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‘द काश्मीर फाइल्स’ ने फिल्म निर्माण के नए मानक स्थापित कर दिये हैं
धारा 370 हटती है किन्तु पुष्करनाथ जी जैसे उन सबके पार जा चुके हैं। डिमेंशिया के कारण। मुझे ‘अ क्राई इन द डार्क’ फ़िल्म की याद आई जिसमें नायिका मेरिल स्ट्रिप को रिलीफ़ तो मिलती है मगर तब तक वो पत्थर हो चुकी होती है
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हमारे संविधान में पितरों के प्रति कृतज्ञता की प्रस्तावना क्यों नहीं?
रूस के संविधान की preamble में है। रूस का नाम मैंने सबसे पहले इसलिए लिया कि वह वामपंथ का दुर्ग रहा है। लेकिन वे हमारे यहाँ वालों जैसे नहीं हैं।
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पूरी साड़ी फटी हुई है, नयी किनारी दिल्ली में…
यह तो कवि (उदयन वाजपेयी) हैं जिन्हें साड़ी में अपनी पैरेंटेज का ख़्याल आ जाता है : माँ झीने अँधेरे में डूबती, खाली कमरे में बैठी है।
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फिल्मी दुनिया वालों के पास सब-कुछ है बस संस्कार नहीं है
आलिया भट्ट जी की समझ को लेकर इतने memes बने हैं कि अब वे समझदारी दिखा रहीं हैं।
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मोपला नरसंहार की शताब्दी : क्या गांधीवादियों के पास इन सवालों के जवाब हैं?
तब से इस प्रवृत्ति की नींव पड़ी कि माओ चीन में छींकते थे और जुकाम यहाँ कुछ सज्जनों को हो जाता था। कि बात डेनमार्क की हो या फ़्रांस की, वहाँ का कोरोना यहाँ पर जुलूस ही नहीं निकलवाता, सार्वजनिक संपत्तियों की भी क्षति करवा देता है।
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अदिवासी दिवस एक छलावा है
भारत के जिन लोगों का भारत से मूल सम्बन्ध मिटाने की कोशिश है, उनमें से एक भी जाति, एक भी गोत्र ऐसा नहीं है जो यह कहता हो कि वे अफ़्रीका से या यूरोप से भारत आए थे।
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ब्लूनोज़ से ब्लूटिक की दुनिया बनाम वाचा का निगमीकरण
क्या अभिव्यक्ति के कारपोरेटाइजेशन के ख़तरों के प्रति हम सचेत हैं? अब वे कभी भी किसी को असत्यापित कर रहे हैं, किसी को भी ब्लॉक कर रहे हैं और किसी को भी सावधि निलंबन का दंड दे रहे हैं।
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कला व साहित्य से जुड़े कलाकारों को मदद की ज़रुरत
हम सोचते हैं कलाकार डिजिटली परफ़ॉर्म कर लें। पर हर चीज़ का डिजिटल उत्तर नहीं हो सकता। स्ट्रीमिंग और रिकार्डिंग के अपने खर्चे हैं। वीडियो और साउंड क्रू को जुटाना पड़ता है।