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स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम चेहरों को सामने लाना जरूरी: प्रो. कुमार रत्नम
एक अन्य सत्र में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज़ के अध्यक्ष प्रो. हीरामन तिवारी, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कश्मीर अध्ययन केंद्र में सहायक प्राध्यापक डॉ. जयप्रकाश सिंह और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय,
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देश के लाखों विद्यार्थियों को पढ़ाया गया गलत इतिहास: प्रो. रघुवेंद्र तंवर
संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र का विषय 'लोक माध्यम और भारत में स्वाधीनता संग्राम' था। इस सत्र को महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल, हरियाणा के कुलपति प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज और आईआईएमसी में सह प्राध्यापक डॉ. राकेश उपाध्याय ने संबोधित किया।
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खादी और गांधी पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो रहे हैं-रघु ठाकुर
उन्होंने कहा कि खादी और गांधी सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे. इस अवसर पर इतिहास लेखक श्री घनश्याम सक्सेना ने अपने पुराने दिनों का स्मरण किया कि कैसे उनका खादी और गांधी से परिचय हुआ. उन्होंने खादी के अर्थशास्त्र को समझाते हुए अनेक किताबों का उल्लेख भी किया. संगोष्ठी में ‘समागम’ का खादी पर एकाग्र अंक का लोकार्पण अतिथि वक्ताओं ने किया।
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इंटरनेट की आंधी में भी पुस्तकों का महत्व है और हमेशा रहेगा
पुस्तकों के महत्व को बताते हुए रेलवे मंडल कोटा से सेवा निवृत इंजीनियर *राम मोहन कौशिक* कहते हैं कि पुस्तक अनुभव संचय व ज्ञान प्रसारण का सुचारू माध्यम है जिस से तार्किक व एकाग्रता शक्ति का बढ़ना,अच्छी नींद आना,अमिट ज्ञान बढाने में मदद मिलती है।
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खादी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 23 अप्रैल को
इस आयोजन में वक्ता के रूप में समाजवादी चिंतक श्री रघु ठाकुर, राजनीतिक विश्लेषक श्री गिरिजाशंकर, इतिहासकार श्री घनश्याम सक्सेना, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश, टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे एवं रोजगार निर्माण के संपादक श्री पुष्पेन्द्रपाल सिंह होंगे
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इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं :रिया गौतम व कृतिका
प्रियदर्शन ने विश्व युद्धों की विभीषिका का उल्लेख करते हुए स्मरण किया कि साहित्य हमारे भीतर उन संवेदनाओं का पोषण करता है जिनसे भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण कर हम बेहतर मनुष्य बन पाते हैं।
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औपनिवेशकता ने हमारा सांस्कृतिक और इतिहास बोध नष्ट किया है – प्रो अभय कुमार दुबे
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 'कितने शहरों में कितनी बार' और 'दिल्ली : शहर दर शहर' सरीखी रचनाएं अंतत: संस्मरण ही मानी जानी चाहिए क्योंकि इनमें लेखक का अपना व्यक्तित्व शहर के दायरे में आता है मुख्य जोर शहर पर नहीं है।
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पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आयोजित युवा संसद में छाया रहा रूस-यूक्रेन युद्ध
युवा संसद की प्रस्तुति के दौरान संसदीय विद्यापीठ की संचालक डॉ. प्रतिमा यादव, जनसंचार विभाग के अध्यक्ष एवं युवा संसद आयोजन के समन्वयक डॉ. आशीष जोशी, एडजंक्ट प्रोफेसर गिरीश उपाध्याय, सांस्कृतिक कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आरती सारंग,
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‘हस्ताक्षर’ पूरे देश के सभी हिंदी विभागों में सबसे विलक्षण प्रयोग है : प्रो. अपूर्वानंद
परिसंवाद के दौरान अतिथियों ने ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका की संपादक प्रो. रचना सिंह और प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय की उपस्थिति में हस्ताक्षर के 22-23वें संयुक्तांक का लोकार्पण किया। प्रख्यात कवि नीलेश रघुवंशी की हस्तलिपि में कुछ कविताओं सहित इस अंक में ‘घर’ विषयक कविताओं का एक चयन मुख्य आकर्षण है।
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‘फैक्ट चैक’ से लगेगी ‘फेक न्यूज’ पर लगाम: अपूर्व चंद्रा
श्री अपूर्व चंद्रा ने कहा कि फेक न्यूज के युग में लोगों तक सही जानकारी पहुंचाना भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों की जिम्मेदारी है। कोरोना के दौर में संचार के मायने बदल गए हैं। लोगों तक सूचनाएं पहुंचाने के नए तरीके सामने आए हैं।