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हिजाब को लेकर उच्च न्यायालय ने क्या कहा?

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को हिजाब विवाद पर फैसला सुना दिया। तीन जजों की बेंच ने साफ किया कि इस्लाम में हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक अभ्यास नहीं है और स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते। कोर्ट ने अपने फैसले को लेकर कई उदाहरण दिए और धार्मिक ग्रंथों का जिक्र कर इसकी कई वजहें भी बताईं।

आखिर कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब विवाद पर क्या कहा और स्कूल-कॉलेजों की यूनिफॉर्म को लेकर अदालत की टिप्पणी क्या रही?

1. कोर्ट ने कहा कि इस्लाम का प्रमुख धर्मग्रंथ कुरान महिलाओं के लिए हिजाब को अनिवार्य नहीं करता। हिजाब पहनने की प्रथा का संस्कृति से लेना-देना हो सकता है लेकिन इसका धर्म से कोई वास्ता नहीं है। इसलिए जो चीज धर्म में ही बाध्यकर नहीं है, उसे कोर्ट में जुनूनी बहसों और सार्वजनिक प्रदर्शनों के जरिए किसी धर्म का अतिआवश्यक अभ्यास नहीं माना जा सकता।

2. हिजाब को इस्लाम धर्म के आधारभूत वेशभूषा से नहीं जोड़ा जा सकता। ऐसा नहीं है कि अगर हिजाब न पहना जाए तो यह कदम उठाने पापी बन जाते हैं और इस्लाम का सारा वैभव खत्म होने लगता है। कोई भी धर्म हो, जो भी उनके धर्मग्रंथों में लिखा हो। वह पूरी तरह कभी भी अनिवार्य नहीं होता।

3. कोर्ट ने कहा कि स्कूलों की तरफ से छात्र-छात्राओं के लिए एक यूनिफॉर्म बनाने का प्रावधान उन्हें एक जैसा दिखाने के लिए है और यह संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के लक्ष्य को भी हासिल करने वाला है। स्कूल वह योग्य स्थान हैं, जो अपनी प्रकृति से ही व्यक्तिगत अधिकारों को थोपने के उलट हैं। स्कूल बच्चों में सामान्य अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने वाली जगहें हैं।

4. “आखिर क्यों स्कूलों में हिजाब की उचित गुंजाइश नहीं रह जाती? दरअसल, अगर ऐसा प्रस्ताव मान लिया जाता है, तो स्कूल यूनिफॉर्म अपना मूलभूत संदेश ही खो देगी। यूनिफॉर्म इस बात का परिचायक है कि सब छात्र एक जैसे हैं।”

5. कोर्ट ने छात्राओं की ड्रेस को लेकर कहा, “छात्राओं के दो वर्ग हो सकते हैं- एक जो यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनें और दूसरा जो इनके बिना स्कूल आएं। लेकिन इससे स्कूलों में एक सामाजिक अलगाव का भाव स्थापित होने लगेगा, जो कि गलत है। एक बार फिर यह एकरूपता के संदेश को खत्म करने वाला होगा, क्योंकि ड्रेस कोड सिर्फ और सिर्फ बच्चों और युवाओं को एक जैसा दिखाने के लिए है। फिर चाहे उनका धर्म और मान्यताएं कुछ भी हों।”

6. जाहिर तौर पर अगर किसी छात्र-छात्रा को अलग से अपनी मान्यताओं या धर्म के आधार पर किसी संस्थान में वेशभूषा पहनने की इजाजत दी गई, तो इससे यूनिफॉर्म तय करने का मकसद ही खत्म हो जाएगा।

7. युवावस्था ऐसा संस्कार ग्रहण करने वाला समय है, जब पहचान और राय बनना शुरू होती हैं। युवा छात्र अपने आसपास के वातावरण से तुरंत ही चीजों की धारणा बनाना शुरू कर देते हैं और क्षेत्र, धर्म, भाषा, जन्मस्थान और जाति व्यवस्था की बारीकियों को समझने लगते हैं। ऐसे में यूनिफॉर्म का नियम सिर्फ एक ऐसा सुरक्षित स्थान बनाना है, जहां बांटने वाली रेखाओं की कोई जगह न हो।

8. कोर्ट ने कहा कि एक स्कूल ड्रेस का लागू होना और हिजाब, भगवा और बाकी धार्मिक चिह्नों की मनाही होना मुक्ति की दिशा में एक अहम कदम है, खासकर शिक्षा को पाने में यह ज्यादा बेहतर है। यह

9. “हमारे इस फैसले से महिलाओं की स्वायत्ता और उनके शिक्षा के अधिकार नहीं छीने जा रहे हैं, क्योंकि एक क्लासरूम के बाहर वे अपनी मर्जी की वेशभूषा पहनने के लिए स्वतंत्र हैं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि आगे इस बात पर बहस हो सकती है कि पर्दा, नकाब पहनने की जबरदस्ती सामान्य तौर पर महिलाओं की आजादी में एक गतिरोध की तरह है, खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए। यह हमारे संविधान के बराबरी के मौके के भाव के भी खिलाफ है।

10. अदालत ने फैसले में विवाद उठने की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। जजों ने कहा, “जिस तरह से हिजाब को लेकर उलझन पैदा हुई है, उससे ऐसा लगता है कि इस पूरे विवाद में किसी का हाथ है। सामाजिक अशांति पैदा करने और सद्भाव खत्म करने के लिए ऐसा किया गया लगता है।” अदालत ने कहा, “हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिर अकादमिक सत्र के बीच में अचानक यह मुद्दा क्यों उठ गया।”