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जज साहब बुर्का पहनकर कोर्ट के गलियारे में घुमिये तो हकीकत पता चलेगी

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग(एनजेएसी) को लेकर एक वरिष्ठ वकील ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को निशाने पर लिया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने एनजेएसी के पक्ष में बोलते हुए कहाकि, जजों को बुर्का पहनकर अपेक्स कोर्ट के गलियारों में घूमना चाहिए जिससे पता चल सके कि वकीलों में खराब नियुक्तियों को लेकर किस कदर गुस्सा है। एनजेएसी को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट जोरदार जिरह हुई और इस पर गुरूवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। उन्होंने कहाकि, जजों को बुर्का पहनकर कोर्ट के कॉरिडोर में जानने पर आपको तुरंत खराब न्याय व्यवस्था को लेकर वकीलों की राय पता चल जाएगी। जिस तरह के वकीलों को जज बनाया जा रहा है वह अपमानजनक है। 

उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम के जरिए जजों की नियुक्ति की ताकत का "दैत्य" के रूप में उपयोग किया है और मानवाधिकार के अपने कर्तव्य का ढोंग किया है। फिर चाहे वो 1984 के सिख विरोधी दंगे हो या फिर गुजरात दंगे, इनमें से किसी मामले में न्याय नहीं किया गया। यदि आप देखेंगे कि किस तरह गलत नियुक्तियां की गई है तो आप कारण जान जाएंगे। "राजनेताओं और फिल्म सितारों को बचाया जाता है" दवे ने आगे कहाकि, यह शर्मनाक है कि किस तरह प्रत्येक अदालत में राजनेताओं और फिल्म सितारों को बचाया गया और आम नागरिकों को न्याय से दूर रखा गया। एक उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सिंगल बैंच में बैठने का निर्णय लेते हैं, फिर आपराधिक मामलों की सूची मंगाते हैं, दूसरी बैंच से केस अपनी बैंच में ट्रांसफर कराते हैं और केवल इसलिए एफआईआर रद्द कर देते हैं क्योंकि मामले में शामिल व्यक्ति एक टॉप फिल्म स्टार था। कौनसा ड्राइवर है जिसे दोषी पाए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर जमानत मिल जाती है जबकि वह फिल्मी कलाकार का ड्राइवर न हो? कौनसा व्यक्ति होगा जिसे जमानत अर्जी के पहले ही दिन बिना दूसरे पक्ष को नोटिस दिए जमानत मिल जाती है यदि वह बड़ा राजनेता न हो। यह शर्मनाक है। 

"जजों की शपथ मजाक बन कर रह गई" वे यहीं नहीं रूके और कहाकि, कोर्ट ने सोहराबुद्दीन मामले के सभी अभियुक्तों और गुजरात दंगों में दोषी पूर्व मंत्री माया कोडनानी को जमानत दे दी जबकि तीस्ता सीतलवाड़ जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को परेशानी झेलनी पड़ी। गुजरात दंगे में हत्या के अभियुक्तों की रिहाई हो जाती है लेकिन राज्य सरकार अपील नहीं करती। एक बार जज बनने के बाद कोई छानबीन नहीं होती। जजों द्वारा ली जाने वाली शपथ मजाक बन कर रह गई है। बेंच ने कहा, सबको एक चश्मे से देखा जा रहा है जस्टिस जेएस केहर, जे चेलमेश्वर, मदन बी लोकुर, कुरियन जोसेफ और आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने इस पर जवाब देते हुए कहाकि, ऎसा पूरा सिस्टम नहीं है लेकिन कुछ लोग गलत हो सकते हैं। जिन जजों की आलोचना की जा रही है वे पहले वकील ही थे। आप सिर्फ कुछ जजों की बात कर रहे हैं लेकिन आप उन सैंकड़ों जजों की बात नहीं कर रहे हैं जो दिन रात इस सिस्टम के लिए काम कर रहे हैं। आप दूसरों के बोझ तले उन्हें भी दबा रहे हैं। जस्टिस केहर ने दवे की बात को खारिज करते हुए इसे लेक्चर करार दिया। उन्होंने कहा पूरी न्यायिक व्यवस्था को एक ही चश्मे से देखा जा रहा है। – 

 

साभार- पत्रिका से