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हम भूल गए अपने हिन्दू नव वर्ष गुड़ी पड़वा को

हिन्दू धर्म श्रेष्ठ धर्म है, परन्तु हिन्दू ही इस बात को भलीभांति समझ पा रहे हैं। आज का हिन्दू पाश्चात्य संस्कृति में खो गया है और यही कारण है कि भारत का हिन्दू पाश्चात्य रंग में रंगे हुए 31 दिसम्बर की मध्यरात्रि को नववर्ष का स्वागत करता है। इस दिन रात्रि में मांसाहार, मद्यपान, फिल्मी गीतों पर नृत्य, पार्टीयां करना आदि अनेकों कुप्रथाओं में वृद्धि की जा रही है। स्वतंत्रता के पश्चात् भी अंग्रेजी मानसिकता में जकड़े रहने का यह स्पष्ट उदाहरण है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के समय वसंत ऋतु में वृक्ष पल्लवित हो जाते हैं। उत्साहवर्धक और आल्हाददायक वातावरण हो जाता है साथ ही ग्रहों की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रकृति भी नवीन वर्ष का स्वागत सहर्ष कर रही है। चैत्र शुक्ल पक्ष के आरंभ होने से पूर्व प्रकृति नववर्ष का संदेश देने लग जाती है।

सनातन धर्म के हिसाब से भी यदि देखें तो इस दिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने बाली का वध किया था। बाली के अत्याचारों से प्रजा मुक्त हुई और समस्त प्रजा द्वारा घर-घर उत्सव मनाया गया और ध्वजाएं फहराई गई। प्राचीन कथाओं के अनुसार इस दिन ब्रहमदेव ने सृष्टि का निर्माण किया, सत्ययुग का आरंभ हुआ। यही वर्ष का आरंभ है।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के सूर्योदय के साथ ही नवीन वर्ष आरंभ हो जाता है। अतः यह एक तेजोमय दिवस है। हिन्दू संस्कृति द्वारा विरचित संस्कार, त्यौंहार, उत्सव, व्रत, धार्मिक कृत्यों से मनुष्य की वृत्ति सात्विक बनकर उसका जीवन संयमी और संतुष्ट होता है।

हिन्दू नववर्ष जहां सूर्योदय के साथ आरंभ होता है, वहीं अंग्रेजी नववर्ष मध्यरात्रि 12 बजे के पश्चात् होता है। मध्यरात्रि के समय तमोगुण में अधिकता आ जाती है, जो मनुष्य जीवन के लिए हानिप्रद है। पाश्चात्य संस्कृति तामसिक यानि कष्टदायी है, तो हिन्दू संस्कृति सात्विक है। संक्षेप में यह कहना उचित होगा कि हिन्दू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है।

चैत्र शुल्क प्रतिप्रदा के दिन शालिवाहन नामक कुम्हार द्वारा मिट्टी के सैनिकों की सेना तैयार करके शत्रुओं को परास्त किया था। अतः इस दिन शालिवाहनन शक का प्रारंभ होना भी माना जाता है। भारत में आंध्रा और कार्नाटक में यह उगादि तथा गुड़ी पड़वा के नाम से यह पर्व मनाया जाता है। अतः यदि हम इस समृद्ध नवीन वर्ष तथा हमारी पुरातन संस्कृति को त्यागकर किसी अन्य संस्कृति की ओर अग्रसर होते हैं तो इसे मात्र हमारी अज्ञानता ही कहा जा सकता है। आज हिन्दू नववर्ष की सार्थकता को पुनः स्थापित करना हर हिन्दू का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए

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देवेन्द्र सिंह चौहान (सांचोरा)
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