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नई शिक्षा नीति लागू होने भर से क्या बहुत कुछ बदल जाएगा?

साल 2021 में नई शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में कई तरह के कदम उठाए गए जिसका प्राथमिक और उच्च स्तर की शिक्षा पर अलग-अलग प्रभाव हुआ

29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की शुरुआत के बाद इसे लागू करने को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के साथ स्वायत्त एजेंसियों के लिए पहला वर्ष मिश्रित प्रतिक्रियाओं और कोशिशों का रहा. इसे लागू करने में पहला कदम, एनईपी द्वारा सुझाव दिए जाने के बाद ये रहा कि, पूर्व में जिसे मानव संसाधन मंत्रालय(एमएचआरडी) कहा जाता था उसे बदल कर शिक्षा मंत्रालय (एमओई) कर दिया गया, जिसका मतलब यह था कि केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को नई शिक्षा नीति की तरह ही स्वीकृत किया. हालांकि, इसके बाद इस दिशा में होने वाला विस्तार बाधित ही रहा है.

इसे लागू करने में पहला कदम, एनईपी द्वारा सुझाव दिए जाने के बाद ये रहा कि, पूर्व में जिसे मानव संसाधन मंत्रालय(एमएचआरडी) कहा जाता था उसे बदल कर शिक्षा मंत्रालय (एमओई) कर दिया गया, जिसका मतलब यह था कि केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को नई शिक्षा नीति की तरह ही स्वीकृत किया.

शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने 2020 में नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए कई उपायों की घोषणा कर दी. इसके तहत राज्य और केंद्र शासित और स्वायत्त शाखाओं से सहमति लेकर, 8-25 सितंबर 2020 से शिक्षकों के लिए ‘शिक्षक पर्व’ के आयोजन की घोषणा की गई, साथ ही दूसरे स्टेक-होल्डरों (हितधारकों) से एनईपी 2020 के अलग-अलग प्रस्तावों को कैसे अमल में लाया जाएगा इसे लेकर रणनीति पर चर्चा की गई. इसका नतीजा यह हुआ कि एक समायोजित योजना सार्थक(एसएआरटीएचएक्यू) (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से छात्रों और शिक्षकों की समग्र उन्नति) की 8 अप्रैल 2021 से शुरुआत की गई. सार्थक नई शिक्षा नीति 2020 से जुड़े सभी प्रस्तावों से जुड़ी कार्रवाई को परिभाषित करता है. यह 297 कार्यों को चित्रित करता है, उन ज़िम्मेदार एजेंसियों की पहचान करता है जो इन्हें अलग-अलग पूरा करेंगे और इनके नतीजों पर ध्यान देंगे.

शुरुआती शिक्षा
10+2 शिक्षा प्रणाली को 5+3+3+4 प्रणाली से बदलने के एनईपी 2020 के प्रमुख फैसले और इसका बच्चों की शुरुआती पांच साल की देखभाल और तीन साल से शिक्षा की शुरुआत पर बेहद ज़ोर है, डीओएसईएंडएल ने 2026-27 तक सभी बच्चों के लिए मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता को सुनिश्चित करने के लिए इसके अलावा निपुण भारत पहल की शुरुआत की. यह एक बहुत ही आवश्यक और स्वागत योग्य कदम है क्योंकि बाकी एनईपी 2020 बच्चों के लिए काफी हद तक अप्रासंगिक हो जाएगा, जैसा कि अतीत में देखा गया है, अगर सबसे बुनियादी शिक्षा – जिसमें पढ़ना, लिखना और मूलभूत स्तर पर अंकगणित – की क़ाबलियत को इस पर आगे काम करने से पहले प्राप्त नहीं किया जाता है.

उच्च शिक्षा विभाग की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से एक, जैसा कि एनईपी 2020 द्वारा बताया गया है, वो उच्च शिक्षा में मानकों के रख-रखाव के लिए संवैधानिक ज़रूरतों के हिसाब से एक नए ढांचे को तैयार करना है. नए ढांचे की परिकल्पना में ख़ास, स्वतंत्र और अधिकार प्राप्त संस्थाएं, वित्त मुहैया कराने की अलग-अलग भूमिकाएं निभाएंगे.

