Thursday, April 25, 2024
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एक पत्र रवीश कुमार के नाम

आदरणीय रवीश जी

आदरणीय इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि आपको गालियाँ देते हुए इतने पत्र आते होंगे कि आपने आगे का पत्र पढ़ना बंद ही कर दिया होगा। पर मेरे इस पत्र पर आपका ध्यान खींचना आवश्यक था, इसीलिए ऐसे प्रारम्भ किया। वैसे आज से कुछ समय पहले तक हमेशा आपका आदर ही किया। अन्य न्यूज़ चैनलों को छोड़ कर, हमेशा आपका चैनल ही देखा। प्राइम टाइम के समय का अलार्म भी लगा कर रखा, और जिस दिन स्क्रीन पर आपकी जगह किसी और को पाया, तो उदास भी हुआ।

आपकी राजनीतिक विचारधारा से सहमत नहीं हूँ, फिर भी सदा प्रयासरत रहती हूँ कि आपका दृष्टिकोण समझूँ, आपके चश्मे से हालातों को जानूँ। मदमस्त होकर अंधे समर्थन की जगह, कहाँ कमियाँ रह गईं, कहाँ ध्यान नहीं गया, इत्यादि से परिचित रहूँ। यही कारण था कि अभी तक आपको सुनती-पढ़ती रही।

आपकी शिकायतों को ऐसे नोट किया, जैसे मैं ही प्रधानमंत्री हूँ, और मुझे ही समाधान करना है। इसी क्रम के चलते आपके कोरोना वायरस पर कवरेज देखे। समस्त राजनीतिक विषयों पर आपके एक तरफ़ा झुकाव के पश्चात भी इस महामारी और राष्ट्रीय संकट के समय पर आपको सुनने का साहस किया, इस भरोसे से कि आप इस कठिन समय में देश के साथ खड़े होंगे, और सरकारों के प्रयत्नों को जन-जन तक पहुँचाएँगे।

निष्पक्ष बनकर त्रुटियों को ढूँढेंगे भी एवं जो प्रयास सराहनीय हैं, उनकी प्रशंसा भी करेंगे। अन्य कुछ करें ना करें, जो कोई इस समय राष्ट्रहित में व्यवहार नहीं कर रहा है, उसकी निंदा तो करेंगे। परंतु आपने वही किया जिसके लिए आप जग प्रचलित हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के तत्पर एवं कठोर कदमों की रत्ती भर प्रशंसा किए बिना आप चल पड़े त्रुटियाँ गिनाने, विदेशों से तुलना करने।

मैं अपना परिचय देना भूल गयी। मैं यूरोप के फिनलैंड देश में हूँ, कई वर्षों तक स्पेन में भी रही। मेरे कई मित्र हैं, जो अन्य महामारी प्रभावित देशों में रहते हैं जैसे राकेश दुबे, तरुण गुप्ता अपनी Sarikaa Varshney । यहाँ के आँखों देखी अनुभवों के आधार पर आपको आश्वस्त करना चाहती हूँ कि हमारे भारत की रोकथाम को लेकर तैयारियाँ, इतने कम समय में जुटाई गई व्यवस्थाएँ, एवं चिकित्सा कौशल, अन्य विकसित एवं प्रभावित राष्ट्रों से किसी प्रकार से कम नहीं है। अपितु कई मायनों में भारत द्वारा उठाए गए कदम, अद्वितीय हैं, और कई अन्य देशों की कल्पना के बाहर के हैं।

आप अपने कार्यक्रम के द्वारा जानकारी दे रहे हैं कि कैसे अन्य देशों की तुलना में, भारत में इतने कम टेस्ट किए जा रहे हैं। और इस आधार से भारत में यह संख्या सरकारी आँकड़ों से कहीं अधिक होगी। बिलकुल होगी, लेकिन यह एक मात्र हमारे देश में नहीं है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि जहाँ मैं रहती हूँ, वहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ बिलकुल साँस ना आने जैसी गम्भीर स्थिति में ही अस्पताल को सम्पर्क करने के निर्देश हैं। इसके अलावा यदि आपको कोरोना वायरस संक्रमण सम्बंधित अन्य लक्षण जैसे तेज बुख़ार, जुकाम इत्यादि होता है, तो चुपचाप घर में बैठे रहने के निर्देश हैं, एवं ऐसी स्थिति में भी संक्रमण की पुष्टि करने वाले टेस्ट करने से डॉक्टर मना कर रहे हैं।

