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रूमानियत और मधुर प्रेम की जो दुनियाः अभी तुम इश्क़ में हो

“अकाल में उत्सव” “ये वो सहर तो नहीं” जैसे सामाजिक सरोकारों पर आधारित उपन्यास लिखने वाले पंकज सुबीर जी “कितने घायल कितने बिस्मिल” “रेपिश्क” जैसी देह के इस पार और उस पार गहरे अहसासों को खंगालती कहानियाँ लिखने वाले पंकज सुबीर “कसाब एट द रेट ऑफ यरवदा डॉट को डॉट इन” जैसी आतंकवाद की जड़ों को ढूंढती कहानी लिखने वाले पंकज सुबीर जब एक नई किताब लेकर आते हैं जिसका नाम हो “अभी तुम इश्क. में हो” तो हैरानी और जिज्ञासा एक साथ होती है,कि क्या लिखा होगा ? ज्यादा आश्चर्य जब होता है जब बुक हाथ में लेने पर मालूम होता है कि उसमें इश्क़ पर गीत ग़ज़लें कहानियाँ हैं।

कहानियाँ चलो माना, पर इश्क़ पर गज़ल़े, गीत और कविता ! उत्सुकता किताब के पन्ने पलटने लगती है और इश्क़ अपने सबसे मासूम निश्चल निर्मल रूप में आपके ज़हनो-दिल में घूमने लगता है। यह किताब अपने सारी विधाओं में लिखी रचनाओं में समेटे हैं बचपन के एकदम बाद जवान होते इश्क़ को। सरलतम रूप होता है भावनाओं का वो।

मरमरी अहसासों की झील में नर्म पंखों के नाव पर ये किताब आपको उसी तरह सैर कराती है जैसे ठहरे सुबुकते से पानी पर चाँदनी टहलती है।
जिस कामयाबी के साथ अपनी पहले की सारी किताबों से पंकज जी ने पाठकों के दिल में जगह बनाई है उसी को इस किताब के साथ वे जारी रखे हुए हैं।
प्रेम,प्यार, इश्क़, मोहब्बत ये जज्बें मर ना जाए इस जग से यह काम लेखक का है। कोई भी देशकाल हो, ये ज़रूरत है जीवन की। और ये तब और ज्यादा ज़रूरी है जब आज विश्व में युद्ध जैसी स्थिति है।
हर समय प्रेम और घृणा, सुख-दुख, विरह और मिलन जैसे जज्बातों से घिरा इंसान जब किसी तजुर्बेकार दोस्त या किसी मोहसीन की सलाह पर मार्गदर्शन की जरूरत महसूस करता है उस समय धर्म से भी पहले कविता, शेर गीत आदि ही उसकी मानसिक स्थिति को बदलने में सहयोगी सिद्ध होते हैं।

शेरों के द्वारा प्यार के नाजुक से एहसास को पाठकों के दिलों तक पहुंचाने में यह किताब बहुत कामयाब हुई है। पंकज जी जैसे सह्रदय व नि:स्वार्थ लोग इंसानियत में लोगों का विश्वास बनाए हुए हैं।
ये तो तय है कि जिस दिल में प्यार न हो वो कविता को समझ भी नही सकता। और प्यार का ओवर फ्लो ना हो तो कविता नही लिखी जा सकती।
पंकज जी के अपनी निजी ज़िन्दगी में विचार व मानदंड इस बात का सबूत हैं कि वे दोस्ती के क़ाइल हैं। इसी की झलक उनके लेखन में भी मिलती है। शायर को देश का दिल कहते हैं। दिल से लिखी गई
इस किताब में पंकज जी ने रूमानियत और मधुर प्रेम की जो दुनिया रचाई है उसकी झलक पहले उनके कुछ शेरों में देख लेते हैं।–

बड़ी जानी हुई आवाज़ में किसने बुलाया है
कोई गुज़रे हुए वक्तों से शायद लौट आया है
हमारा नाम ही आया नहीं पूरे फ़साने में
कहानी को कुछ इस अंदाज से उसने सुनाया है
सुनहरी बेलबूटे-सा जो काढ़ा था कभी तूने
बदन पर अब तलक मेरे तेरा वो लम्स जिंदा है
इश्क़ के बीमार पर सारी दवाएं बेअसर
चारागर उसकी दवा का है ज़रा नुस्ख़ा अलग
पहाड़ों के मुसलसल रतजगे हैं
न जाने प्रेम में किसके पड़े हैं
कहा बच्चों से हंसकर चांदनी ने
“तुम्हारे चांद मामा बावरे हैं”
पूछते हो कैसे पागल हो गया मैं
बस तुम्हारा नाम लेकर हो गया हूँ
तू अगर दरिया है तो मेरी बला से
आजकल मैं तो समंदर हो गया हूँ
जिस्म पर थिरकता है मोरपंखिया जादू
हौले हौले बजती है बांसुरी कोई जैसे

हर शेर शायर की नाज़ुक ख्याली का पुख्ता सबूत है। इश्क़ पर लिखे जाने वाले शेर कभी कभी अतिश्योक्ति हो जाते है किन्तु पंकज जी का हर शेर हमारी ज़िन्दगी से उठ कर आया हो जैसे जो भाषा और लहजा भी हमारा ही थामे हुए है।
शिकायत हमने कीं जी भर के पर उसने कहा बस ये
चलो जो हो गया सो हो गया, कल से नहीं होगा
नहीं हो चांद का दीदार कोशिश कर रहे बादल
अड़ा है दिल इधर जिद पर, भला कैसे नहीं होगा
अभी समझाएँ क्या तुमको, अभी तुम इश्क़ में हो
अभी तो बस दुआएँ लो, अभी तुम इश्क़ में हो
तुम्हारे हाथ में जलती रहे सिगरेट मुसलसल
कलेजे को जरा फूँको अभी तुम इश्क़ में हो
किताब उलटी पकड़ कर पढ़ रहे हो देर से काफी
तुम्हें बतलाएँ बरख़ुरदार आओ इश्क़ का मतलब
पड़े हो इश्क में तो इश्क की तहज़ीब भी सीखो
किसी आशिक़ के चेहरे पर हँसी अच्छी नहीं लगती
कहा गया था भुला देंगे दो ही दिन में पर
सुना गया है कि हम अभी भी याद आते हैं
उफ़ुक़ से काट कर लाए हैं आसमाँ थोड़ा
बिछा कर आओ कहीं ख़ूब इश्क़ियाते हैं
जो तुम कहो तो चलें तुम कहो तो रुक जाएँ
यह धड़कने तो तुम्हारी ही सेविकाएँ हैं
जवानी यूं ही ख़ाली बीत जाना भी समस्या है
लगा लो दिल अगर तो दिल लगाना भी समस्या है
किस्से बन गए कितने जरा सा मुस्कुराने पर
तुम्हारे शहर में तो मुस्कुराना भी समस्या है
सुना है जुगनुओं से हो गया नाराज़ है सूरज
किसी का बहुत ज्यादा जगमगाना भी समस्या है
यूँ सारी रात बरसोगे तो प्यासा मर ही जाएगा
किसी प्यासे पे ज़्यादा बरस जाना भी समस्या है
मैं जब था इश्क़ में तो उसको मैं भी चांँद कहता था
हक़ीक़त में मगर वो थी बहुत ही साँवली लड़की
न अब वो खिलखिलाती है, न अब जादू जगाती है
न जाने कब समय के साथ औरत बन गई लड़की
ये शब्द प्रयोग अद्भुत है–
हमें इजहार करना आ गया जब
उसे भी आ गया इग्नोर करना
है इंट्रोवर्ट दिल मेरा बहुत ये
इसे आता नहीं है शोर करना
फिर भी शायर अपने कुछ शेरों से बने चेता भी रहे हैं।
तुमने दर्द हमारा कैसे जान लिया
हम तो चुपके-चुपके रोया करते हैं
इश्क़ में दरिया पार नहीं उतरा जाता
इश्क़ में दरिया का रुख़ मोड़ा करते हैं
ठेकेदारी उन्हें रोशनी की मिली
जो चराग़ों को कल तक बुझाते रहे
किसी का जुल्फ़ से पानी झटकना
इसी का नाम बारिश है महोदय
ये नज़रें आज फिर कुर्की करेंगी
बताओ किस पे नालिश है महोदय
मुझे सूली चढ़ा कर ख़त्म कर दो
मेरे सीने में आतिश है महोदय
हाल मेरा क्या है आकरे देख तो तू भी
ख़ार में उलझी है ये तितली मेरे मौला
दवा नाकाम है अब दुआ ही कुछ रंग लाएगी
किसी मरते हुए को आज देने जिंदगी निकलो
मैं इन दो शेरों को दाम्पत्य जीवन की नाज़ुक छेड़ छ़ाड के संदर्भ में देखता हूँ।–
करो सिंगार पूरा तुम अभी तो शाम बाकी है
कहा कहता हूँ मैं तुमसे कि तुम घर से अभी निकलो
चाँद खिड़की पे आ के पूछ रहा
और कितना सिंगार बाकी है
कुछ और शेर देखें कहन मे नए प्रयोगों के साथ।
कहानी सुन के बच्चा ज़िद पे है अब देखने को भी
उसी के वास्ते घर से ज़रा तुम ऐ परी निकलो
दिल मचल बैठा तो जाने क्या ग़ज़ब हो जाएगा
डाल कर पाज़ेब सीढ़ी से उतरना छोड़ दो
आप कहते हैं तो मैं भी मान लेता हूँ मगर
मुझको तो लगता नहीं है कि अब ज़िदा भी हूं मैं
वस्ल की रात वो जब बन के हवा आएँगे
हम भी तिनके की तरह ख़ुद को उड़ा आएँगे
उधर पटरी, इधर है दिल धड़कता
ख़बर है रेल उनको ला रही है
झटकिये तो ज़रा जुल्फ़ें ये भीगी
ये दिल पूछे हैं कि बरसात क्या है
दो दिन से क्यों खड़ी है तू दरवाज़े पे आकर
ए मौत सुन के दिल अभी तैयार नहीं है
ख़ैर मैं जैसा भी हूँ, हँस कर गले तो मिलता हूँ
माफ़ करना आपको तो इतना सलीक़ा भी नहीं
चाँद अगर कह दोगे तो फिर अंबर भी देना होगा
हम भी जिस्म चाँदनी में ये आज भिगोकर लाए हैं
हुई दिल की देहरी पे आहट सी कोई
नज़र आ रहे हैं दरीचों पे साए
ये सिर पर पसीना, ये उखड़ी सी साँसें
ये क्या रोग पाला है बैठे-बिठाए
पिटेंगे सारे मोहरे सब्र तो कर
अभी तो सिर्फ एक घोड़ा गया है

कहते हैं कि आप किसी एक विधा जिस पर आपकी पकड़ है उसी पर लिखिए और लिखते जाइए आप सफल होंगे। पंकज जी की यह किताब कहती है कि उनकी पकड़ कहाँ नहीं है ? हर विधा पारंगत लेखक भी तो हुआ करते हैं । ये किताब पढ़ते हुए ताजा बर्फ के फायों सा झड़ता इश्क़ कब आपको अपने आगोश में ढक लेता है मालूम ही नहीं पड़ता।
कुछ छोटी किन्तु अच्छी कविताओं के साथ इस किताब में पंकज जी के लिखे गीत भी है।

मेरी बहुत पसंद का एक बहुत भावुक कर देने वाला गीत—–
फिर समन्दर के सफ़र पर निकली नदी
छल छलक छल छल छलक छल चल दी नदी
अब्र की नारास्ती के सोग में
कब से बहती है सुलगती सी नदी
क्या ही अद्भुत गीत ये बना होगा कम्पोज होने के बाद कल्पना की जा सकती है।
युवा पीढ़ी को आकर्षित करती यह किताब हिंदी से उन्हें जोड़ने के लिए माकूल शुरुआत है। जिसकी बानगी जनवरी 2018 के पुष्य विश्व पुस्तक मेले में देखने को मिली युवा पाठकों ने 3 दिन में ही पहला संस्करण इस किताब का खत्म कर दिया।
इस किताब की पहली कहानी “उसी मोड़ पर” है।
जिंदगी प्यार के बिना कुछ भी नहीं प्यार से शुरू होती है और प्यार पर ही खत्म होती है। ये कहानी “उसी मोड़ पर” कभी एक जान रहे प्रेमियों की अजनबी मुलाकात की कहानी है।
वक्त के साथ कितना बदल जाता है प्रेम का स्वरूप पर दिल में वह ज्यों का त्यों है। ये प्रेमी किस कदर एक दूसरे को जानते समझते हैं। जीवन के किसी मोड़ पर आकस्मिक मिलने पर ये प्रेमी एक दूसरे की मौजूदगी बिन देखे महसूस कर लेते हैं।

