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शब्द-शब्द आपके भीतर उतर आएगा ‘नर्मदा का सौन्दर्य’

सदानीरा माँ नर्मदा का सौन्दर्य अप्रतिम है। शिवपुत्री को निहारन ही नहीं अपितु उसके किस्से सुनना भी अखंड आनंद का स्रोत है। और जब यह किस्से महान चित्रकार आचार्य नंदलाल बोस के यशस्वी शिष्य अमृतलाल वेगड़ सुना रहे हों, तब आनंद की अनुभूति की कल्पना कर ही सकते हैं। ईश्वर ने अमृतलाल वेगड़ की कूची और कलम दोनों पर अपार कृपा की है। जितने सुंदर उनके चित्र हैं, उतने ही रंग शब्द चित्रों में हैं। वेगडज़ी ने नर्मदा माई की परिक्रमा पर तीन पुस्तकें लिखी हैं- सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा।

उन्होंने अपनी पहली ही पुस्तक से यात्रा साहित्य के क्षेत्र में जो प्रतिमान गढ़े, वे इस मार्ग (यात्रा वृत्तांत लेखन) पर चलने वाले लेखकों के लिए सदैव प्रकाशस्तम्भ का कार्य करेंगे। सहज-सरल भाषा। उनके लेखन में भाषा को किसी प्रकार के साहित्यिक आडम्बर से अलंकृत करने का अलग से परिश्रम दिखाई नहीं देता। यही कारण है कि वेगडज़ी की भाषा नर्मदा तट की उन वनकन्याओं के दैवीय सौन्दर्य की तरह निखरकर आती है, जिनके रेखाचित्र उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान बनाए।

जिस खूबसूरती से उन्होंने नर्मदा के सौन्दर्य का वर्णन किया है, उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। अहा! भाषा के सौंदर्य के तो क्या कहने। एक-एक शब्द और पंक्ति के साथ आप उसी तरह बहते जाएंगे, जैसे नर्मदा की गोद में अथाह जलराशि। आपको लगेगा कि नर्मदा के तीरे-तीरे आप भी नर्मदा के सहयात्री अमृतलाल वेगड़ के पीछे-पीछे चल रहे हैं। नर्मदा के जिस सौन्दर्य की अनुभूति लेखक ने की है, उसका अधिकांश उन्होंने अपने पाठकों तक भी पहुँचाने का भरसक प्रयास किया है। कहते हैं, यात्रा वृत्तांत इस प्रकार लिखे जाने चाहिए कि पढऩे वाले के मन-मस्तिष्क में वह यात्रा उतर जाए। यात्रा वृत्तांत पढ़ते समय पाठक के स्मृति पटल पर जो दृश्य उभरें, वे उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति में रूपांतरित हो जाएं। ‘सौन्दर्य की नदी नर्मदा’ को जब आप पढ़ेंगे, तब यही अनुभूति करेंगे।

अपनी यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए वेगडज़ी ने लिखा भी है- “यह यात्रा मैं ‘स्वांत: सुखाय’ कर रहा हूँ, तो वह अर्द्धसत्य होगा। मैं चाहता हूँ कि जो सुख मुझे मिल रहा है, वह दूसरों को भी मिले। मैं ‘स्वांत: सुखाय’ भी चल रहा हूँ और ‘बहुजन सुखाय’ भी चल रहा हूँ”।

अमृतलाल वेगड़ ने अपनी ‘नर्मदा परिक्रमा’ को परंपरागत ‘परकम्मावासी’ की तरह पूरा नहीं किया। उन्होंने अखण्ड नहीं बल्कि खंड-खंड में नर्मदा माई की परिक्रमा की है। एक बार नहीं तो बार-बार की है। एक पड़ाव पूरा करके घर लौट आते हैं। फिर आगे की यात्रा के लिए मचलते रहते हैं। ठीक उसी प्रकार हम भी एक पड़ाव की यात्रा पढ़कर अगले पड़ाव की यात्रा पढऩे के लिए आतुर होते हैं। प्रत्येक यात्रा के बाद अगली नर्मदा परिक्रमा के लिए किसी बालसुलभ व्याकुलता को वेगडज़ी के भीतर महसूस किया जा सकता है।

यह यात्रा वृत्तांत न केवल नर्मदा के किनारे की सभ्यता, संस्कृति एवं भूगोल का दस्तावेज हैं बल्कि यह अध्यात्म एवं दर्शन की पोथी भी है। यहाँ एक ही प्रसंग का जिक्र कर रहा हूँ। क्योंकि संविधान के बरक्स ‘धर्म की आवश्यकता’ पर अकसर बहुत बहस होती है। यात्रा के दौरान ऐसा ही एक प्रश्न अमृतलाल वेगडज़ी के शिष्य अनिल ने पूछा- “क्या धर्म जरूरी है? क्या कानून पर्याप्त नहीं? धर्म न हो, तो क्या हमारा काम नहीं चलेगा?”

इस पर वेगडज़ी ने जो कहा है, उसे स्वीकार करके इस बहस को खत्म किया जा सकता है। वे लिखते हैं कि “कानून कहता है- चोरी न करो, डकैती न करो। पर कानून यह नहीं कह सकता कि दान करो, त्याग करो। कानून कहेगा- खून न करो, हत्या न करो। पर कानून यह नहीं कह सकता कि दूसरों के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दो। धर्म कहता है- इतना काफी नहीं है, कुछ अच्छा काम करो। इस तरह जहाँ कानून खत्म होता है, वहाँ से धर्म शुरू होता है। कानून जरूरी है। वह हमें अराजकता से उबारता है, हमारे अधिकारों की रक्षा करता है। लेकिन समाज को ऊपर उठाता है, धर्म। त्याग की, सेवा की, स्वार्पण की प्रेरणा तो धर्म ही दे सकता है। यह कानून के बस की बात नहीं। …कानून आवश्यक है, पर पर्याप्त नहीं। कानून पर हमें रुकना नहीं है। उससे आगे बढ़कर धर्म के शिखर को भी छूना है”।

‘सौन्दर्य की नदी नर्मदा’ सिर्फ उनके लिए नहीं है, जिनकी रुचि यात्रा वृत्तांत पढऩे में है, या माँ नर्मदा के प्रति जिनकी गहरी आस्था है, या फिर जिनका साहित्य से नाता है। यह लोक का अध्ययन करने वालों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह धर्म-अध्यात्म और दर्शन में डूबने वालों के लिए भी है। यह पुस्तक सब प्रकार से पठनीय है। यह जीवन सिखानेवाली पुस्तक है।

पुस्तक का प्रकाशन मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल ने किया है। पुस्तक में 210 पृष्ठ हैं। नर्मदा यात्रा के वृत्तांत के साथ ही पुस्तक में अमृतलाल वेगड़ के खूबसूरत रेखाचित्रों को भी शामिल किया गया है। ये चित्र उन्होंने नर्मदा यात्रा के दौरान ही बनाए थे। चित्र अपने आप में यात्रा के एक-एक पड़ाव के किस्से सुनाते प्रतीत होते हैं। पुस्तक का मूल्य केवल 80 रुपये है।

संलग्न चित्र : नर्मदा मंदिर/नर्मदा कुंड, अमरकंटक द्वारा लोकेन्द्र सिंह

– लोकेन्द्र सिंह (समीक्षक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)

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