भारत में तो जिस मकान या सामुदायिक मिलन समारोह में किसी एक-दो संक्रमित लोगों की जानकारी मिल रही है, तो पूरे प्रतिभागियों की जाँच या उन पर नज़र रखी जा रही है। एक मित्र गुहा बेचैन से मुझे जानकारी मिली कि उसके सहकर्मी को आवश्यक जाँच के लिए बुलाया गया क्योंकि उसका फ़ोन नेटवर्क पिछले कुछ दिनों में निज़ामुद्दीन के इलाक़े में था, जिससे उसके वहाँ होने एवं उसके और उसके निकटतम लोगों के स्वास्थ्य के सम्भावित खतरे की पुष्टि होती है। ऐसा युद्धस्तरीय प्रबंध अन्य किसी देश की कल्पना के बाहर की बात है, जबकि उन देशों में तो जनसंख्या घनत्व अत्यंत कम है, और व्यवस्था बनाना कई गुना आसान।

आप दिखा रहे हैं कि कैसे जर्मनी इत्यादि में पब्लिक ट्रांसपोर्ट यथावत चल रहा है और वहाँ की सरकार मात्र इस निर्देश से कि कोई दो लोग एक दूसरे के पास ना आएँ, से संकट का सामना कर रही है। क्या आपको लगता है कि भारत देश में भी यही व्यवस्था हो जानी चाहिए? जहाँ लोग चिकित्सा सेवक पर थूक रहे हैं, क्वॉरंटीन वार्ड में आपत्तिजनक एवं अश्लील व्यवहार कर रहे हैं, वहाँ सुगम रूप से सुविधाएँ चला देनी चाहिए?

भारत में जाँच किए जाने वाली संख्या से भारत की कुल जनसंख्या का भाग करके कम प्रतिशत निकाल अन्य देशों से तुलना करना न्यायोचित नहीं है। इन देशों का क्षेत्रफल एवं जनसंख्या हमारे एक राज्य से भी कम है। रही भगदड़ की बात, वह हर जगह होती है। जब अमेरिका ने घोषित किया कि उनके निवासियों को छोड़ किसी अन्य व्यक्ति को यूरोप से आने की अनुमति नहीं है, तब भी भगदड़ मची, यूरोप आए अमेरिकी पर्यटक दस-दस हज़ार डॉलर के विमान टिकट लिए वापिस दौड़े। जबकि यह नियम यूरोप के लोगों के लिए था

उनमें और हम में अंतर मात्र गरीबी का है, भारत की चिंतापूर्ण जनसंख्या का है। जिसके लिए वर्तमान सरकार नहीं, आज तक की सभी सरकारें एवं नागरिक ज़िम्मेदार हैं। अशिक्षा भी सम्बंधित है, पर इसका वर्तमान आपातकाल से सम्बंध नहीं है। इसके प्रति कई वर्षों से प्रयास होना चाहिए था।

रही बात चिकित्सा सामर्थ्य की, तो आपको बता दूँ कि मैं लगभग आधे वर्ष तक स्पेन के कई अस्पतालों में लगातार दाखिल रही और ग़लत निदान के चलते व्यर्थ की कई शल्य चिकित्साओं से गुजरी। अंततः हार मान, और अपने परिवार से अंतिम बार मिल पाने की इच्छा के चलते भारत आयी , और वहाँ के चिकित्सक के कौशल के सहारे स्वस्थ होकर नया जीवन पा सकी ।

आपका नकारात्मक व्यवहार भारतीयों के मनोबल को तोड़ रहा है। ऐसे समय पर अपेक्षित है कि आप अपने माध्यम से हर सिक्के के दोनों पहलू दिखाएँ। अंततः सनम्र निवेदन है कि कृपया जहाँ यथोचित हो, सराहना भी कीजिए, और राष्ट्र के प्रयासों में बाधा डालते मूर्खों को शिक्षित भी।

बाकी, प्राइम टाइम देखना फिर भी जारी रखूँगी , क्योंकि मुझे गर्व है आप पर कि आप से बढ़िया कोई भी इंसान थूक के चाट नहीं सकता हैं। बीच में किसी दिन थूकने वालों और वार्ड में अभद्र व्यवहार करने वालों पर भी प्राइम टाइम कीजिएगा। और हाँ! इस काम के लिए निधि कुलपति जी या नग़मा जी को मत भेज दीजिएगा। आप आएँगे तो आपका देशप्रेम सामने आएगा, और उसे दिखाने में झिझक क्यूँ? अंत में, इन कठिन क्षणों में जोखिम उठाकर अपना कार्य करते रहने के लिए आभार।

एक बात को कहना भूल ही गयी तुम जैसे चिलगोजे युग युगो मे ही एक पैदा होते है,,,,,
साभार- https://www.facebook.com/pages/category/Orchestra/Banshi-dhar-mishra-Neelam-mishra- से

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10 COMMENTS

  1. Aap ne kabhi Kabir Das ka ek dohaa padha hai .
    nindak niyare rakhiye aagan kutir chawaye bin paani sabun bina nirmal hoo suhaaye.

  2. रवीश जी को कई वर्ष सुना, देखा । लगा भी कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा पक्षपात का शिकार है, लेकिन ये भी महसूस हुआ कि दूसरा हिस्सा पिछली कई सरकारों के कई सालों के दोषों को बड़ी आसानी से इस सरकार के माथे पर ऐसे डाल रही है जैसे इस सरकार के पास जादू की छड़ी है जो पलक झपकते ही सारी समस्याएं छूमंतर कर देगी । जो सरकार काम करेगी उसके कई कामों में कुछ ग़लत निर्णय या गलत क्रिन्याव्यन की वजह से टिप्पणी लायक हो ही जाते हैं । बुद्धिमान, बुद्धिजीवी होना चाहिए लेकिन देश प्रथम है यह नहीं भूलना चाहिए और समयनुसार टिप्पणी ही बुद्धिजीवी होने की निशानी है, बाकी तो मन का वहम है कि हमारे ज्ञान से सामने वाला पस्त हो जाएगा । अतः याद रहे देश पहले है बुद्धिजीविता बाद में ।

  3. Well done ? mam. Bahut Sahi Kaha. Mr. Ravish has deserved this treatment. He is the only journalist who always put negative feedback on the present central government.
    He never spoken about government good work.

  4. मॅडम पत्र की शुरूवात पढकर लगा के कोई खुले दिमाग की महिला है जो सच्चाई के साथ खडी है पर माफ करना अंधभक्त अलग अंदाज में सामने आ रहे है. रविश जी आप अपना जन जागृती और अनसुने दु:खयारो की आवाज बनकर अपना कर्तव्य बजाते रहे. मां भारती आपके साथ है.
    जय हिंद जय भारत

  5. Aap bilkul sahi kah rahi hain me bhi bahut bada fan thaa inkaa but kuch dino se mujhe inkaa prime time bilkul bhi acchaa nahi lg rahaa is musqeel ki ghdi me to so galtiyoon ko bhi maaf kr k sahyog krnaa chahiye desh k bhale k liye

  6. बंसीधर जी व नीलम जी

    नमस्कार

    अब तो अनेकों बार इसकी प्रतिबद्धता, इसकी मानसिकता, इसकी स्वामिभक्ति किनके प्रति है यह उजागर हो चुका है ! परन्तु क्या है ना ! हमारे देश में यदि किसी की गलत बात पर हजार आदमी अपना क्षोभ प्रकट करते हैं तो दस कुतर्किए उसके पक्ष में जा खड़े होते हैं, उन्हीं दस की शह पर वह बद-दिमाग अपनी हरकतों से बाज नहीं आता ! ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिलते रहे हैं ! रही इसकी, इसके आकाओं की और इस चैनल की बात ! तो प्रणव रॉय व उसके परिवार का इतिहास खंगाला जा सकता है जिससे सारी पोल सामने आ जाती है !

    इस ”रबिश” की तो मजबूरी है हुक्म बजाना और आकाओं के दो बिस्कुटों की चाहत में जबान हिलाना !

  7. एकदम सटीक और सामयिक लेखन….. दरअसल ये अपनेआप को सबसे ऊपर मानने का मुगालते पालने वाले शख्सों में से एक हैं और वर्तमान सरकार के एक भी काम इन्हें फूटी आँखों से भी नहीं सुहाते हैं | आपने मेरे दिल की बात लिख दी…..

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