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हिंदी को विरोध क्यों ?

देश के दक्षिणी भाग खासकर तमिलनाडु में रह-रहकर हिंदी के खिलाफ आवाज उठती रहती है। यह आवाज उठाने के लिए तरह-तरह के बहाने इसलिए खोज लिए जाते हैं, क्योंकि कुछ लोगों ने हिंदी विरोध को अपनी राजनीति का जरिया बना लिया है। तमिलनाडु अथवा देश के अन्य राज्यों के लोग हिंदी के विरोध में कुछ भी क्यों न कहें, इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि राष्ट्रभाषा का दर्जा न हासिल करने के बावजूद हिंदी देश की सबसे प्रभावशाली संपर्क भाषा बन गई है।

आज यदि देश में कोई भाषा संपर्क भाषा का स्थान लेने की योग्यता रखती है तो वह हिंदी ही है। वास्तव में इसी कारण देश के गैर हिंदी भाषी इलाकों में हिंदी का तेजी से विस्तार हुआ है। इस विस्तार का एक बड़ा कारण हिंदी की उपयोगिता है।यदि हिंदी की उपयोगिता को देखते हुए उसके प्रचार-प्रसार की कोई पहल की जाती है तो आखिर इसमें किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? आपत्ति करने वालों को इस सच्चाई से परिचित होना चाहिए कि दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत के लोगों के लिए हिंदी एक आवश्यकता बन गई है। आज जब नौकरी, व्यापार आदि के कारण हर प्रांत के लोगों की देश के दूसरे हिस्सों में आवाजाही और साथ ही बसाहट बढ़ती जा रही है तब फिर यह समय की मांग है कि संपर्क भाषा का पर्याय बन गई हिंदी को सहर्ष अपनाया जाए। कई राज्यों ने ऐसा ही किया है और इनमें अरुणाचल सबसे बढ़िया उदाहरण है। इस उदाहरण की अनदेखी करना सच से मुंह मोड़ना ही है।

अशोक भाटिया,
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