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ताजमहल की सच्चाई जानने के लिए ये पुस्तकें पढ़िये
आजादी के बाद से 'लाल टिड्डे इतिहासकारों' के लिखे इसी तरह के गलत इतिहास को पढ़ाया जा रहा है, और यही झूठ पढ़ा कर तथाकथित सेक्यूलर नौकरशाही तैयार की जा रही है। राम मंदिर पर भी कोर्ट में कम्युनिस्ट इतिहासकार अपने लिखे झूठ का संदर्भ नहीं दे पाए थे।
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दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करने वाला भारतीय वाङ्मय
राजा सुदर्शन के तीन बेटे थे, बाहुशक्ति, उग्रशक्ति, और अनंतशक्ति। राजा तो अच्छे थे लेकिन तीनों राजकुमार बड़े ही उज्जड किस्म के थे। परेशान राजा ने एक दिन दरबारियों से पूछा, किस तरह बच्चों को सही रास्ते पर लाया जाए? ऐसे तो ये नाश कर देंगे।
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मुहम्मद कुली खान बन चुके नेतोजी पालकर का छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा शुद्धिकरण
१८ अगस्त १६६६ के दिन जब शिवाजी महाराज अपने बुद्धि-चातुर्य और साहस से आगरा में औरंगज़ेब की कैद से मुक्त होकर भाग निकले, तब नेतोजी पालकर मुगल मनसबदार होने से शिवाजी महाराज को कैद से भगाने में उनकी भी कुछ न कुछ भूमिका रही होगी,
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भारत के मार्क्सवादी इतिहासकारों के पापों की कहानी अनंत है
जब श्री अरुण शौरी की पुस्तक “Eminent Historians” ने भारत के बौद्धिक जगत में तहलका मचाना शुरु कर दिया तब पहले तो इन मार्क्सवादी इतिहासकारों ने वही पुराना अहंकारी और पाखंडी रुख अपनाया कि “यह शौरी कौन है?
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संस्कृत हमारे देश की मातृभाषा है
संस्कृत को मातृभाषा कहना यद्यपि स्पष्टतया ईश्वरीय ज्ञान वेद में पक्षपात का दोषारोपण करना है, परन्तु जो मनुष्य अज्ञानी हैं उनके लिए क्या किया जाए!
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फुर्सत के सबक’ काव्य संग्रह का लोकार्पण
डॉ. रेणु श्रीवास्तव ने कवयित्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महक उभरती हुई नवांकुर लेखिका है, जो समीक्षा के क्षेत्र (हाडौती और हिन्दी) में भी अपना नाम जुड़ा चुकी हैं ।
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अम्बेडकर जी ने वर्षों पहले जो कहा था उसे मुसलमानों ने सच कर दिखाया…
बाबासाहब ने बड़े ही आग्रह के साथ जनसंख्या की अदला-बदली को प्रतिपादित किया है. ‘पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में सभी मुसलमान और हिंदुस्तान में सभी हिन्दू’ यह उनकी पक्की सोच है. और पूरी आस्था के साथ उन्होंने अपनी इस राय को बार बार दोहराया है.
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भारतवर्ष का इतिहास (3 भागों मे)
प्रायः यह प्रश्न किया जाता है कि उपलब्ध सामग्री के आधार पर भारत का इतिहास नहीं लिखा जा सकता और जो इतिहास है वह राजाओं का इतिहास है न कि जन
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छात्र आंदोलन का इतिहास लिखने वालों ने अभाविप के साथ न्याय नहीं किया
जो यह विद्यार्थी परिषद की यात्रा के साथ एक ध्येय जुड़ा है, हम सब उसके यात्री हैं। इस सतत प्रवाह का रूपांतरण करने का प्रयास पुस्तक में किया गया है। आने वाली पीढ़ियों को विद्यार्थी परिषद ने दिशा दी है।
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“याद रहा सब कुछ” आत्ममुग्धता और आडम्बरपूर्ण अतिश्योक्ति से मुक्त उम्दा पुस्तक
साफ कहना सुखी रहना, अपनी बात पर द्रड रहना, काम से काम रखना, अपने मित्रों का हर हाल में ध्यान रखना, सभी का पूरा सम्मान करना, व्यवहार में निष्पक्षता और समानता का बर्ताव, अधीनस्थ से काम पूरा लेना लेकिन उसकी परेशानी को समझ कर यथा सम्भव सहयोग करना और उसके दुख - दर्द में भागीदार बनाना जैसे प्रेरक प्रसंग पुस्तक के महत्व को दुगुनित करते हैं।