कि वह मूर्छित होकर गिर पड़ा| यह बाण विष से बुझा हुआ होने के कारण अब राजा के प्राणों का अंत निकट दिखाई दे रहा था|

बाण विषाक्त था, राजा का प्राणांत निकट दिखाई दे रहा था किन्तु बचाने के प्रयास भी निरंतर किये जा रहे थे| राजा के प्राणों की रक्षा के लिए इस विष को चूसने वाले की आवश्यकता थी किन्तु खूब खोज करने पर भी विषपान करने वाले व्यक्तियों में से कोई भी नहीं मिला| ज्यों ज्यों विलम्ब हो रहा था, त्यों त्यों राजा के प्राणों का खतरा भी बढ़ता जा रहा था| इसे देख कर रानी की चिंता भी लागातर बढ़ती ही जा रही थी| अब तो तत्काल किसी निर्णय की आवश्यकता थी| रानी ने जब देखा कि विष चूसने वाला कोई व्यक्ति नहीं मिल रहा तो उसने बिना कुछ भी समय गंवाए राजा के शरीर का विष चूसना आरम्भ कर दिया| उसने विष चूसना तो आरम्भ कर दिया किन्तु वह विष को चूसने की विधि नहीं जानती थी, वह यह भी नहीं जानती थी कि इस प्रकार के प्रयास से उसकी मृत्यु भी हो सकती है और न ही यह सब सोचने के लिए उसके पास कुछ समय ही था| इस समय तो बस उसका एक ही धर्म था कि किसी भी प्रकार अपने पति के जीवन की रक्षा की जावे|

अब उसने अपने धर्म को प्रमुखता दी और अपने पति की जान बचाने के लिए उसने राजा के शरीर से विष का स्वयं पान करना आरम्भ कर दिया| इस प्रकार राजा के शरीर से विष चूसने से उसके शरीर का विष धीरे धीरे कम होता गया और इस विष का शरीर में फैलाव होने की गति रुक गई| यह प्रक्रिया अभी चल ही रही थी कि कुछ ही समय में राजा को होश भी आ गई और कुछ ही क्षणों मे राजा ने अपने नेत्र खोल लिए| नेत्र खोलते ही राजा की दृष्टि अपनी पत्नी रानी कलावती पर गई, जो इस समय भी उनके शरीर का विष निकालने के लिए चूस रही थी| रानी विषाक्त खून को चूस चूस कर पास ही फैक रही थी|

रानी कलावती का स्वयं को कष्ट में डालकर राजा को बचाने के लिए उनके शरीर से विष चूस कर बाहर निकालते देख राजा अपनी रानी के लिए अत्यधिक आभारी हो गए| इस क्रिया के निरंतर चलते रहने से राजा कर्ण सिंह कुछ ही देर में पूरी तरह से स्वस्थ हो गए और उठा कर बैठ गए| ज्यों ही राजा उठे तो उन्होंने देखा की उनकी रानी कलावती मूर्छित होकर गिर रही हैं| राजा ने तत्काल अपनी रानी कलावती को सहारा देकर संभालने का प्रगास किया किन्तु अब तक बहुत देर हो चुकी थी| रानी के शरीर में इतना विष प्रवेश कर चुका था कि उसके प्राण शरीर छोड़ चुके थे| अपनी रानी की यह अवस्था देखकर राजा कर्ण सिंह की आँखों से अविरल अश्रुओं की धारा बहने लगी|

इस प्रकार भारत की इस वीरांगना रानी ने अपने देश की परम्पराओं का पालन करते हुए अपने पति की रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया और ठीक उस प्रकार पति को मौत के मुंह से निकाल पाने में सफल हुई जिस प्रकार सति अनुसूईया ने अपने पति को यम के हाथों से छीनकर वापिस लाई थी| चाहे यह सब करते हुए उसके अपने प्राण भी नहीं रहे किन्तु अपने पति को बचा पाने मे वह सफल रही| इस प्रकार रानी कलावती का बलिदान भारत के इतिहास में विशेष स्थान बनाए हुए है| उसकी शौर्य की गाथाएँ, उसका समर्पण का भाव इतिहास के पन्नो में एक पुनीत स्थान लेने में सफल हो पाया है और इसकी गाथाएँ आज भी देश भर में बड़ी वीरता से गाई जाती हैं|

डॉ. अशोक आर्य
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