Wednesday, April 24, 2024
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लंदन के डैली मेल ने लिखा- बेशर्म है भारत सरकार!

<p>लंदन से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार &#39;डेली मेल&#39; ने अपनी अपनी वेबसाइट &lsquo;मेल ऑनलाइन टुडे&rsquo; में भारत सरकार को &lsquo;बेशर्म&rsquo; कहा है। &lsquo;मेल ऑनलाइन टुडे&rsquo; की एक खबर की हेडलाइन के मुताबिक- &ldquo;Shameless Union Cabinet approves ordinance to protect convict politicians despite Supreme Court efforts&rdquo; जिसका मतलब है- &ldquo;बेशर्म केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों के बावजूद अपराधी नेताओं को बचाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी&rdquo; दरअसल इस शब्द का प्रयोग वेबसाइट ने इसलिए किया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने मंगलवार को अपराधी नेताओं को बचाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी।</p>

<p>जिसके बाद अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार पहले विधेयक लाई थी, लेकिन वह लोकसभा में अटक गया। माना जा रहा है कि सरकार के पास शीतकालीन सत्र तक इंतजार करने का समय नहीं है क्योंकि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद का मामला फंस रहा है। मसूद को दिल्ली की एक अदालत भ्रष्टाचार के जुर्म में दोषी ठहरा चुकी है। एक अक्टूबर को उन्हें सजा सुनाई जानी है।</p>

<p>चारा घोटाले में आरोपी लालू के मामले में भी 30 सितंबर को झारखंड की सीबीआई अदालत का फैसला आना है। अगर फैसला उनके खिलाफ गया तो भी अध्यादेश से उनकी सदस्यता बची रहेगी। इन परिस्थितियों में आमतौर पर गुरुवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक दो दिन पहले ही बुलाई गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने के लिए बुधवार को अमेरिका रवाना होने वाले हैं। इसलिए आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाकर अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई।</p>

<p>राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद कानूनन कोई अध्यादेश छह महीने तक प्रभावी रह सकता है। लेकिन, इस बीच अगर संसद सत्र पड़ता है तो अध्यादेश को विधेयक के रूप में पेश कर सदन की मंजूरी लेनी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 10 जुलाई को दागी सांसदों-विधायकों को अयोग्यता से बचाने वाली जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।</p>

<p>सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अदालत से दोषी करार होते ही सांसद-विधायक की सदस्यता खत्म हो जाएगी। संसद को अयोग्यता लंबित रखने का कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इस फैसले के खिलाफ दाखिल सरकार की पुनर्विचार याचिका भी शीर्ष अदालत खारिज कर चुकी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू है।</p>
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