चन्द्रमा से पृथ्वी को देखा तो मैं भूल ही गया कि मैं रुसी हूँ

पहला रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन, जब अंतरिक्ष यात्रा से वापस लौटा – वह प्रथम मानव था जिसने चंद्रमा को इतनी निकटता से और पृथ्वी को इतनी दूरी से देखा था – तो उसने कहा कि कुछ क्षणों के लिए वह आश्चर्य-विमुग्ध रह गया। उन क्षणों में उसके भीतर खयाल भी न आया कि धरती का एक खंड सोवियत रूस है, एक खंड अमरीका है, एक हिस्सा भारत है और एक टुकड़ा चीन है। वहां से पृथ्वी खंडों में बँटी हुई न दिखी। और वहां से पृथ्वी वैसी ही चमकती हुई दिखती है, जैसा कि चंद्रमा हमें यहां से चमचमाता दिखता है – चमक को देखने के लिए सिर्फ़ एक बड़े अन्तराल की, लंबी दूरी की जरूरत है, क्योंकि सूर्य की प्रकाश-किरणें पृथ्वी से परावर्तित होकर वापस लौटती हैं।

यदि तुम चांद से देखो तो पृथ्वी चांद की तरह, और चांद पृथ्वी की तरह नजर आता है। चंद्रमा पर खड़े होकर देखो तो चंद्रमा चमकता हुआ नहीं दिखता। किंतु जब हम पृथ्वी पर से, इतनी अधिक दूरी से उसे देखते हैं, तो चंद्रमा से परावर्तित होकर हमारी आंखों तक आती सूरज की रोशनी उसे रोशन कर देती है। इसके पहले यूरी गागरिन को यह बोध नहीं था कि एक चमत्कार घटने वाला है :चाँद पृथ्वी की तरह हो जाता है और पृथ्वी प्रकाशित हो उठती है। पृथ्वी चंद्रमा से छह गुना बड़ी है, इसलिए उसका प्रकाश भी चांद के प्रकाश से छह गुना अधिक दिखाई देता है। यह बहुत अद्भुत और अकल्‍पनीय सा लगता है।

मास्को लौटने पर लोगों ने उससे पूछा :”चाँद से पृथ्वी को देखने पर तुम्हारे मन में सबसे पहला खयाल क्या आया?” उसने कहा :”मुझे क्षमा करना, मैं तो बिल्कुल भूल ही गया था कि मैं रूसी हूं। अनायास ही मेरे मुंह से निकला – अहा! मेरी प्यारी पृथ्वी! ये ही वे शब्द थे जो सर्वप्रथम मेरे मष्तिष्क में आए।”

इस सीधे-सादे से तथ्य को देखने के लिए क्या इतनी दूर जाना अनिवार्य है? यह सुंदर पृथ्वी हमारी है। इस पर किसी जाति की और किसी राष्ट्र की मालकियत नहीं है। यह हम सबकी है।

साभार- (https://twitter.com/astrosushil/ से