Friday, March 29, 2024
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रामधारी सिंह दिवाकर का कहानी पाठ ‘बनास जन’ द्वारा कार्यक्रम आयोजित

दिल्ली।  'बाबूजी प्रसन्न मुद्रा में बोल रहे थे। और मुझे लग रहा था ,अपने ही भीतर के किसी दलदल में मैं आकंठ धंसता जा रहा हूँ। कोई अंश धीरे धीरे कटा जा रहा था अंदर का। लेकिन बाबूजी के मन में गजब का उत्साह था।' सुपरिचित कथाकार-उपन्यासकार रामधारी सिंह दिवाकर ने अपनी चर्चित कहानी 'सरहद के पार' में सामाजिक संबंधों में आ रहे ठहराव को लक्षित करते हुए कथा रचना में यह प्रसंग सुनाया। मिथिला विश्वविद्यालय में अध्यापन कर चुके प्रो दिवाकर ने हिन्दी साहित्य की पत्रिका 'बनास जन' द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कहानी पाठ किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि छोटे शहर और ग्रामीण परिवेश से आ रहे रचनाकारों के लिए पाठकों तक पहुँचना अब भी चुनौती है। उन्होंने अपनी रचना यात्रा से सम्बंधित संस्मरण सुनाते हुए सामूहिक जीवन के विलोपित हो जाने का त्रास उन्हें आज भी सालता है।

आयोजन के मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सह आचार्य डॉ संजय कुमार ने कहा कि हिन्दी में प्रो रामधारी सिंह दिवाकर के पाठक लम्बे समय से हैं और सारिका, धर्मयुग के दौर से उनकी कहानियां चाव से पढ़ी जाती रही हैं। उन्होंने सामाजिक संबंधों की दृष्टि से उनकी रचनाशीलता को उल्लेखनीय बताया। जीवन पर्यन्त शिक्षण संस्थान में हिन्दी अध्येता डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय ने देश में आंतरिक विस्थापन की स्थितियों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह समस्या बहु आयामी है तथा इसकी जटिलताओं को समझने में दिवाकर जी की रचनाएँ मददगार हो सकती हैं। समीक्षक मनोज मोहन ने प्रो रामधारी सिंह दिवाकर की कथा रचनाओं को बिहार के ग्रामीण अंचल का वास्तविक वर्तमान बताते हुए कहा कि हिन्दी आलोचना को अपना दायरा बढ़ाना होगा। 

भारती कालेज में हिन्दी अध्यापक नीरज कुमार ने प्रो दिवाकर की कथा भाषा को माटी की गंध से सुवासित बताया। आयोजन में युवा आलोचक प्रणव कुमार ठाकुर, डॉ प्रेम कुमार, कुमारी अंतिमा सहित कुछ पाठक भी उपस्थित थे। इससे पहले बनास जन के संपादक पल्लव ने प्रो दिवाकर की रचनाशीलता का परिचय दिया। डॉ पल्लव ने कहा कि उनकी कहानियां समकालीन कथा चर्चा से बाहर हों लेकिन उनमें अपने समय की विडम्बनाओं को देखा जा सकता है।     

आयोजन की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ परमजीत ने कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण बताया गया है किन्तु इस दर्पण की पहुँच जन जन तक सुलभ करने के लिए अनेक स्तरों पर एक साथ सक्रिय होना पड़ेगा। डॉ परमजीत ने बनास जन के इस आयोजन को सार्थक प्रयास बताते हुए कहा कि कला के क्षेत्र में छोटे छोटे कदम भी मानीखेज बन जाते हैं। अंत में बनास जन के सहयोगी भंवरलाल मीणा ने आभार प्रदर्शित किया। 

संपर्क
भंवरलाल मीणा 
सहयोगी संपादक 
बनास जन 
393, कनिष्क अपार्टमेन्ट, सी एंड डी ब्लाक
शालीमार बाग, दिल्ली- 110088
011-27498876

 

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Banaas Jan
393, Kanishka Appartment C & D Block
Shalimar Bagh
Delhi- 110088
Phone- 011-27498876
Mo – 08130072004

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