Wednesday, April 24, 2024
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जम्मू कश्मीर राज्य में महिलाओं के मूल अधिकारों का भी हनन हो रहा है

मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहमद सईद जी ने जम्मू कश्मीर राज्य के लोगों की दयनीय स्थिति १ मार्च २०१५ को यह कह कर संक्षिप्त में बयान कर दी थी कि जम्मू क्षेत्र के लोग अगर ‘उत्तर हैं तो फिर कश्मीर घाटी के लोग दक्षिण हैं’. जो राज्य कभी भाई चारे के लिए जाना जाता था उस की अगर ६० साल की आज़ादी के बाद ऐसी स्थिति है तो यह बड़ी पीड़ा जनक बात हैजम्मू कश्मीर राज्य के जन-मानस को कभी अनुच्छेद ३७० के नाम पर , कभी भारत के साथ २६ अक्टूबर १९४७ के अधिमिलन (एक्सेशन ) के नाम पर या कभी पाकिस्तान के नाम पर या कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के विवाद या कभी राज्य के विधान में राज्य का स्थाई नागरिक जैसे प्रभ्धानों के नाम पर उलझाए रखा गया है और नेता लोग सत्ता भोग करते रहे हैं.. इस से भी दुःख की बात यह है कि जो दूरियाँ जम्मु क्षेत्र और कश्मीर घाटी के बीच इस राज्य के मुख्य मंत्री मुफ़्ती जी ने बयान करने की कोशिश की है वे जम्मू क्षेत्र और कश्मीर क्षेत्र के लोगों के भारत और भारतीयता की सीमाओं संबधित दृष्टिकोण की भिन्नता की ओर भी इशारा करती हैं .

जम्मू कश्मीर भारत का एक ऐसा राज्य है यहाँ के निवासी पिछले ६ दशक से भी ज्यादा समय से अपने ही नेताओं के ऐसे जाल में फंसें हुए हैं जिस के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस जाल को उन के अपने ही लोगों ने धर्म , राष्ट्रियता और क्षेत्रवाद के तारों से हर दिन कोई नया रंग दे कर बुना है. इस का सब से ज्यादा नुक्सान अगर हुआ है तो इस राज्य के आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर आम जन को हुआ है.

जम्मू कश्मीर के शीर्ष नेता अकसर कहते है कि जम्मू कश्मीर राज्य ने अपनी शर्तों पर अक्टूबर १९४७ में स्वतंत्र भारत के साथ अधिमिलन (एक्सेशन) किया था इस लिए इस राज्य को भारत की अन्य रियासतों के मुकाबले कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है जिन के कारण इस राज्य की सरकार और विधानसभा इस राज्य में रहने वाले भारत के नागरिकों को अलग-अलग श्रेणी में रख सकती है और कुछ श्रेणी में पड़ने वाले भारत के नागरिकों को खास अधिकार दे सकती है. यहाँ तक अधिमिलन पत्र ( इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन ) में अन्य राज्यों से कुछ अलग शर्तें रखी जाने का दावा है , ऐसा तो कुछ भी लिखित में नहीं है क्यों की अधिमिलन पत्र जिस को आम तोर पर इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेस्शन के नाम से जाना जाता है हैं जम्मू कश्मीर राज्य का भी अन्य राज्यों की तरह ही था. हाँ , इतना जरूर है कि जम्मू कश्मीर राज्य सरकार और विधानसभा को भारत के संबिधान के अंतर्गत आज तक मान्य कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जिन से वे इस राज्य में अधिमिलन (एक्सेशन ) २६ अक्टूबर १९४७ से पहले से रहते आ रहे भारत के नागरिकों को आजाद भारत में एक ख़ास श्रेणी में इंकित कर सकती है और उस के लिए अगर चाहे तो भारत के अन्य नागरिकों के मुकावले कुछ खास रियायतें दे सकती है और ऐसा करना दूसरे भारत के नागरिकों के सम्बेधानिक अधिकारों का हनन नहीं समझा जाएगा. यह अधिकार आजाद भारत के संबिधान में १४ मई १९५४ को राष्ट्रपति के आदेश से संशोधन कर के अनुच्छेद 35A नाम का एक नया अनुच्छेद डाल कर भारत के जम्मू कश्मीर राज्य को अधिकृत रूप में दिया गया था .

जम्मू कश्मीर राज्य में २६ अक्टूबर १९४७ को आजाद भारत के साथ हुए अधिमिलन से पहले रहने वाले कुछ भारत के नागरिकों को जम्मू कश्मीर के विधान १९५७ की धारा ६ के अंतर्गत जम्मू कश्मीर का मूल निबासी ( परमानेंट रेजिडेंट ऑफ़ जम्मू कश्मीर ) की श्रेणी में रखा गया और जम्मू कश्मीर का मूल निबासी ( परमानेंट रेजिडेंट ऑफ़ जम्मू कश्मीर ) की श्रेणी वाले भारत के नागरिकों के लिए इस राज्य में सरकारी नौकरी, अचल सम्पति के अधिकार, विधान सभा में आने के अधिकार जैसे विषयों में प्राथमिकता देने की बात रखी गई और ऐसा करने को भारत के संबिधान में “अनुच्छेद 35A” के होने के कारण भारत के अन्य नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन नहीं कहा जा सकता है. पर इस के साथ ही वर्ष १९५७ में इस राज्य में भारत की आज़ादी के पहले के कुछ ऐसे कानून और राजा के समय के सरकारी आदेश भी व्यवहारिक स्तर पर अपनाए गये हैं जिन के अंतरगत १९४७ के बेस्ट पाकिस्तान रेफुजी को अधिकार देना तो दूर की बात है इस राज्य की नारी जाति को भी राज्य के मूल निवासी की श्रेणी में आने के बाद भी भारत के संबिधान में प्राप्त मूल अधिकार जम्मू कश्मीर में पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं हैं.

जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासी की श्रेणी वाले निवासिओं में हिन्दू- मुस्लिम दोनों समुदाए की नारी आती है और जिस प्रकार के कानून इस राज्य में हैं उन के अधीन यदि एक औरत इस राज्य के मूल निवासी के इलाबा किसी अन्य भारत के नागरिक से विवाह करे तो उस के पति और बच्चों को इस राज्य में विशेष अधिकार मिलना तो दूर एक नागरिक के अचल सम्पति रखने, राज्य सरकार की नौकरी करने और राज्य विधान सबह में वोट करने जैसे मूल अधिकार भी जम्मू कश्मीर में नहीं मिलेंगे . एक तरह से इस राज्य की आधी आबादी ‘अपने’ ही बनाए कानून की बजह से मूल और मानवी अधिकारों से बंचित है.

यही नहीं जम्मू कश्मीर के विधान की धारा ८ और ९ में इस प्रकार की त्रुटियों और विवादों को दूर करने का प्रावधान होने पर भी ६ दशक का समय बीत जाने के बाद भी आज तक इस त्रुटि को दूर करने के लिए न ही कोई प्रशासनिक और न ही कोई वैधानिक कदम उठाए गए हैं . आज तक जिस प्रकार से इस राज्य के शीर्ष स्तर के नेताओं ने कुटिल राजनिति का खेल यहाँ के आम आदमी से खेला है उस विश्लेषण करने पर यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के संबिधान में राष्ट्रपति के एक आदेश से १४ मई १९५४ को डाले गए एक नए अनुच्छेद 35A को इस राज्य के नेताओं ने इस राज्य के निवासिओं के हित के लिए कम इस्तेमाल किया है और वोट की राजनिति करने के लिए ज्यादा इस्तेमाल करते हुए जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के लोगों को एक दूसरे का प्रतिद्वंधी जरूर बना दिया है. इतना ही नहीं यह कहना भी गलत नहीं होगा कि किसी हद तक कश्मीर घाटी में तो वोट के व्यापारिओं ने अनुच्छेद 35A में दी गई रियायतों को तो राज्य को भारत से दूर दिखाने के लिए अधिक प्रयोग किया है क्यों कि अगर ऐसा न होता तो कम से कम जम्मू कश्मीर की स्थाई निबासी की श्रेणी वाली भारत की नागरिक नारी के मूल और मानवी अधिकारों के हनन को तो रोका गया होता .

यहाँ तक के डॉक्टर फारूक अब्दुल्लाह भी कह चुके हैं कि वे नारी जाति पर हो रही इस ज्यादती को दूर करना चाहते हैं पर उन के रजनीतिक साथी नहीं करने देते. शायद मुफ़्ती जी की भी यही मजबूरी है. पर किसी को तो इस दिशा में पहल करनी होगी नहीं तो वादविवाद के इस राजनीतिक और कोर्ट-कचेरी के खेल में इस राज्य का ‘स्थाई निवासी’ कहे जाने वाला भारत का नागरिक भी पिस्ता रहेगा. इस समय इस राज्य में पीडीपी और बीजेपी की सरकार है और इस में उप मुख्य मंत्री के पद पर एक साधारण परिवार और दूर दराज के इलाके से जुड़े निर्मल कुमार सिंह जी आसीन हैं जो कई बर्षों तक जम्मू विश्वविद्यालय में प्राध्यपक रहे हैं और इतिहास उन के कार्य क्षेत्र का मूल विषय रहा है. क्यों न यह पहल निर्मल सिंह जी करें. निर्मल सिंह जी अपना ज्ञान और इतिहास की सूझ – भूझ का इस्तमाल कर के विना किसी कठिनाई के जम्मू कश्मीर के विधान में प्राप्त प्रभ्धानों के अंतर्गत ही अपनी सरकार का मार्ग दर्शन कम से कम जम्मू कश्मीर की नारी जाति के मूल अधिकारों का जो हनन हो रहा है उस को दूर करने के लिए कर सकते हैं. निर्मल सिंह जी जैसे बरिष्ठ प्राध्यापक से तो कम से कम यह आशा की जा सकती है. इसी प्रकार की और भी कई बातें हैं जिन के कारण आज के दिन इस राज्य के लोग कई प्रकार के विवादों में फंस गए हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवँ जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार हैं )

(संपर्क [email protected] 09419796096.)

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