Saturday, April 20, 2024
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लखीमपुर खीरीः संयोग नहीं अपितु वर्ग संघर्ष का पुराना प्रयोग है

पिता सुन नहीं सकते, सोचने की क्षमता भी नहीं है। मानसिक अवस्था ऐसी जिसे सभ्य समाज में विक्षिप्त कहा जाता है। वह रे विधाता तेरी लीला? बुढ़ापे की छड़ी बनने वाले सत्ताईस वर्ष के पुत्र की निर्मम हत्या की खबर वह बूढ़ा कैसे सहन कर पाता इससे पहले ही तुमने उसकी सोचने समझने की क्षमता ही छीन ली। भाई को याद कर बार बार बेहोश होती एक बहन। फूस की छत को छेदती हुई सूर्य की रोशनी अभागी माँ के घर के अंधेरे को दूर नहीं कर पा रही जिसके बेटे को किसान आंदोलन के नाम पर तलवारों से गोंद कर व लाठी डंडों दे पीट पीट कर मार दिया गया हो। पास में बैठा छोटा भाई अपने भविष्य के सपनों को बल देने वाले की चिता जला कर लौटा है और मातम भी नहीं मना सकता क्योंकि सामने बड़े परिवार की जिम्मेवारी मुंह बाये खड़ी है। हाय, बाबू जी का दवा कौन लाएगा? बहन का ब्याह कौन करेगा? भाई ड्राइवर था। कुशल नहीं था शायद। वरना अपने पर लाठी-डंडे, तलवार व पत्थरों से हो रहे हमले की पीड़ा को सह लेता किन्तु घबराहट व आत्मरक्षा की डर में उसका पैर एक्सीलेटर पर जा टिक न जाता और गाड़ी के सामने की रक्तपिपासु भीड़ से गाड़ी टकराई न होती तो शायद वह सत्ताईस उम्र का भाई जिंदा होता। या फिर उसे घसीट कर खेत में पीट पीट कर न मारा गया होता बल्कि उसकी आत्मा स्टेरिंग थामे शरीर का साथ गाड़ी के अंदर ही छोड़ देती।

लखीमपुर खीरी में किसानों के नाम पर जो रक्तपात हुआ वह बंगाल में खेतिहर मजदूरों के नाम पर, बिहार में दलितों के नाम पर, झारखंड में संथाल व छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नाम पर वर्षों से होता आया है। जहाँ घटना के सभी आरोप मृतकों पर भी लाद दिए जाते हैं और उसका रक्त से सना मृत शरीर कभी अपने बेकसूर होने के साक्ष्य प्रस्तुत ही न कर पाए। हर मारने वाला अपराधी कभी किसान होता है तो कभी दलित तो कभी आदिवासी। यह चरित्र है उस वर्ग संघर्ष की जिसे चुनिंदा शब्दों व लक्षणा के सहारे महिमा मंडित कर हमें पढ़ाया गया। जिसकी अंतिम परिणति में रक्त, रक्त और केवल बहता रक्त ही प्राप्त होता है। रक्त से सना मानव शरीर कटे अंगों की पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पाता।

गिद्ध नोच नोच उन घावों से रक्तपान कर रहे होते हैं। हर ओर लाल रक्त संघर्ष की गाथा गा रहे हैं। जमीन लाल। आसमान को देखती आंखे लाल। लाल रक्त से लिपटा लहूलुहान शरीर लाल। हर ओर लाल ही लाल। लथपथ, कटे छटे अंगों के साथ अपने इष्ट के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के यथार्थ को देख कर भी नशे में धुत कॉमरेड चिल्लाता है- लाल सलाम। वर्ग संघर्ष की भेंट चढ़ा एक दूसरा कॉमरेड अपने चेहरे से लाल रक्त को पोछता है और जोर से चिल्लाता है- लाल सलाम। फिर उसका शरीर धड़ाम से नीचे गिर जाता है। नीचे जमीन पर फैले लाल रक्त के छींटे दूसरी लाशों पर गिरती हैं और इस कॉमरेड का रक्त दूसरे कॉमरेड के रक्त से मिल कर बहता हुआ उस ड्राइवर के रक्त से मिल जाता है जिसकी मासिक पगार दस्य हजार रुपये मात्र है और परिवार का आकार सात लोगों का।

वह ड्राइवर अपने परिवार का अकेला कमाने वाला है जिसे पोलित द्वारा महंगी कार में घूमने वाला सामंत घोषित कर दिया गया औऱ वर्ग संघर्ष में उसका वर्ग भी निर्धारित कर दिया गया। उसकी सजा भी निर्धारित कर दी गई और सजा दे भी दी गई। उसके आकार को छह इंच छोटा कर दिया गया।

दस हजार मासिक कमाने वाले इस सामंतवादी को वर्ग संघर्ष के सिद्धांतों के अनुरूप ही सजा दे दी गई। मौत की सजा। सजा देने वाले के कई एकड़ जमीन के मालिक होने के बाद भी उसका कॉमरेड होना स्वीकार है क्योंकि वर्ग संघर्ष के इस द्वंद में वह काश्तकारों के साथ है। उन काश्तकारों के साथ है जिसका शोषण भी वह खुद करता है और उसकी लड़ाई भी वह खुद लड़ता है। लड़ाई? हां लड़ाई। दस हजार मासिक कमाने वाले ऐसे सामंतवादी ड्राइवर को पीट पीट कर मौत की सजा देने वाली लड़ाई। लाल क्रांति को संपोषित करने हेतु खेतों में सुस्त पड़ने वाले पूंजीवादी मजदूर को पीटने वाली लड़ाई। अपने बच्चों को विदेश में व्यापार के सिद्धांतों को पढ़ाते हुए देश के उद्योगपतियों के विरुद्ध साम्यवाद की लड़ाई। रक्त पीपासा साम्यवादी चरित्र एक दिन इस कॉमरेड को भी लील लेती है किसी दूसरे वर्ग संघर्ष में। हर बार नेतृत्व करने वाला नया होता है और हर बार उसकी लाश क्षत-विक्षत पड़ी रहती है जिसके चारों ओर घूमते नए कॉमरेड नारा लगाते हैं- लाल सलाम

रक्तपात वाले वर्ग संघर्ष के हर बार असफल होते प्रयासों के बाद इस बार उस कौम का सहारा लिया जा रहा है जो अपने उद्गम की परिस्थितियों व अपने पर हुए हमलों को ही भुला चुका है। वह कौम भूल चुका है कि आज जिनके विरुद्ध वो खड़ा हो रहा है उन्हीं शक्तियों ने ही पंच प्यारे दिए। उन्होंने ही सर पर पग बांधा तो आज इनकी अस्मिता नजर आई। जिस कौम की देशभक्ति पर सवाल नहीं किए जा सकते उनकी नशों में इतना नशा भरा गया कि वह जहर बन देश की संप्रभुता के लिए एक चुनौती बन रहा है। जिस किसानों के नाम पर वह अपने मूल व अपने देश के विरुद्ध खड़ा हो रहा है उस किसान आंदोलन के पीछे की शक्तियां कौन कौन हैं और उसकी मंशा क्या है यह समझने की आवश्यकता है। पंजाब में बढ़ते धर्मांतरण के मामले इस बात की पुष्टि करते हैं कि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के परिणामस्वरूप कश्मीर के बन्द हुए दरबाजे को न खुलता देख भारत विरोधी शक्तियां पंजाब में एक नया मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है। रिलायंस जैसी बड़ी उद्योग समूह को पंजाब में बन्द करवा लाखों के रोजगार छीने गए ताकि समय पर इन बेरोजगारों के हाथों में पत्थर पकड़ाए जा सकें। भारत सरकार को चाहिए कि इन आन्दोलनजीवियों का स्थायी उपाय यथाशीघ्र निकाले।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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