-
लोकतंत्र में आदर्श व्यक्तित्व की उपादेयता
लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए एवं जनता द्वारा शासन व्यवस्था है।लोकतंत्र में शासक और शासित जनता ही है, अर्थात राजनीतिक आभार जनता से है। समकालीन राजनीतिक व्यवस्था व सामाजिक व्यवस्था में लोकतंत्र को शासन का आदर्श, देवत्व एवं ईश्वरीय अवतरण माना जाता है। ईश्वर ही एक ऐसा संप्रत्य है, जो निरपेक्ष है। जब लोकतंत्र […]
-
स्व का राष्ट्र के नवोत्थान में योगदान।
“स्व” की अवधारणा का सुविचार इस अभिमत है कि मानव कल्याण का उत्थान हो ।अधिराज्य (Dominion status) के काल में नागरिक समाज अस्त-व्यस्त था, अर्थात मानवीय व्यक्तित्व में स्थिरता व सामान्य अवस्था की कमी थी ।”स्व” की सुदिर्घ यात्रा प्रत्येक भारतवासी के लिए प्रेरणादायक रहा है । अनार्य व मुस्लिम आक्रांता ओं व आक्रमण के […]
-
लोकतंत्र में आदर्श व्यक्तित्व की उपादेयता
लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए एवं जनता द्वारा शासन व्यवस्था है।लोकतंत्र में शासक और शासित जनता ही है, अर्थात राजनीतिक आभार जनता से है। समकालीन राजनीतिक व्यवस्था व सामाजिक व्यवस्था में लोकतंत्र को शासन का आदर्श, देवत्व एवं ईश्वरीय अवतरण माना जाता है। ईश्वर ही एक ऐसा संप्रत्य है, जो निरपेक्ष है। जब लोकतंत्र […]
-
कार्यपालिका की प्रधानता
संसदीय शासन प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका का विलयन होता है अर्थात कार्यपालिका विधायिका( संसद) के प्रति उत्तरदाई एवं जवाबदेह होती है। संसदीय शासन प्रणाली के अंतर्गत विधायिका कार्यपालिका पर विभिन्न साधनों से नियंत्रण स्थापित करती है। विधायिका का मौलिक कर्तव्य है कि वह सरकार( कार्यपालिका) के कामों पर निरीक्षण और संतुलन रखें; विधायिका कार्यपालिका […]
-
चुनावों में ब्लैक आउट पीरियड की प्रासंगिकता
लोकतांत्रिक मूल्यों से संपन्न, लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षा से युक्त वैश्विक का स्तर के राष्ट्र- राज्य, जिनकी शासकीय व्यवस्था में लोकतंत्र का संप्रत्यय सर्वोपरि हैं । इन राजनीतिक व्यवस्थाओं व संवैधानिक व्यवस्थाओं में सत्ता परिवर्तन जनादेश के माध्यम से होता है। किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में जनादेश व्यवस्था के लिए अनिवार्य वह आवश्यक […]
-
समाज में आरएसएस की भूमिका और इसकी सार्थकता
वर्ष 1925 (27 सितंबर,1925)को विजयदशमी के दिन आर एस एस की स्थापना की गई थी। इसके स्थापना उद्देश्य में राष्ट्र के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित चरित्रवान ,शक्ति संपन्न( ऊर्जावान), विशुद्ध मातृ सेवक की भावना से युक्त व व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होते हैं। आज संघ एक वृहद स्वयंसेवी संगठन के रूप में क्रियान्वित हो चुका है […]
-
परिपूर्णता नीति की प्रासंगिकता
भारत की राजनीति में बेहद निराशाजनक की स्थिति थी कि आजादी के कई दशकों बाद भी भारत के जनता (व्यक्ति व नागरिक) को बैंकिंग (बैंक- सेवा), शौचालय, एलपीजी सिलेंडर ,नल से जल, बिजली कनेक्शन और स्वास्थ्य सेवाएं( टीका के अनुपलब्धि, आम जनता तक औषधि ना पहुंचना )बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाई थी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र […]
-
संसदीय लोकतंत्र में सांसदों का प्रदर्शन
भारत संसार का वृहद लोकतंत्र है ,(जनसंख्या की दृष्टि से),एवं संसदीय जनतंत्र का प्रशिक्षण स्थल है। यह लोकतांत्रिक सफलता की प्रयोगशाला, उद्देश्य पूर्ण, तार्किकता एवं वैज्ञानिक कसौटी पर उतरकर, विस्तृत तार्किक मैराथन व समुद्र मंथन परिचर्चा के पश्चात देश (राज्य) ने संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया और समाजिक पुनः संरचना के लिए दिशा ,गति और […]
-
तकनीकी की उपादेयता
विकसित राष्ट्र की संकल्पना की प्राप्ति तकनीकी की उपादेयता से संभव है। वर्ष 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तकनीकी की अपार उपादेयता है ।निर्माण हब बनाने में” जीरो डिफेक्ट – जीरो इफेक्ट” के उपादेयता को प्रासंगिक बनाना होगा ।तकनीकी की दक्षता व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण और विश्वास बहाली के लिए […]
-
‘3सी’ के साये में सरकार और सुधार
संघात्मक संविधान के अंतर्गत दो प्रकार की सरकारों का निर्माण किया जाता है, अर्थात संसदीय एवं अध्यक्षात्मक सरकार होती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान अध्यक्षात्मक है, संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रधान होता है,अर्थात समस्त कार्यकारिणी/ समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है । अध्यक्षीय प्रणाली में राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता […]