Thursday, April 25, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेइको सिस्टम बनाम ईगो सिस्टम

इको सिस्टम बनाम ईगो सिस्टम

इको सिस्टम और ईगो सिस्टम दोनों ही इस धरती पर जीवन की गुणवत्ता को गहरे से प्रभावित करते हैं।हवा ,पानी ,प्रकाश, मिट्टी और अनन्त रूप स्वरूप की वनस्पतियों से इको सिस्टम अस्तित्व में आया। इको सिस्टम को जीवन का बीज भी कह या मान सकते हैं। इसी तरह मन, विचार, लोभ ,लालसा या इच्छा, समृद्धि- प्रसिद्धि, भाव एवं अभाव के साथ ही शक्ति के निरन्तर विस्तार से ईगो सिस्टम का जन्म हुआ। मनुष्य तो एक तरह से वनस्पति के परजीवी की तरह ही है। वनस्पति के अभाव में मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना ही संभव नहीं है। जीवन के लिए वनस्पति जगत अनिवार्य है।धरती पर वनस्पतियों का अदभुत संसार अस्तित्व में नहीं होता तो मनुष्य जीवन भी संभव नहीं होता। इको सिस्टम का अस्तित्व होने से ही मनुष्य जीवन साकार हुआ। इको सिस्टम ही मनुष्य की जीवनी शक्ति का जन्मदाता है। मनुष्य जीवन के निरन्तर अस्तित्व के लिए इको सिस्टम अनिवार्य है । बिना मनुष्य की उपस्थिति के जो जो भी इलाके इस धरती पर है, वहां का इको सिस्टम अपने आप में प्राण शक्ति या जीवन की ऊर्जा का शुद्धतम स्वरूप हैं।

मनुष्य की बहुतायत वाले धरती के हिस्से इकोसिस्टम को प्रदूषणमुक्त नहीं रख पाते। मनुष्य विहीन धरती के हिस्से अपने मूल स्वरूप में हमेशा शुद्ध प्राकृतिक ही बने रहते हैं। मनुष्य जीवन की अंतहीन प्रदूषणकारी हलचलों से ऐसा लगता है कि इको सिस्टम में बदलाव आ रहा है।पर वाकई में ऐसा कुछ समय तक ही सीमित होता है। जैसे ही मनुष्य की विध्वंसक हलचलों में कमी आती है, इको सिस्टम पुनः यथावत होने की अनन्त क्षमता रखता है।फिर भी मनुष्य मन में यह विचार बार बार आता ही रहता है कि इको सिस्टम में बदलाव होने लगा है। जैसे जैसे आधुनिक मनुष्य समाज पैट्रोल डीजल आधारित वाहनों पर सवार होकर निरन्तर आवागमन करने और प्रदूषणकारी कल कारखानों के साथ रहने का आदी होता जा रहा है। शहरी जीवन में धूल धूएं का साम्राज्य हमेशा कायम रहता है। परिणामस्वरूप शहरी बसाहटों में वायु और ध्वनि प्रदूषण की अति हो गयी है।

करोना काल के लाकडाऊन में जब वाहनों के दैनंदिन उपयोग में बड़े पैमाने पर कमी आयी तो वायुमंडल में मनुष्य जीवन की हलचलों से उत्पन्न प्रदूषण में कमी आयी। नतीजा यह हुआ कि इको सिस्टम पर वाहनों के अतिशय उपयोग से जो तात्कालिक आभासी प्रभाव पैदा हुआ था वह एकाएक कम होने से हमें वायु प्रदूषण के कारण हिमालय की जो दृश्यावलियां लुप्तप्राय हो गई सी लगती थी वे पुनः दिखाई देने लगी।याने उनका अस्तित्व तो था, है और रहेगा भी।पर हमारी अप्राकृतिक हलचलों से हमारी देखने की क्षमता पर तात्कालिक आभासी प्रभाव गहरे से महसूस हुआ।

तन- मन की शक्ति से जब तक मनुष्य समाज की दैनिक जीवन की हलचलों का संचालन होता रहा दुनिया में ईको सिस्टम को लेकर चिंतित होने का भाव नहीं उभरा।अब तन और मन के बजाय उधार की ऊर्जा से चलने वाला रास्ता मनुष्य जीवन का स्थाई भाव बनने लगा तो इको सिस्टम को बचाने की चर्चा होने लगी। इको सिस्टम को ज्यो का त्यों बचाते हुए समूचा मनुष्य जीवन कैसे चलेगा इस पर कई बातें दुनिया में उठने लगी।पर आधुनिक काल में इगो सिस्टम की गिरफ्त में आज के अधिकांश मनुष्य और उनके भांति भांति के विचार आ गये हैं। युद्ध, आपसी विवाद ,असहिष्णुता और राजनीतिक आर्थिक सामाजिक पारिवारिक,धार्मिक , बौद्धिक कलह और मत मतान्तरों के लिए अंतहीन विवादों का सिलसिला ईगो सिस्टम को स्थायी भाव में दिन दूना रात चौगुना गति से बदल रहा है। इसी से हिंसा, आतंकवादी गतिविधियों और तानाशाही पूर्ण मनमानी शासन प्रणाली, मानव जीवन को ईगो सिस्टम के उप उत्पाद के रूप में निरन्तर मिलने लगी हैं।

ईगो सिस्टम ने मनुष्य जीवन को जितना व्यक्तिश:अशांत कर दिया है उससे कहीं ज्यादा सामूहिक रूप से संकुचित और बारहमासी असहिष्णुता का पर्याय बना दिया है। दुनिया भर में मनुष्यों का जीवन ईगो सिस्टम की जकड़बंदी में उलझकर रह गया है। इको सिस्टम शांति और सहज प्राकृतिक जीवन के साकार रूप की तरह है।हवा, मिट्टी, पानी,प्रकाश और जैवविविधता ने जीवन में मानवीय मूल्यों को आगे बढ़ाया। पर अब मनुष्य के मन में हुई विस्फोटक हलचलों ने इको सिस्टम को बचाने का नया सवाल जो खड़ा किया है उसका समाधान तन और मन की शक्ति के इस्तेमाल से मनुष्य जीवन को संचालित करने के प्राकृतिक उपाय में निहित हैं। व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्राकृतिक जीवन अपनाकर ही हम ईको सिस्टम के प्राकृतिक स्वरूप को हमेशा कायम रखने की दिशा में निरन्तर बढ़ सकते हैं। महात्मा गांधी का मानना था कि हमारी धरती मां में प्राणीमात्र की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है पर किसी एक के भी लोभ लालच को पूरा करने की नहीं । इको सिस्टम जीवन की अनिवार्यता है तो ईगो सिस्टम हमारे जीवन का लोभ लालच।

अनिल त्रिवेदी
अभिभाषक, स्वतंत्र लेखक और गांधीवादी विचारक
त्रिवेदी परिसर 304/2भोलाराम उस्ताद मार्ग ग्राम पिपल्या राव, आगरा मुम्बई राजमार्ग इन्दौर (म.प्र.)
Email address [email protected] Mobile number 9329947486

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार