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वाह भाई, बहू हो तो सोनिया जैसी

मैं सोनिया गांधी का फैन हो गया हूं। उन्होंने इस देश का इतिहास और परंपराए दोनों बदल डाली। जिस देश में सदियों से सास और बहू के संबंध आईएस व अमेरिका जैसे रहते आए हो वहां उनका यह ताल ठोक कर कहना कि ‘मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं’ यह साबित कर देता है कि वे इन रिश्तों को पुर्नपरिभाषित करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्या आज तक किसी बहू ने यह बताने में गर्व महसूस किया कि उसकी सास कौन है?
दोपहर में तो हर खबरिया चैनल पर सास-बहू को लेकर ही सीरियल चलते नजर आएंगे। कोई सास बहू और बेटियों के जरिए टीआरपी जुटा रहा है। वहीं सास बहू और साजिश दिखाने वाले चैनल का तो दावा है कि सास पर असली अधिकार तो उसका ही है बाकी सब तो ‘शर्टवाला’ या ‘अग्रवाल स्वीटस’ की तरह उसकी नकल कर दर्शकों को धोखा दे रहे हैं।

पता नहीं हमारे समाज में ऐसा क्या रहा कि शुरु से ही सास-बहू के संबंध कटु ही रहे। कभी किसी बहू ने यह जताने पर गर्व महसूस नहीं किया कि उसकी सास कौन है और उसको हमेशा अपनी सास ललिता पवार ही नजर आयी।

इंदिरा गांधी को सास बताने में गर्व महसूस करना वैसे भी अहम हो जाता है क्योंकि उनके सबसे लाडले बेटे संजय गांधी की बहू मेनका गांधी के बीच जो संबंध रहे उन्हें देखते हुए यह बहुत बड़ा कांपलीमेंट कहा जा सकता है। यह सुनकर लगा कि जरा इंदिरा गांधी व उनकी छोटी बहू के संबंधों व परस्पर राय की जानकारी भी ले ली जाए। संजय गांधी उनका लाडला बेटा था। 23 जून 1980 को दुर्घटना में उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाने के बाद 1-सफदरजंग रोड में रह रहीं उनकी विधवा मेनका गांधी व सास इंदिरा गांधी के रिश्ते इतने खराब होते चले गए कि जब 19 मार्च 1982 में इंदिरा गांधी द्वारा मेनका को अपने घर से निकाले जाने की खबरें छपीं तो उसके साथ वह फोटो भी छपी थी जिसमें नौकर ने मेनका गांधी का सामान घर के लान में लाकर रख दिया था।
मेनका के साथ 3 साल का वरुण भी था जो कि बेहद बीमार था। वह उसे लेकर गोल्फ लिंक स्थित एक मोटल में आ गई। इसके साथ ही मेनका गांधी द्वारा इंदिरा गांधी को लिखा गया एक पत्र भी बिना किसी हवाले से उस दिन के अखबारों में छपा। इसमें उन्होंने इंदिरा गांधी को संबोधित करते हुए लिखा था कि मैंने इस घर में कितनी मानसिक यातना व शारीरिक पीड़ा झेली है। दुनिया में शायद ही किसी इंसान को उससे गुजरना पड़ा होगा। कृपया मुझे अपनी जिंदगी शांति से गुजारने दीजिए। मुझे पर हर समय चीख, चिल्लाना, गाली देना बंद कर दीजिए।
संयोग से उसी दिन इंदिरा गांधी के हवाले से भी अखबारों में एक बयान छपा जिसमें कहा गया था कि मेनका असभ्य भाषा का इस्तेमाल करती हैं और ऐसे लोगों से घिरीं रहती हैं जो कि उसका लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने यहां तक कह डाला कि संजय ने मेरी इच्छा के बिना ही यह शादी की थी और मेनका उसके न रहने के बाद भी रंगीन साड़ियां पहनती थीं। कुछ लोगों ने जबरन उसे मेरे घर में घुसवा दिया था।

मेनका भी कहां चुप रहने वाली थीं। उन्होंने कहा कि जब वे संजय गांधी की बुद्धि व फैसले पर शक जताती है तो मुझे अचरज होता है। उनके बयान से ऐसा लगता है कि उम्र बढ़ने के साथ उनकी याददाश्त धूमिल होने लगी है। एक शताब्दी पहले विधवाओं के लिए जो आंदोलन छेड़ा गया था, उनका बयान उसका मखौल उड़ाता है। कई बार तो वह उस मुरगी की तरह बरताव करती हैं, जिसके चूजे पर हमला किया गया हो। मेनका का इशारा राजीव गांधी की ओर था क्योंकि वे उनकी राजनीति में बाधक बन रही थीं। मैरी सीटन ने द संडे टाइम्स में लिखा था कि अगर किसी ने इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाया है तो वह मेनका गांधी ही हैं।
जब मेनका गांधी ने अकबर अहमद डंपी के साथ अमेठी में रैली की तो उन्होंने अपने भाषण में कहा कि तीन साल पहले मैं आपके घर एक बहू के रुप में आयी थी पर आज एक विधवा के रुप में आपके सामने खड़ी हूं। जिसे उसके छोटे बच्चे समेत ससुराल से निकाल दिया गया है। अगर मेरी ससुराल मुझे लेने को तैयार हो और वापस बुलाए तो मैं तुरंत लौट जाउंगी। जब एक पत्रकार ने उनकी तुलना इंदिरा गांधी से करते हुए कहा कि आपकी शख्सियत बहुत कुछ उनके जैसी ही है तो मेनका ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था कि यही तो दिक्कत है। मैंने इंदिरा गांधी से बहुत कुछ सीखा है। खास तौर से यह कि क्या नहीं करना चाहिए।
सोनिया गांधी, खुद को इंदिरा गांधी की बहू बता कर क्या संदेश देना चाहती थीं, यह तो नहीं पता पर इतना जरुर है कि वे भी उसी तरह के राजनीतिक बयानबाजी कर रही है जो कि इंदिरा गांधी किया करती थीं। जब भी कोई चीज इंदिरा गांधी के खिलाफ जाती तो वे उसके पीछे ‘सीआइए’ या संघ का हाथ होने का आरोप लगा देती थीं। अब वही काम यहां भी हो रहा है।
नेशनल हैराल्ड मामले में कोर्ट का आदेश आया है पर इसके लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। शायद 19 दिसंबर को अपनी पेशी के दौरान वे वहीं दृश्य व हालात पैदा करने की कोशिश करें जो कि जनता शासन के दौरान इंदिरा व संजय गांधी को अदालत में पेशी के दौरान देखने को मिले थे। अपना तो मानना है कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पत्नी सीता से काफी मिलती जुलती हैं। सीता भी उनकी तरह से ही विदेशी बहु (जनकपुर नेपाल) थीं। जब राम वनवास गए तो वे भी अयोध्या छोड़कर उनके साथ चली गई थीं। सोनिया गांधी ने भी यही किया। जब जनता शासन के दौरान राजीव गांधी देश छोड़कर विदेश में रहे तो वे भी सीता की तरह ही वहां उनका साथ निभाती रहीं। उनकी महानता का तो वैसे भी सबको कायल हो जाना चाहिए। वैसे भी जिस परिवार के बच्चे यह बताने में शर्म करते आए हो कि वे किस बाप के बेटे हैं। जहां ससुर के नाम की चर्चा करना भी प्रतिबंधित हो, वहां यह सुनने को मिलना कि वह किस सास की बहू है, अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

–(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार है। विनम्र उनका लेखन नाम है।)

साभार-http://www.nayaindia.com/ से