भोपाल। जनमत को तैयार कर बदलाव लाना ही पत्रकारिता का ध्येय है। आज नागरिक पत्रकारिता बड़े स्तर पर पहुँच गई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था बनाये रखने का काम मीडिया को करना है। आप खबर को किस दृष्टिकोण से देख रहे हैं यह आपके व्यक्तित्व को दिखाता है। समाज में विश्वासहीनता बढ़ रही है। एक पत्रकार को अपनी लक्ष्मण रेखा खुद तय करनी चाहिए। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सत्रारंभ कार्यक्रम के द्वितीय दिवस में ‘एक पत्रकार का जीवन’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक श्री के.जी.सुरेश ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आज मीडिया दो युगों में बंट गया है। पहला युग बिफोर गूगल और बाद का युग आफ्टर गूगल का बन गया है। एक अच्छे पत्रकार के लिए देश का साहित्य का अध्ययन बहुत जरूरी है और पत्रकार को निरंतर अध्ययन को जारी रखना चाहिए। श्री के.जी.सुरेश ने कहा कि जो स्वतंत्रता के दिग्गज रहे हैं वही मीडिया के रोल माडल हैं। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि मिशन के तहत कलम की ताकत समझें। उन्होंने कहा कि जो बे-आवाज हैं उनकी आवाज बनना ही आधुनिक पत्रकारिता का उद्देश्य है। महापुरूषों ने संघर्ष, बदलाव के लिए अखबार को माध्यम बनाया। हमें भी ऐसे ही पत्रकारिता करनी चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि पत्रकार बनना है तो मिशन तय करें।
पेसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर के अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने मीडिया प्रबंधन की शिक्षा के महत्व पर वक्तव्य देते हुए कहा कि आज सामाजिक मूल्यों और जीवन के बोध आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अस्मिता, आत्मविश्वास और अडिग रहना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। प्रो. शर्मा ने प्रगतिशील लेखन और आदर्शवादी लेखन में अंतर करते हुए अनुपातिकता के साथ लेखन करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों के द्वारा विरासत में मिले समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी हमारी है, हम अपने आपको ग्लोबल पर्सन बनाएं एवं शारीरिक मजदूरी करने से बचें। आज का समय नालेज पावर का है। उन्होंने विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं को कई उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कहा कि आज का समय मीडिया प्रबंधन की शिक्षा का है। यह आपको तय करना है कि सत्या नाडेला बनना है या फिर गुजरात के खेड़ा जिले के 126 किसानों की तरह एक अमूल ब्राण्ड के जैसा बनने का सपना देखना है। विज्ञापन एवं मार्केटिंग के क्षेत्र में कॅरियर स्थापित करने के लिए क्रिएटिव एवं व्यवहारिक ज्ञान का होना आवश्यक है।
‘नया मीडिया और युवा’विषयक द्वितीय सत्र में श्री जयदीप कार्णिक, वेब दुनिया डाटकाम के सम्पादक ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज का युवा पोकिमोन और स्वामी विवेकानंद दोनों ही प्रवृत्ति वाला है। आज का युवा मीडिया में आना चाहता है और उसमें दुनिया के सामने कुछ कर दिखाने की ललक है। हमारे यहाँ मीडिया को स्वतंत्रता के बाद भी एक हथियार की तरह उपयोग किया जाता रहा है। मीडिया का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना समाज का अस्तित्व। इंटरनेट मीडिया की बैकबोन बनकर उभरा है।
श्री कार्णिक ने कहा कि नवीन मीडिया और सोशल मीडिया दोनों में बहुत अंतर है। सोशल मीडिया वरदान के साथ-साथ अभिशाप का रूप भी धारण कर चुका है। एक मीडिया के विद्यार्थी को जवाबदेह पत्रकार बनना चाहिए। सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखने से पहले उसकी जवाबदेही तय होनी चहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को वाट्सएप और फेसबुक के अतिरिक्त ट्विटर और ब्लाग पर भी अपनी आई.डी. बनाना चाहिए। विद्यार्थियों को समझना चाहिए कि ताकत विचारों में है तकनीक में नहीं। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को समाज के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। आने वाले दिनों में संचार के क्षेत्र में बहुत उन्नति होने वाली है। ‘सूचना का अधिकार और मीडिया’विषयक सत्र में डा. हीरालाल त्रिवेदी ने एवं गोपाल दण्डोतिया ने सूचना का अधिकार अधिनियम में उल्लेखित विभिन्न प्रावधानों की जानकारी एवं पत्रकारिता में उसके उपयोग से अवगत कराया।
‘टेलीविजन न्यूज का भविष्य’ विषयक सत्र में श्री शरद द्विवेदी, चैनल हैड, बंसल न्यूज ने कहा कि हर अच्छी चीज तीन चीजों से मिलकर बनती है- उपहास, विरोध एवं स्वीकृति। उन्होंने कहा कि दस साल बाद पत्रकारिता संस्थान मल्टीमीडिया संस्थान के नाम से जाने जाएंगे। भाषा में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। टेलीविजन और वेब भाषा में अंतर समझना होगा। अखबार पर पाठक का रूकने का समय निरंतर कम होता जा रहा है। टेलीविजन और वेब के बीच एक मजबूत रिश्ता कायम हुआ है। न्यूज एजेंसी के फ्लैश की जगह ब्रेकिंग न्यूज ने ली है और अब यह जगह धीरे-धीरे सोशल मीडिया ले रहा है। दीप्ति चैरसिया, ब्यूरो चीफ इंडिया न्यूज ने टी.वी. की पत्रकारिता को आम आदमी की पत्रकारिता बताया और कहा कि वर्सेटाइल के साथ विश्वसनीयता इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
(पवित्र श्रीवास्तव)
निदेशक, जनसम्पर्क
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