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क्या इंद्रप्रस्थ पर यही है हिंदू की नियति!

वही हुआ जो दिख रहा था। चार दिन पहले मैंने लिखा था-‘तूफान मोदी का है लेकिन पुण्यता नीतीश कुमार की है। मोदी के तूफान को कहीं दिये की लौ निगल न जाए! सोचें, छोटा टिमटिमाता दिया यदि झंझावाती तूफान को निगल गया तो क्या होगा? उफ! मैं किस निष्कर्ष पर पहुंच रहा हूं। मुझे फेल होना चाहिए!’ चार दिन पहले लिखे मेरे इस वाक्य पर एक सुधी पाठक ने कटाक्ष में लिखा तो आपके मन में मोदी बसे हुए हैं।
अब पाठक माईबाप जो सोचे वह सिर आंखों पर। मगर मैं बूझने की स्थिति में हूं कि आज के बाद दिल्ली की पंख लगी सरकार किस नियति में होगी। देश कैसे घसीटना है! इसलिए मैं नरेंद्र मोदी नहीं, हिंदुओं की नियति विचारता हूं। यह अपना जो राष्ट्र-राज्य है उसे ले कर मेरे मन में अर्से से सवाल बना हुआ है कि उसकी नियति क्या हिंदू नियंताओं के हाथों एक सी नहीं है? हिंदू शासक किसी भी जात, किसी भी ब्रांड या रंग का हो अंत परिणाम सबका एक सा होता है। उसके साथ हम हिंदुओं का भी!
सोचें 18 महीने पहले नरेंद्र मोदी और उनके पीछे का हिंदू किस एवरेस्ट पर था और आज कहां है! यही सदा सनातन से होता आया है। इंद्रप्रस्थ या दिल्ली का तख्त कभी हिंदुओं की अश्वमेघी सफलता वाला हुआ ही नहीं। कई बार लगता है इस इंद्रप्रस्थ को श्राप है कि जो हिंदू इस तख्त पर बैठेगा वह आत्म मुग्धता, अहंकार में जीएगा और अपने हाथों अपना भस्मासुर बनेगा।

 
महाभारत की कथा के दुर्योधन को याद करें। उसे वैभवपूर्ण विशाल इंद्रप्रस्थ मिला लेकिन उसने एक इंच जगह पांडवों के लिए नहीं छोड़ी। उसके मुंह, उसके व्यवहार, उसकी रीति-नीति से अहंकार ऐसा फूटा कि सब बरबाद हुआ। पृथ्वीराज चौहान को कहा जाता रहा कि जरा सुनो, जयचंद और दुश्मन को हल्का न मानो लेकिन वह अपनी आत्ममुग्धता, अहंकार में जीया और हिंदू लुट गए।
आजाद भारत के हिंदू प्रधानमंत्रियों पर गौर करें। नेहरू मुस्लिम पाकिस्तान बनवा देने के बाद हिंदू भारत के निर्विवाद नियंता हुए। लोगों ने सिर पर बैठा कर मौका दिया लेकिन निज खामोख्याली, अपने अहंकार में पिग्मियों को साथ रखा। समय ऐसे गंवाया कि जब मरे तो चीन के हाथों भारत लहुलुहान था। पंचवर्षीय योजनाओं का कबाड़ था। सरकार का ऐसा माईबाप चरित्र बनवाया कि लोग खैरात, भ्रष्टाचार,निकम्मेपन में जीने के आदि हो गए!