डीओएसईएंडएल (DoSE&L) एनईपी 2020 की सिफ़ारिशों को समायोजित करने के लिए समग्र शिक्षा अभियान जैसे मौजूदा कार्यक्रमों को भी मज़बूती प्रदान करने और उसमें सुधार लाने का प्रयास कर रहा है. इसने शिक्षक विकास के लिए निष्ठा (NISHTHA) (स्कूल प्रमुखों के लिए राष्ट्रीय पहल और शिक्षकों की समग्र उन्नति) नामक एक एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के ज़रिए सीखने के नतीजों में सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की है. इसके अलावा डीओएसईएंडएल के एक साल की उपलब्धि रिपोर्ट में जिन कदमों को सूचीबद्ध किया गया है उसमें शामिल हैं: समग्र शिक्षा के तहत वोकेशनल शिक्षा को मज़बूती प्रदान करना; सफल (SAFAL) कार्यक्रम के ज़रिए व्यवस्था के स्वास्थ्य को निर्धारित करना जिससे की स्टेज असेसमेंट की शुरुआत करना; एनडीईएआर (नेशनल डिज़िटल एजुकेशन आर्किटेक्चर) एक मुक्त, विकसित करने योग्य और ऐसा पब्लिक डिज़िटल एजुकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर जो तकनीक के विस्तार के साथ कदम से कदम बढ़ा सके, और दूसरी बातों के तहत ही शैक्षणिक संस्थानों के लिए ईज़ ऑफ़ डुइंग बिज़नेस को बढ़ावा दे सके. डीओएसईएंडएल, डॉ के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक संचालन समिति के ज़रिए, सुधारों को लागू करने के लिये राज्य पाठ्यचर्या ढांचे को विकसित करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करने में लगा है, जिसके बाद वो राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे पर काम करना शुरू करेगा.

उच्च शिक्षा
दूसरी ओर, उच्च शिक्षा की स्थिति बहुत धीमी गति से विकसित हुई है. उदाहरण के लिए, चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम, जो समग्र और बहु-विषयक शिक्षा या उदार शिक्षा प्रदान करने के लिए एनईपी 2020 की अवधारणाओं में से एक है, को अभी तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अनुमोदित डिग्री की सूची में शामिल नहीं किया गया है. उच्च शिक्षा विभाग की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से एक, जैसा कि एनईपी 2020 द्वारा बताया गया है, वो उच्च शिक्षा में मानकों के रख-रखाव के लिए संवैधानिक ज़रूरतों के हिसाब से एक नए ढांचे को तैयार करना है. नए ढांचे की परिकल्पना में ख़ास, स्वतंत्र और अधिकार प्राप्त संस्थाएं, वित्त मुहैया कराने की अलग-अलग भूमिकाएं निभाएंगे. इस तरह कार्रवाई में अधिकार क्षेत्र की ओवरलैपिंग को ख़त्म करने के लिए अलगाव ज़रूरी है, व्यवस्था के अंदर जांच और संतुलन बनाने और हितों का टकराव कम करने के साथ-साथ शक्ति के केंद्रीकरण को ख़त्म करने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है. एनईपी 2020 भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) के तहत कई संरचनाओं के गठन को बढ़ावा देती है, जिससे एक ऐसा संस्थान तैयार हो सके जो इन संस्थाओं के स्वतंत्र कार्यक्षेत्र में समायोजना ला सके. एचईसीआई और इससे जुड़े कार्यक्षेत्र संसद के एक अधिनियम के माध्यम से अस्तित्व में आएंगे, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं है कि ऐसा कोई बिल मौजूदा वक़्त में तैयार है.

सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने की एनईपी 2020 की सिफ़ारिश सभी एचईआई को हर पांच साल में कम से कम एक बार प्रमाणित करने की मान्यता इसके ढांचे की क्षमता पर निर्भर करता है. कार्य की जटिलता और इसे निपटाने की गति की वजह से यह एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है.

एनईपी 2020 द्वारा दिए गए लचीलेपन को प्राप्त करने के लिए कई अन्य कानूनों को भी केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर संशोधित करने की ज़रूरत है. इनमें अलग-अलग तरह के विश्वविद्यालयों को नियंत्रित करने वाले कार्य शामिल हैं और वे ज़रूरी कदम जो फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया, काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर, और अन्य पेशेवर परिषदों की भूमिकाओं को अनिवार्य बनाते हैं. समय के साथ-साध, बाद में इनमें से कई संस्थाओं ने नियामक की भूमिका को अपना लिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यालय अक्सर कई तरह के परस्पर विरोधी नियमों से निपटते हैं. एनईपी 2020 के लिए आवश्यक है कि ये निकाय नियमन को छोड़ दें और अपने संबंधित विषयों के पाठ्यक्रम, परिणामों और नैतिकता के लिए ख़ुद को स्टैंर्ड सेटिंग तक ही सीमित रखें, लेकिन परिषदों को ऐसा करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी.

