किसी भी राष्ट्र – राज्य( देश )के लिए राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण प्रत्यय होता है। तवांग में झड़प/ संघर्ष ने वैश्विक स्तर पर सामरिक संदेश दिया है कि भारत एवं भारतीय सेना अपने क्षेत्र के सुरक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार है ।पीपुल्स लिबरेशन आर्मी( पीएलए) हर साल दो-तीन ऐसी हरकत करती है ।भारत रणनीतिक एवं सामरिक रूप से बेहतर स्थिति में है; इसलिए चीनी सैनिकों को भारत की सीमा में प्रवेश कर पाना मुश्किल होता है ।1962 की बजाय वर्तमान भारत करारा जवाबी हमला कर सकता है ;क्योंकि सामरिक क्षमता के क्षेत्र में भारत अपनी आत्मनिर्भरता को पा चुका है। भारत और चीन की सेनाओं के बीच आपसी सहमति है कि गश्त/पेट्रोलिंग के समय दोनों पक्षों की सेनाओं का कोई भी सैनिक अपने पास बंदूक, पिस्तौल एवं कोई घातक हथियार नहीं रख सकता ,लेकिन परस्पर – सहमति और विश्वास को चीनी सैनिकों ने ही पहले तोड़ा है ।राजनीतिक नेतृत्व की सशक्त ,स्थिर एवं सुरक्षात्मक नीति सैनिकों के उत्साह को सकारात्मक व मुंह तोड़ जवाब देने के लिए सक्षम बना दिया है जिससे चीनी सैनिकों को पीठ दिखाकर भागना पड़ा। चीन दिन प्रतिदिन दुस्साहस कर रहा है जबकि भारत की सामरिक क्षमता जवाबी कार्रवाई के लिए सक्षम है।
इस समय विपक्ष, मीडिया एवं सभी वर्ग को सेना के साथ होकर सेना के मनोबल को बढ़ाना चाहिए ।रक्षा मंत्री का कहना है कि इस फेस- ऑफ (झड़प )में हाथापाई हुई है .भारतीय सेना ने लाल सेना /PLA को उनकी पोस्ट को वापस जाने के लिए बाध्य कर दिया” इस तरह भारत का सामरिक शक्ति संप्रभुता के साथ किसी भी प्रकार का ढिलाई नहीं किया है।
भारत – चीन के बीच सीमा विवाद को समझने के लिए एक निगाह इस तथ्य पर भी देना होगा ,जिससे विवाद के मौलिक कारण को समझा जा सकता है अर्थात भारत – चीन की करीब 35 00 किलोमीटर लंबी सीमा 3 सेक्टरों में विभाजित है ,पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू – कश्मीर 1597 किलोमीटर में है, मिडिल सेक्टर / मध्य सेक्टर यानी हिमालय प्रदेश और उत्तराखंड 545 किलोमीटर है ,पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश 1346 किलोमीटर है, पश्चिमी सेक्टर अक्साई चीन पर भारत अपना दावा करता है, जो 1962 से चीन के कब्जे में है, पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग पर अपना दावा करता है ।चीन मैकमोहन लाइन (रेखा) को भी नहीं मानता है। भारतीय सेना के पूर्व कर्नल और अब बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार के सामरिक मामलों के संपादक के अनुसार” तवांग सेक्टर में हुई झड़प निश्चित तौर पर बहुत गंभीर मामला है ।उनका कहना है कि यह घटना उतनी बड़ी है कि गलवान में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी, जबकि तवांग सेक्टर में 35 सैनिक घायल हुए हैं ,उनमें सात की हालत बहुत ही गंभीर है ,जिनका गुवाहाटी के सैनिक अस्पताल में इलाज करवाया जा रहा है”. चीन मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार 16 से 24 अक्टूबर को हुए कम्युनिस्ट पार्टी के 20 वे अधिवेशन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसकी योजना बनाई थी। यह सोचना कि चीनी सैनिकों ने खुद यह फैसला किए लिए होंगे। यह तथ्य बिल्कुल निराधार है, क्योंकि शी जिनपिंग की इजाजत के बगैर चीन में कुछ भी संभव नहीं हो सकता है ।उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन(SCO) शिखर सम्मेलन में मोदी जी और शी जिनपिंग की एक- दूसरे से किसी भी प्रकार का अभिवादन ना होना रिश्तो के खींचतान की ओर संकेत कर रहा है ,जबकि बाली में हुए जी-20 सम्मेलन में शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी ने परस्पर एक-दूसरे का अभिवादन किया।
विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा झड़प के दो कारण हो सकते हैं ।अमेरिका का एक प्रतिनिधिमंडल चीन जाने वाला है और चीन इससे अपना ध्यान भटका ना चाहता है। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ती निकटता भी सैनिक झड़प का कारण हो सकता है। नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू – कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त किया,जिससे चीन की नाराजगी है, जिसके कारण दोनों राष्ट्र- राज्यों के बीच फेस ऑफ(झड़प) हुआ है ।भारत सरकार के 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के निर्णय से चीनी शीर्ष – नेतृत्व काफी नाराज था ।इसलिए तवांग के झड़प को विस्तृत आयाम से देखने की जरूरत है। इस घटना से चीन भारत एवं वैश्विक स्तर पर यह संदेश देना चाहता है कि भारत चीन के सामने कुछ नहीं है ,और यह सामरिक संकेत देना चाहता है कि चीन के पास इतनी शक्ति है कि वह भारत को सबक सिखा सकता है ,जबकि परिवर्तनशील वैश्विक परिदृश्य में चीन का भारत के प्रति आकलन गलत,अवैज्ञानिक एवं दिवास्वप्न है।
शी – जिनपिंग को कोविड-19 के कारण चीन के अंदर बहुत विरोध का सामना करना पड़ रहा है और घरेलू व अंदरूनी परेशानियों से ध्यान भटकाने के लिए चीनी सैनिकों ने भारत के साथ सीमा पर झड़प करने की कोशिश की है। इससे निपटने का भारत के पास विकल्प क्या है ?भारत के पास राजनीतिक विकल्प कम है ,लेकिन सामरिक क्षमता चीन की तुलना में बराबर है ।चीन के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए भारत में राजनीतिक सहमति का अभाव है। 1962 में भारत और चीन की सैन्य शक्ति के बीच लगभग सामरिक संतुलन था; क्योंकि भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था ,जबकि चीन 19 49 में हुआ था। भारत उप- महाद्वीप शक्ति है, जबकि चीन पिछले 10 सालों से वैश्विक अंतर – महाद्वीपीय शक्ति बनकर उभर चुका है।
नए सीडीएस(CDS) की बहाली के बाद भी सेना के एकीकृत थिएटर कमांड और सैन्य नवीनीकरण के क्षेत्र में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी है।यह समय और सामरिक दोनों दृष्टिकोण से बहुत जरूरी है, जिस पर भारत के नेतृत्व को खासतौर पर ध्यान देना चाहिए। भारत के सामने चीन वैश्विक खतरा है और सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान – प्रशासित कश्मीर (POK)को लेकर राजनीतिक बयानबाजी करने कि बजाय चीन एवं चीनी सैनिकों की तरफ से आनेवाले खतरे को गंभीरता से लेना चाहिए।
भारत को टू – फ्रंट(two front) चीन और पाकिस्तान का सामना करना होता है और इसमें भारत प्रशासित कश्मीर (पीओके )में जारी चरमपंथ को जोड़ दिया जाए तो भारत की एक ही समय में ढाई- फ्रंट का सामना करना पड़ रहा है।इन घटनाओं का सामरिक, कूटनीतिक एवं राजनीतिक विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि भारत और चीन के बीच एकमात्र रास्ता बातचीत (वार्ता ) है,भारत और चीन के बीच सैन्य समाधान संभव नहीं है।
(ये लेखक काअपने निजी विश्लेषण है).