 

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नेहरू अपने अलावा किसी को कुछ नहीं समझते थे तो इंदिरा गांधी इंडिया इज इंदिरा के मुगालते में रहीं। उन्होंने अपनी फितरत में राज किया तो उसके बाद आते-जाते प्रधानमंत्रियों ने भी उम्मीदों के अश्वमेघ घोड़े दौड़ाए। याद करें राजीव गांधी से हम लोगों ने दलाल मुक्त जेंटलमेन राज की कैसी मासूम उम्मीद पाली थी। वीपीसिंह से भ्रष्टाचारमुक्त भारत का कैसा सपना सोचा था या वाजपेयी से रामराज का क्या मासूम सपना मन में बसाया था। लेकिन इन सबका अंत परिणाम दिल्ली के सत्ता जिमखानों की ट्रेडमिल में दौड़ना और दम तोड़ना था।

 
मई 2014 में नरेंद्र मोदी को हिंदुओं ने मन में बसाया था। हिंदू महायज्ञ की असंख्य आहुतियों की बदौलत नरेंद्र मोदी को सत्ता मिली थी। फालतू और छलावी बात है कि नरेंद्र मोदी को मुसलमानों ने वोट दिया या मोदी विकास की इमेज से जीते। मई 2014 में अमेरिका का प्रवासी भारतीय हो या बिहार का मतदाता सबकी बुनावट हिंदू थी और इन हिंदुओं ने ही नरेंद्र मोदी से उम्मीद बनाई कि वे ऐसा कुछ करेंगे जो पहले कभी नहीं हुआ। बिहार में तब 180 सीटों पर भाजपा की बढ़त थी।

ऐसा हिंदू आकांक्षाओं की बदौलत हुआ था। और आज?
ऐसा क्यों?

इसलिए कि यही हिंदू की नियति है। हिंदू का नियंता पहले कब खामोख्याली, निज अहंकार, निज तुष्टी से ऊपर रहा है जो नरेंद्र मोदी न रहे। जैसे नेहरू मानते थे, इंदिरा मानती थी कि वे हैं तो वोट है। पार्टी है। सत्ता है। राज है। विचार है। ईमानदारी है। दुनिया में धाक है वैसे ही नरेंद्र मोदी सोचते हैं। लगता है हिंदू में राजा क्योंकि विष्णु का अवतार माना जाता है। इसलिए दुर्योधन, पृथ्वीराज, नेहरू, इंदिरा, नरेंद्र मोदी सबने अपने को अवतार समझ कर व्यवहार किया। अपना दरबार सजाया। अपने न्याय को, अपनी मेहनत, अपनी फितरत को अंतिम माना।
जब ऐसा है तो हिंदू का भला कैसे कुछ बन सकता है?
सो सिर्फ 18 महीने में बिहार ने अपने प्रतापी राजा नरेंद्र मोदी को खारिज कर दिया। यों प्रतापी राजा इस ख्याल में होगा कि मैं दिल्ली का राजा हूं, मैं भारत हूं। पर हकीकत में आज मई 2014 का वह अकल्पनीय, अभूतपूर्व जनादेश फटा पड़ा है जिससे आसमान को फाड़ा जा सकता था!
सोचें बिहार के जिन हिंदुओं ने मई 2014 में नरेंद्र मोदी पर ठप्पा लगाया था उन्होंने अपने को कितना छला महसूस कर उन्हंे खारिज किया।
लब्बोलुआब में 16 मई 2014 का हिंदू दुस्साहस वाला जनादेश आज तार-तार है। पर नरेंद्र मोदी का विश्वास तार–तार नहीं हुआ होगा। ऐसा दिल्ली की फितरत, मुगालते के चलते है। दिल्ली का इतिहास है कि पृथ्वीराज को तब तक सुध नहीं आती जब तक दुश्मन दरवाजे पर न आ जाए। हाकिम कारिंदे, दरबारी नरेंद्र मोदी को भरोसा दिए रहेंगे कि 2019 तक वे भारत को महान बना देंगे। सात करोड़ की बजाय तब 70 करोड़ जनधन खाते होंगे! दुनिया के दौ सो देशों में तब तक मोदी के रॉकस्टार शो हो चुके होंगे। दुनिया के नेता 2018 में दिल्ली आ कर मोदी की बांसुरी बजाएंगे।
जो हो, फिलहाल तो विचार यह करें कि एक टिमटिमाता दिया कैसे तूफान को निगल गया! नरेंद्र मोदी-अमित शाह 2019 तक कैसे समय काटेंगे?

लेखक http://www.nayaindia.com/ के संपादक हैं

साभार http://www.nayaindia.com/ से