Thursday, April 25, 2024
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आचार्य विद्यासागर जी की ‘मूकमाटी’ व्यक्तित्व विकास की अनोखी महाकृति – डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगांव। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के मूकमाटी महाकाव्य पर बहुप्रशंसित शोध कर पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से 1997 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त कर प्रथम पंक्ति के शोधकर्ताओं में अपनी जगह बनाने वाले शहर के शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर अग्रणी महाविद्यालय के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन का कहना है कि ‘मूकमाटी’ व्यक्तित्व विकास की अनोखी महाकृति है। वह आस्था और मानव-मूल्यों का दस्तावेज़ है। युगीन समस्याओं के समाधान का अचूक स्रोत है। वह कविता रूप जीवन के निर्वाह से निर्माण तक दिव्य यात्रा का प्रकाश स्तम्भ है। डॉ. जैन कहते हैं कि ‘कामायनी’ में जयशंकर प्रसाद जी ने जिस प्रकार मानवता के स्वर फूंके हैं, संत-कवि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने ‘मूकमाटी’ में आतंकवाद के अंत व अनन्तवाद के श्रीगणेश से मानवता की जीत का मंगल गान रचा है।

आचार्य प्रवर के संयम स्वर्ण महोत्सव पर अनेक स्थानों पर अपने सारस्वत व्याख्यान के दौरान बिलासपुर में डॉ. जैन ने कहा कि ‘मूकमाटी’ आचार्य श्री विद्यासागर जी के जीवन का अब तक का सार सृजन है। कवि की भावना सर्व मंगल की कामना के रूप में अभिव्यक्त हुई है। ‘मूकमाटी’ में माटी का मौन ही जैसे सब कुछ कहता चलता है। वहीं, अंततः वह लौकिक,आध्यात्मिक और दार्शनिक-नीतियों का त्रिवेणी संगम सिद्ध होती है। डॉ. जैन कहते हैं कि वस्तुतः आचार्य श्री का यह कालजयी महाकाव्य सार्थक पुरुषार्थ की चरम उपलब्धि का मंगल कलश है।

डॉ. चंद्रकुमार जैन ने कहा कि आचार्य प्रवर का मूकमाटी महाकाव्य हिंदी साहित्य ही नहीं, विश्व साहित्य की अभूतपूर्व उपलब्धि है। यह आधुनिक हिंदी काव्य संसार का भी गौरव ग्रन्थ है। इसका पूरा परिवेश मानवतामय है। संयम,समन्वय और सामंजस्य इस ग्रन्थ की आवाज़ है। मूकमाटी, दरअसल आत्म विकास के संघर्ष को हर्ष में बदलने वाला अक्षर-अक्षर सकारात्मक दस्तावेज है। मानव सेवा, करुणा, दया, अहिंसा के मूल्य इस महाकाव्य को आधुनिक सन्दर्भों में प्रासंगिक बनाते हैं। मूकमाटी को सिर्फ पढ़ना पर्याप्त नहीं है बल्कि उसे एक महान तपस्वी, महायोगी, संत कवि की आत्मा के संगीत के रूप में सुनना चाहिए।

डॉ. जैन आगे मर्म भरे शब्दों में कहते हैं – माटी जैसे सबके जीवन से जुड़ी है, वैसे आचार्य विद्यासागर जी का जीवन और सृजन भी सब के लिए है। मूकमाटी के अभुदय और विकास की कहानी है। आदमी के एक अदद इंसान बन जाने की दास्तान है। मूकमाटी महाकाव्य एक कृति मात्र नहीं, व्यक्तित्व के पूर्ण रूपांतरण का राजमार्ग है। अनेक भाषाओं के विद्वान आचार्य श्री के कई भाषाओं में अनूदित इस बहुचर्चित कृति को बीती सदी के हिंदी साहित्य को मौजूदा सदी के जोड़ने वाली एक अनुपम कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। मूकमाटी पर सैकड़ों साहित्यकारों, संस्कृति चिंतकों, दार्शनिकों, विचारकों और कलाधर्मियों ने भी अपनी वाणी मुखर की है। सब का एक ही मत है कि मूकमाटी, जीवन जीने की कला की थाती है।

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