Saturday, April 20, 2024
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कहने का लाजवाब अंदाज़ जिंदगी को परवाज़ दे देता है – डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगाँव। दिग्विजय कालेज के प्रोफेसर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने वैश्विक विपदा और साहित्यकारों की भूमिका विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में कहा कहा कि साहित्यकार अपने समय को इसलिए रचता है कि इंसान का आने वाला समय बेहतर हो। जो जीवन और जगत के कल्याण के पक्ष में रच रहा है वही साहित्य सर्जक है। आज गरीब, कामगार, प्रवासी मजदूरों और आम लोगों को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है वो बहुत दुखी करने वाला है। लेकिन हर दो सुबह के बीच केवल एक रात होती है। वह भी कट जाएगी। यह दूभर समय भी बीत जाएगा और साहित्य ही मानवता को नयी उम्मीद की मंज़िल तक पहुंचाएगा। डॉ. जैन ने कहा कि आतंकित आमजन को बचाने में चिकित्सा विज्ञान काम कर रहा है तो सशंकित मन को उबारने में अच्छा साहित्य बड़ी भूमिका निभा रहा है। अच्छा लिखना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है। कहने का लाजवाब अंदाज़ जिंदगी को परवाज़ दे देता है। साहित्य सकारात्मक ऊर्जा का संचार-सारथी है, जिसकी जरूरत अभी सबसे ज्यादा है।

डॉ. जैन ने कहा कि जो जीने की ललक और सबक दोनों की परवाह करता है वह साहित्यकार होकर भी संत के समान है। साहित्य लोगों के आत्मविश्वास की रक्षा और आत्मशोध की जिज्ञासा का सम्पोषक होता है। डॉ. जैन ने कहा कि वर्तमान समय की विपदा में भी कलमकारों ने यह भूमिका कुशलता से निभायी है। जो सबके हित में हो वह साहित्य और जिस से जीने की राह आसान हो वह श्रेष्ठ साहित्य है। आज मनोयोग से सृजन कर रहा हर साहित्यकार कोरोना योद्धा भी है। साहित्य समाज का दर्पण होता है किन्तु आज उसे समाज की सुरक्षा के लिए पहरेदार के रूप में सामने आना पड़ा है।

सेठ फूलचंद अग्रवाल स्मृति शासकीय महाविद्यालय नवापारा राजिम के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित वेबिनार में मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. केशरीलाल वर्मा, अध्यक्ष डॉ. विनयकुमार पाठक, अहमदाबाद के डॉ. रामगोपाल सिंह, नई दिल्ली की डॉ. रुचिरा ढींगरा, पोलैंड के डॉ. सुधांशु कुमर शुक्ला,मॉरीशस की डॉ. अलका धनपत की सहभागिता और प्रचार्य डॉ. शोभा गावरी के वक्तव्य और डॉ. चंद्रशेखर सिंह की समीक्षा के बाद डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने प्रमुख आमंत्रित टिप्पणीकार के रूप में कहा कि महामारी में अपना ही बंदी बनकर ज़िंदगी को विपदा की तंग गलियों में पहुँचाने में आदमी ने कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी है। कोरोना के भय ने हमें अपने कमरों में कैद कर दिया और जीवन और मन के शांत कोनों पर प्रहार किया है। लेकिन, भयरहित हुए बगैर आप जीवन का आनंद नहीं ले सकते। इसलिए अगर गौर करें तो विपदा ने हमें अपने आप को और साहित्य को बूझने और गुनने का बहुत अच्छा अवसर दिया है।

डॉ. जैन ने कहा कि साहित्यकार इस दौर में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की संरक्षा कर रहे हैं। अवसाद को अवसर में बदल रहे हैं। भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में अचानक से आए इस ठहराव में किताबें और ऑनलाइन उपलब्ध समाग्री सच्ची साथी बनकर उभरी हैं । आभासी या डिजिटल दुनिया अब वास्तविक लग रही है। सूचना व संचार की ताकत का एहसास नए सिरे से हुआ है। इस दौर में शब्दों की धमक और चमक ने अचम्भित कर दिया है। साहित्य के कारण लोग दूर होकर भी पास है। यही साहित्य की मूल प्रतिज्ञा भी है। साहित्य इस समय दुनिया से जुड़े रहने का अनोखा अहसास भी दे रहा है । वैश्विक वेबीनार का कुशल संयोजन और संचालन हिंदी विभगाध्यक्ष डॉ. राजेश श्रीवास ने किया। तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. राजेश्वरी चंद्राकर, डॉ. दीप्ति गोस्वामी और प्रो।जीवनलाल गायकवाड ने सक्रिय सहयोग दिया।

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