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पश्चिम रेलवे द्वारा राजभाषा एवं राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा

सेवा में,
मुख्य महाप्रबंधक
एवं
मुख्य राजभाषा अधिकारी,
पश्चिम रेलवे,
चर्चगेट, मुंबई

विषय: पश्चिम रेलवे द्वारा राजभाषा एवं राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा के सम्बन्ध में लोक शिकायत

महोदय/महोदया,

पिछले कई वर्षों से मैं पश्चिम रेलवे द्वारा राजभाषा हिन्दी और राजभाषा संबंधित नियमों /निर्देशों आदि की उपेक्षा देख रहा हूँ आज यह पत्र लिख रहा हूँ जिसके मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:

स्टेशनों के नामों की वर्तनी और अन्य सभी निर्देशपटों पर अनेक त्रुटियाँ पाई जाती हैं, उनमें सुधार करवाएँ। त्रुटियों के कुछ उदाहरण – डिबा, डबा, सांताक्रुझ, स्वचालीत सीढीयां, उपर, पुर्व, पश्चीम, महीला, मुत्रालय आदि पश्चिम रेलवे की वेबसाइट का मुखपृष्ठ 100 % द्विभाषी बनवाएँ ताकि हिन्दी को प्राथमिकता मिले, हिन्दी वेबसाइट कई सालों से अपडेट नहीं हुई है, हिन्दी वेबसाइट पर कई पृष्ठ खाली पड़े हैं उनमें हिन्दी में नवीनतम जानकारी डालें या पूरी वेबसाइट द्विभाषी कर दें ताकि अंग्रेजी में अपडेट के साथ तुरंत हिन्दी सामग्री भी अपडेट हो सकेगी। ‘संपर्क करें’ टैब में कोई संपर्क नहीं डाला गया है खाली पड़ा है।

फेसबुक-ट्विटर पर जानकारी अनिवार्य रूप से स्थानीय भाषा और हिन्दी में डाली जानी चाहिए, डीपी में परिचय एवं डीपी नाम हिन्दी-अंग्रेजी दोनों में लिखें, फिलहाल सिर्फ अंग्रेजी में है। स्थानीय-भाषा -हिन्दी में जानकारी डालने से आम जनता को सुविधा होगी।

स्टेशनों पर लगे टीवी पैनलों/टिकट खिड़कियों पर लगी टीवी स्क्रीनों पर सूचनाओं/टिकट की जानकारी में नियमानुसार भाषा क्रम स्थानीय भाषा, हिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिए; वर्तमान समय में इनमें सूचना/जानकारी/टिकट विवरण में भाषा-क्रम “पहले अंग्रेजी, फिर स्थानीय भाषा और अंत में हिन्दी” अपनाया गया है । आज यूनिकोड के अनेक सुन्दर फॉण्ट उपलब्ध हैं टीवी पैनलों/टिकट खिड़कियों पर लगी टीवी स्क्रीनों में उनका इस्तेमाल किया जाए, अब मंगल फॉण्ट के इस्तेमाल की मजबूरी नहीं है।

कागज रहित टिकट भी त्रिभाषा में होना चाहिए, जो कि वर्तमान में सिर्फ अंग्रेजी में है। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते वे इस सुविधा का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए। कागज रहित टिकट के मोबाइल एप में तुरंत हिन्दी एवं मराठी का विकल्प जोड़ा जाए।

प्लेटफार्म टिकट पर स्टेशन का नाम हिन्दी में होना चाहिए और “वैलिड फॉर टू आवर्स” valid for 2 hours के पहले “दो घंटे के लिए वैध” छपना चाहिए। मासिक रेलवे पास पूरी तरह द्विभाषी छपना चाहिए। जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते वे न तो पढ़ पाते हैं न इस वाक्य को समझ पाते हैं इसलिए कई बार उन्हें चल टिकट निरीक्षकों (च.टि.नि.) से जूझना पड़ता है। यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए।

भारतीय रेल की हिन्दी/ स्थानीय भाषा की घोषणा में भी अंग्रेजी घुस रही है, इसे तुरंत प्रभाव से बंद करें। हिन्दी/स्थानीय भाषा की घोषणाओं में गाड़ी संख्या पहले की तरह हिन्दी/ स्थानीय भाषा में ही बोली जानी चाहिए न कि अंग्रेजी में। उदाहरण: यात्रीगण कृपया ध्यान दें [हिन्दी में] गाड़ी संख्या वन वन जीरो सेविन टू आज प्लेटफार्म नंबर वन पर आ रही है। मतलब अब आपको गाड़ी संख्या और प्लेटफार्म क्रमांक भी अंग्रेजी गिनती में ही सुनाई देगा। अभी यह व्यवस्था शायद महानगरों तक की गई है हो सकता रेलवे अधिकारी इस बात को समझ चुके हैं कि हिन्दी में गाड़ी संख्या यात्री समझ नहीं सकते हैं इसलिए गाड़ी संख्या अंग्रेजी में ही बोली जानी चाहिए। पर फिर हिन्दी घोषणा भी बंद कर के केवल अंग्रेजी घोषणा ही रहनी चाहिए, जो लोग हिन्दी में बोली गाड़ी संख्या नहीं समझ पा रहे हैं तो वे हिन्दी में की गई घोषणा भला कैसे समझेंगे? यह पिछले दो तीन सालों से चल रहा है निर्णय किसने लिया समझ से परे है। शायद रेलवे के अधिकारी रेलवे की त्रिभाषा नीति से नाखुश हैं इसलिए मिलावट करने लगे हैं रेलवे की हिन्दी, स्थानीय भाषा में की जा रही घोषणा में गाड़ी संख्या भी हिन्दी, स्थानीय भाषा में की जानी चाहिए।यह आम यात्रियों के साथ भाषाई भेदभाव है जिसे तुरंत रोकना चाहिए।

