Friday, April 19, 2024
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चंद्रसेन विराट का निधन

हिंदी ग़ज़ल के इतिहास में अग्रजवत चंद्रसेन विराट का 16 नवम्बर 2018 को निधन हो गया। वे हिंंदी के शीर्षस्थ ग़ज़लकारों में थेे। उन्होंने म. प्र. के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में इंजीनियर केे रूप मेंं अपनी सेवा दी और साहित्य सेवा भी करते रहे.।

फलतः वे मजदूर संवर्ग की समस्याओं, गरीबी, समाज में श्रम की अवमानना, संपन्न वर्ग द्वारा शोषण, निर्माण की समस्याओं, देश में व्याप्त मूल्यहीनता, राजनैतिक दिशाहीनता, सामाजिक विडम्बनाओं, पाखंडों तथा अंतर्द्वंदों से भली-भाँति परिचित हैं. विराट की कविता इन सभी रोगों की मानस चिकित्सा शब्द औषधि से करती है. विराट के लिये लेखन यश या धन प्राप्ति का माध्यम नहीं समाज परिवर्तन और समय परिवर्तन का जरिया है. डॉ. सुरेश गौतम के शब्दों में-

‘विराट की गजलों ने गजल को हुस्न, इश्क, मुहब्बत, जाम, सकी, मयखाना की रोमैयत से निकालकर बिजली के नंगे तारों से जोड़ा और अनादर्शी जिंदगी को पारा-पारा बिखरने से बचाया, हिन्दी की बुनावट में ग़ज़ल को बुनकर मनुष्य-समाज को जागरूक किया, खुद का पहरेदार बनाया, संघर्ष का पथ दिया, उड़ने को आकाश.’

मूलतः हिंदी गीतकार विराट ने गीत में दुहराव से बचने, गीत की सीमा से परे व्यक्त होने के लिये आलोड़ित मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिये ग़ज़ल को चुना. डॉ. श्रीराम परिहार के अनुसार-

‘गीत का संकल्पधर्मा कवि गज़ल के देश चला आया..उसे अपनी भाषा दी, नयी स्थापना दी, मुगलकालीन गलियारों से निकालकर हिंदी की हरी दूब पर बैठा दिया, हिंदी में बोलने का तजुर्बा दिया, तर्ज दी.’

हिंदी ग़ज़ल को उर्दू भाषियों द्वारा नकारने की चुनौती का सामना उर्दू ग़ज़ल के रचना विधान पर खरी हिंदी गज़लें रचकर विराट जी ने इस तरह दिया कि हिंदी ग़ज़ल को स्वीकारे जाने के सिवाय अन्य राह ही शेष न रही.

तेरह गीत संग्रहों (मेंहदी रची हथेली, ओ मेरे अनाम, स्वर के सोपान, किरण के कशीदे, मिट्टी मेरे देश की, पीले चाँवल द्वार पर, दर्द कैसे चुप रहे, भीतर की नागफनी, पलकों में आकाश, बूँद-बूँद पारा, सन्नाटे की चीख, गाओ कि जिए जीवन, सरगम के सिलसिले),

११ ग़ज़ल संग्रहों (निर्वसना चाँदनी, आस्था के अमलतास, कचनार की टहनी, धार के विपरीत, परिवर्तन की आह्ट, लडाई लंबी है, न्याय कर मेरे समय, फागुन माँगे भुजपाश, इस सदी का आदमी, हमने कठिन समय देख अहै, खुले तीसरी आँख),

२ दोहा संग्रहों ( चुटकी-चुटकी चाँदनी, अँजुरी-अँजुरी धूप),

५ मुक्तक संग्रहों (कुछ पलाश कुछ पाटल, कुछ छाया कुछ धूप, कुछ सपने कुछ सच, कुछ अंगारे कुछ फुहारें, कुछ मिशी कुछ नीम) तथा

७ काव्य कृतियों (गीत-गंध, हिंदी के मनमोहक गीत, हिंदी के सर्वश्रेष्ठ मुक्तक, टेसू के फूल, कजरारे बादल, धूप के संगमरमर, चाँदनी चाँदनी)
के संपादन से अपने सृजन आकाश को सजा चुके विराट की ग़ज़ल संकलनों का गहन अध्ययन किया!

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