इसके विपरीत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने जनवरी 2021 से, स्नातकोत्तर, डॉक्टरेट, कार्यकारी, क्लीनिकल और व्यावसायिक शिक्षा सहित कानूनी शिक्षा के सभी पहलुओं को समायोजित करने में अपनी भूमिका को ज़्यादा बढ़ा लिया है. इनमें से अधिकांश का अधिवक्ताओं के लिए नामांकन योग्यता को मान्यता देने के बीसीआई के वैधानिक आदेश से कोई लेना-देना नहीं है. यह स्व-सशक्तिकरण ऐसे समय में आया है जब कानून स्ट्रीम के अधिकांश छात्र कॉर्पोरेट कानून, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त, के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के क्षेत्रों में, बार के बाहर भी करियर बना रहे हैं. एनईपी 2020 के ड्राफ्ट एनईपी 2019 के मसौदे से अलग होने के फैसले और प्रस्तावित नए नियामक ढांचे से चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को बाहर करने पर भविष्य में फिर से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि यह नए नियामक ढांचे के पूर्ण लाभ को बहुआयामी एचईआई में शामिल होने से रोकता है.

समय के साथ सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने की एनईपी 2020 की सिफ़ारिश सभी एचईआई को हर पांच साल में कम से कम एक बार प्रमाणित करने की मान्यता इसके ढांचे की क्षमता पर निर्भर करता है. कार्य की जटिलता और इसे निपटाने की गति की वजह से यह एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है. प्रामाणिकता देने की व्यवस्था को फिर से ठीक करने के लिए एचईसीआई बिल और इसे अमल में लाने के लिए योजना का एक ब्लूप्रिंट होना चाहिए. सार्वजनिक मंच पर इस बात के कोई सबूत नहीं हैं जो इस बात का संकेत दे सकें कि इस अहम कार्य पर फौरन कोई काम शुरू होगा.

इस बीच यूजीसी, वर्तमान में रेग्युलेटर कम फंडिंग एजेंसी, ने एनईपी का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण बदलाव शुरू किए हैं. अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (एबीसी), जो छात्रों को समय के साथ क्रेडिट जमा करने और विभिन्न डिग्री अर्जित करने की आज़ादी देता है, केवल कुछ संस्थानों के लिए ही अभी सुविधाएं दे रहा है. क्रेडिट का बचाना ग़रीब छात्रों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक फायदेमंद सौदा हो सकता है, जिन्हें अक्सर आर्थिक और सामाजिक कारणों से शिक्षा छोड़ने के लिए मज़बूर होना पड़ता है. एचईआई में छात्रों की गतिशीलता का एबीसी समर्थन करेगा और युवाओं और वयस्कों के लिए आजीवन शिक्षा पाने का मौका देने का समर्थन करेगा – जो तेज़ी से बदलती तकनीकी दुनिया में मौजूदा समय की ज़रूरत है. यूजीसी द्वारा उठाए गए दूसरे कदम में एचईआई में मल्टीपल एग्ज़िट और मल्टीपल एंट्री के लिए दिशानिर्देश, अप्रेंटिसशिप-एम्बेडेड डिग्री प्रोग्राम और उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए भी दिशा-निर्देश शामिल हैं.

जिस तरह 1986 की नीति के साथ एक्शन प्रोग्राम (पीओए) 1992 को शामिल किया गया था, उसी तरह तेज़ी से कार्य पूरे हो सकें इस सुविधा के लिए एनईपी 2020 के लिए पीओए तैयार करना ज़रूरी हो सकता है. कुल मिलाकर, 2021 में एचईआई और अन्य सभी स्टेकहोल्डरों ने नीति की भावना को समझने की कोशिश की है और नीति में बताए गए प्रस्तावों के मुताबिक ही अपनी क्रियान्वयन योजनाएं बनाई हैं. यह वर्ष एक रोमांचक मोड़ पर ख़त्म होता है जैसा कि हम साल 2022 में होने वाले कई परिवर्तनकारी बदलावों का इंतज़ार कर रहे हैं.

साभार- https://www.orfonline.org/hindi/r से