उपनगरीय ट्रेन टिकट पर स्टेशनों के नाम के अलावा सबकुछ अंग्रेजी में छपता है, उसे भी स्थानीय भाषा और हिन्दी में छापना चाहिए क्योंकि अंग्रेजी जानने वाले कम हैं उनकी सुविधा का तो रेलवे ने ध्यान रखा है परन्तु जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं उनकी सुविधा का ध्यान क्यों नहीं रखा जा रहा है? उदाहरण: please commence your journey within one hour के बदले “अपनी यात्रा एक घंटे के भीतर शुरू करें” मुद्रित होना चाहिए।

स्वचालित टिकट विक्रय मशीनों (एटीवीएम) में स्थानीय भाषा को डिफ़ॉल्ट सेट करवाएँ, मशीन पर छपे निर्देश अथवा स्टीकर रूप में लगे निर्देश केवल अंग्रेजी में नहीं होने चाहिए, उसमें त्रिभाषा सूत्र का पालन करवाएँ तथा नियमानुसार भाषा क्रम स्थानीय भाषा, हिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिए; न कि पहले अंग्रेजी, स्थानीय भाषा और अंत में हिन्दी।
स्टेशनों पर लाइसेंस प्राप्त हर दूकान का नामपट (बोर्ड), भोजन-सूची (मेनू), मूल्य-सूची (रेटलिस्ट) आदि में नियमानुसार तीनों भाषाओं के इस्तेमाल का निर्देश जारी करें, ज्यादातर दुकानदार केवल अंग्रेजी का इस्तेमाल कर रहे हैं या कुछेक दूकानदार हिंदी को सबसे छोटे अक्षर में अंग्रेजी से नीचे इस्तेमाल करते हैं।इनमें भी भाषा क्रम स्थानीय भाषा, हिन्दी और बाद में अंग्रेजी होना चाहिए। इससे आम और खास सभी यात्रियों को सुविधा रहेगी और सिर्फ अंग्रेजी रेटलिस्ट, मेनू के माध्यम से दुकानदार आम ग्राहकों को लूट नहीं सकेंगे।

भारतीय रेल ने हमेशा राजभाषा हिन्दी प्राथमिकता दी है पर जबसे नए डिब्बे पटरियों पर दौड़ रहे हैं, उनमें हिन्दी की उपेक्षा की जा रही है। पहले आये नए डिब्बों और चेन्नई से हाल में आये नए डिब्बों पर रोमन लिपि में WR बहुत बड़े अक्षरों में लिखा गया है पर कहीं किसी भी डिब्बे पर भी कहीं भी “परे” अक्षरों को प्रयोग नहीं किया गया है और चेन्नई से हाल में आये नए डिब्बों पर Western Railway तो लिखा गया है पर “पश्चिम रेलवे” नहीं। नए डिब्बों पर प्राथमिक आधार पर अंग्रेजी के समान ही “परे” अक्षरों और “पश्चिम रेलवे” को अंकित करवाने की कृपा करें।
राजधानी /शताब्दी गाड़ियों में भोज सूची (मेनू) छापने में हिन्दी की उपेक्षा की जाती है, मेनू पूर्णतः द्विभाषी (हिन्दी -अंग्रेजी) में छपना चाहिए और भाषा क्रम में हिंदी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इन गाड़ियों पर यात्रियों के लिए सिर्फ अंग्रेजी के अखबार ही रखे जाते हैं, हिन्दी-मराठी अथवा गुजराती के अखबार नहीं मिलते हैं, या तो अंग्रेजी के अखबार रखना बंद करें अथवा हिंदी-स्थानीय भाषा के अखबार भी रखवाने की चेष्टा करें।

आशा है आप सभी बिन्दुओं पर व्यापक यात्रीहित में सकारात्मक सुधार करेंगे, आपके उत्तर की प्रतीक्षा में।

भवदीय
प्रवीण जैन
103 ए, आदीश्वर सोसाइटी,
सेक्टर 9 ए, वाशी, नवी मुम्बई 400703