Friday, April 19, 2024
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चुप रहने के बदले पाकिस्तान ने अमरीका से माँगा था कश्मीर

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी ब्रूस राइडल की एक नई किताब के अनुसार तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत पर हमला नहीं करने के बदले में अमरीका से कश्मीर की मांग की थी. राइडल ने तीस साल तक सीआईए के साथ काम किया और वो चार अमरीकी राष्ट्रपतियों के सलाहकार भी रहे.

उन्होंने अपनी नई किताब ‘जेएफ़केज़ फ़ारगॉटन क्राइसिस’ में लिखा है कि 1962 में पाकिस्तान पूरी तरह से हमला करने की स्थिति में था और भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान के इस दोतरफ़ा हमले से टूट जाती.

राइडल के अनुसार अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी ने इस पाकिस्तानी हमले को रोकने में निर्णायक भूमिका अदा की.

उनका कहना है कि केनेडी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैरॉल्ड मैकमिलन ने पाकिस्तान पर ये कहते हुए सख़्त दबाव डाला कि अगर वो हमला करता है तो उसे भी चीन की तरह ही हमलावर देश माना जाएगा.

पाकिस्तान का रुख़ था कि चीन और भारत की लड़ाई सरहद की लड़ाई है और इसे शीत युद्ध और कम्यूनिज़म से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन अमरीका इसे एक कम्युनिस्ट ताक़त की तरफ़ से एक लोकतांत्रिक देश पर हमले की तरह देख रहा था.

उन दिनों भारत में अमरीका के राजदूत जॉन गैलब्रेथ कहते हैं कि अयूब ख़ान अमरीकी सुझाव के बिल्कुल ख़िलाफ़ थे लेकिन जब उनसे कहा गया कि राष्ट्रपति केनेडी एक ख़त लिखकर उनसे ये ग़ुज़ारिश करेंगे तो वो सुनने को तैयार हुए लेकिन साथ ही उन्होंने शर्त रखी कि “इसके बदले में अमरीका कश्मीर पर भारत के ख़िलाफ़ सख्त रवैया अपनाने का वादा करे.”

राइडल गैलब्रेथ की डायरी के हवाले से लिखा है: “देखा जाए तो अयूब ख़ान कह रहे थे कि अमरीका और पाकिस्तान एक साथ मिलकर भारत को मजबूर करें कि वो कश्मीर उनके हवाले कर दे, उसी तरह जैसे चीन भारत से ज़मीन हथिया रहा था. ये एक तरह का पाकिस्तानी ब्लैकमैल था.”

भारत और चीन की लड़ाई ऐसे वक्त पर हो रही थी जब अमरीकी राष्ट्रपति केनेडी रूस के ख़िलाफ़ क्यूबा मिसाइल संकट से जूझ रहे थे और उतनी बड़ी समस्या के सामने भारत और चीन के इस तनाव पर वॉशिंगटन में बहुत कम ध्यान दिया जा रहा था.

राइडल के अनुसार इस मामले पर केनेडी के एकमात्र भरोसेमंद सलाहकार राजदूत गैलब्रेथ थे जो नेहरू के इतने करीब माने जाते कि कई लोग उन्हें उनका सलाहकार कहने लगे थे.

किताब के अनुसार अयूब ख़ान ने केनेडी को कोई आश्वासन नहीं दिया और साथ ही इस बात पर नाराज़गी भी जताई कि अमरीका ने पाकिस्तान को बताए बिना ही भारत को चीन के ख़िलाफ़ हथियारों की आपूर्ति की है.

अयूब ख़ान का कहना था कि अमरीका ने पाकिस्तान के साथ किया समझौता तोड़ा है जिसमें उसने 1961 में कहा था कि चीनी हमले के बावजूद अमरीका भारत को पाकिस्तान की मंज़ूरी के बिना फ़ौजी मदद नहीं देगा.

राइडल कहते हैं कि चीन से मिली हार ने नेहरू को हिला कर रख दिया था। राइडल ने लिखा है कि 1962 में पाकिस्तान के हमला न करने की बड़ी वजह ये रही कि अमरीका और ब्रिटेन को नाराज़ करके पाकिस्तान बिल्कुल अकेला पड़ जाता और चीन पर उस वक्त वो भरोसा नहीं कर सकता था.

उनका कहना है कि अमरीका और ब्रिटेन ने पाकिस्तान को ये आश्वासन भी दिया कि युद्ध के बाद वो भारत के साथ बातचीत के ज़रिए कश्मीर समस्या का हल निकालेंगे.

लेकिन युद्ध के बाद जब अयूब ख़ान ने इसकी मांग की तो अमरीकी राजदूत गैलब्रेथ का वॉशिंगटन को जवाब था कि चीन से हार के बाद नेहरू बिल्कुल टूट चुके हैं और घरेलू राजनीति मे उनकी साख़ इस वक़्त ऐसी नही हैं कि वो कश्मीर जैसे मामले पर कोई निर्णयाक फ़ैसला ले सकें.

राइडल ने लिखा है कि भारत के ख़िलाफ़ 1965 की लड़ाई अयूब ख़ान ने अपने बलबूते पर शुरू की थी लेकिन उनकी नाकामी की एक बड़ी वजह बने वो हथियार जो अमरीका ने भारत को चीन के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने को दिए थे.

किताब जारी करते वक्त एक सवाल के जवाब में राइडल का कहना था कि 1962 के बाद एक तरह से पाकिस्तान में ये बात घर कर गई थी कि पाकिस्तान जिस तरह की साझेदारी चाहता है उसमें चीन अमरीका से कहीं ज़्यादा कारगर होगा.

चीन और पाकिस्तान पक्के दोस्त माने जाते हैं लेकिन राइडल कहते हैं कि चीन ने किसी भी लड़ाई में पाकिस्तान की मदद नहीं की है.

साथ ही उनका कहना है, “लेकिन साथ ही उन्हें शायद ये भी याद रखना होगा कि 1965, 1971 और 1999 किसी भी लड़ाई में चीन पाकिस्तान का साथ देने नहीं आया. चीन अपने राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखता है.”

इस युद्ध में नेहरू ने केनेडी को पत्र लिखकर चीन के ख़िलाफ़ मदद मांगी थी और राइडल के अनुसार केनेडी के लिए वो एक बड़े फैसले की घड़ी थी और शायद अमरीका इस युद्ध में कूद पड़ता.
लेकिन केनेडी फ़ैसला लेते उसके पहले ही चीन ने एकतरफ़ा युद्धविराम घोषित कर दिया. राइडल का कहना है कि इस बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि इसकी वजह क्या थी क्योंकि चीन ने इस बारे में कभी कोई बात नहीं की है.

साभार- http://www.bbc.com/hindi/ से

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