दूसरी कहानी “मुट्ठी भर उजास” प्यार में ट्रेजडी के दुख में डूबे प्रेमी की कहानी है। प्यार में कभी कभी प्यार के हो जाने का पता नहीं लगता। जिंदगी की आदत बना वह शक्स ही जब ना रहे और आप समझ जाए कि आप प्यार में थे, तो दुख समेटने को बाँहे छोटी पड़ जाती है। लेखक ने कहानी में छोटे कस्बे में गांव में साथ-साथ पले-बढ़े युवक युवतियों के रिश्तो को बहुत सरलता से दर्शाया है।
कहानी “क्या होता है प्रेम” एक बीमार टीनएज लड़के की कहानी है जिसे मालूम है कि वह बचने वाला नहीं है। उसकी देखभाल करने वाले युवक की बातों से उसे एहसास होता है कि प्रेम का अहसास होता क्या है। दुखद अंत के साथ खत्म होती है कहानी पाठक को आंखें पोंछने पर मजबूर करती है। जीवन में विडंबना जैसी सच्चाई और नहीं।

“सुनो मांड़व” कहानी बाज बहादुर और रूपमती के जरिए उनके महलों के पत्थर में प्यार को महसूस करते लोगों की कहानी है।प्रेम, इश्क़ सदियों से इतना ही जवां है जुनूनी है। आज की पीढ़ी असमंजस व व्यावहारिक होने के फेर में प्यार होने पर भी उसे नकारती है। क्योंकि प्यार जिम्मेदारी भी है। और इस भौतिक युग में जन्मी ये पीढ़ी प्यार के नाम पर सदा निबाह व अटूट आस्था देखते हुए जवान नही हुई है।
कहानी “खिड़की” एक रहस्यमयी कहानी है। जो मेटॉफिजिक्स को खंगालती है।

पर इश्क़ यहां भी जुदा नहीं। प्यार का जज्बा शायद उतनी ताकत रखता है कि मर कर भी आप जिंदा रहें। प्यार का इंतजार जिंदगी के उस पार तक होता है शायद।
“अतीत के पन्ने” और “अभी तुम इश्क में हो” कहानी प्यार में एक दूसरे को पा लेने वाले व प्यार में एक-दूसरे को न पाने वाले प्रेमियों की कहानियाँ हैं।
प्यार में प्यार को बचाए रखने की जद्दोजहद।

एक कहानी में घर बनाता प्यार तो एक कहानी में घर को बचाता प्यार। “अभी तुम्हें इश्क में हो” में जब कोई तीसरा आपको समझ जाए और आप को आजाद कर दे, तो क्या वह भी इश्क़ ही नहीं है? इश्क़ को पहचानने वाला इश्क़, अपने साथी के इश्क़ का एहतराम करना भी तो इश्क़ ही है।

ये किताब आपको रूमानियत व नाजुक ख्याली के जिस समंदर के हवाले करती है। वह अद्भुत है। पुस्तक का कवर पेज बहुत ही खूबसूरत व हट कर है। गुलाबी रंग के कवर पेज पर सुनहरे रंग की लिखावट से सजी ये खूबसूरत किताब बेहद कम कीमत में पाठक को प्राप्त हो रही है और एक बार फिर शिवना प्रकाशन की तारीफें करने को मजबूर करती है।

अभी तुम

इश्क़ में होः ग़ज़ल संग्रह पंकज सुबीर
प्रकाशक शिवना प्रकाशन, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, सीहोर, मप्र 466001
कीमत 100 रुप

यं

बृजवीर सिंह
डब्ल्यू 903, आम्रपाली ज़ोडिएक, सेक्टर 120, नोएडा 201301, उत्तरप्रदेश
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