Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeचर्चा संगोष्ठी'मीडियम' बदला है, 'मीडिया' नहीं : प्रो. शुक्ल

‘मीडियम’ बदला है, ‘मीडिया’ नहीं : प्रो. शुक्ल

भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पखवाड़े का शुभारंभ

नई दिल्ली। ”कोरोना काल के दौरान भाषाई पत्रकारिता में एक नई सभ्यता का जन्म हुआ है। इस दौर में डिजिटल मीडिया क्षेत्रीय अखबारों का सबसे बड़ा सहयोगी बनकर सामने आया है। डिजिटलाइजेशन ने पत्रकारों और पत्रकारिता को एक नई ताकत दी है।” यह विचार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा हिंदी पखवाड़े के शुभारंभ के अवसर पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने की। इस अवसर पर संस्थान के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, न्यूज 18 मध्य प्रदेश की विशेष संवाददाता सुश्री शिफाली पांडे, राष्ट्रीय सहारा के ब्यूरो चीफ श्री रोशन गौड़ एवं आईआईएमसी के भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो. आनंद प्रधान भी उपस्थित थे।

‘भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता का भविष्य’ विषय पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा कि भाषाई पत्रकारिता का सीधा संबंध क्षेत्रीय आकांक्षाओं से है। क्षेत्रीय पत्रकारिता का स्वरूप जनता और परिवेश की बात करता है। इसलिए उसका प्रसार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के अंदर भाषाई पत्रकारिता कितने बड़े क्षेत्र तक पहुंच रही है, कितने बड़े क्षेत्र का शिक्षण कर रही है, वहां के लोगों की सोच को प्रस्तुत कर रही है, उस पर चर्चा नहीं होने के कारण क्षेत्रीय पत्रकारों और क्षेत्रीय पत्रकारिता में हीनता का भाव उत्पन्न होता है।

‘थिंक ग्लोबल, एक्ट ग्लोबल’ की चर्चा करते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा कि डिजिटल माध्यमों के सहयोग से भाषाई पत्रकारिता ने स्थानीय गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी इस देश में सोचने-समझने की भाषा तो हो सकती है, लेकिन महसूस करने की नहीं। और जिस भाषा के जरिए आप महसूस नहीं करते, उस भाषा के जरिए आप लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते। भाषाई अखबार जनमत बनाने और लोगों में सही सोच पैदा करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं।

इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि भाषाई पत्रकारिता को हम भारत की आत्मा कह सकते हैं। आज लोग अपनी भाषा के समाचार पत्रों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसलिए भाषाई समाचार पत्रों की प्रसार संख्या तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट से जहां सूचना तंत्र जहां मजबूत हुआ है, वहीं भाषाई पत्रकारिता के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुले हैं। प्रो. द्विवेदी के अनुसार वर्ष 2019 में टेलीविजन में 50 प्रतिशत से अधिक, सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्मों में 44 प्रतिशत, समाचार पत्रों के प्रसार में 43 प्रतिशत और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लगभग 30 प्रतिशत, क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेट में वृद्धि देखी गई है।

विषय प्रवर्तन करते हुए आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं हमारी संस्कृति की पहचान हैं। भाषाई विविधता और बहुभाषी समाज आज की आवश्यकता है। हिंदी और भारतीय भाषाओं के विकास के लिए अंतर संवाद बेहद आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में अंतर संवाद की परंपरा बहुत पुरानी है और ऐसा सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। यह उस दौर में भी हो रहा था, जब वर्तमान समय में प्रचलित भाषाएं अपने बेहद मूल रूप में थीं।

सुश्री शिफाली पांडे ने कहा कि भारत का मूल भाव क्षेत्रीय भाषाओं में है। वर्तमान में पत्रकारिता का भविष्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में है। उन्होंने कहा कि भाषा ही है, जो आपको लंबी रेस का घोड़ा बनाती है। एक पत्रकार को उस भाषा में खबर लिखनी चाहिए, जो आम इंसान को समझ में आए, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं भाषा का मूल तो नहीं छूट रहा है।

श्री रोशन गौड़ ने कहा कि भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में 166 समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। कोविड के दौरान इन समाचार पत्रों के प्रसार में कमी आई है, लेकिन इन समाचार पत्रों के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर पाठकों की संख्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषा में रोजगार के अवसर कम हैं। भाषाई पत्रकारिता के सामने यह बड़ी चुनौती है।

प्रो. आनंद प्रधान ने कहा कि भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के भविष्य को हमें वैश्विक संदर्भ में देखना चाहिए। वर्तमान में पत्रकारिता के सामने सिर्फ कारोबार का संकट नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता का संकट भी है। उन्होंने कहा कि भाषाई पत्रकारिता का यह स्वर्णिम युग है। क्षेत्रीय भाषा के पाठकों और दर्शकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डिजटल माध्यमों ने भाषाई पत्रकारिता को एक नई दिशा दी है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. विष्णुप्रिया पांडेय ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रतिभा शर्मा ने किया। वेबिनार में भारतीय जन संचार संस्थान के प्राध्यापकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।

Thanks & Regards

Ankur Vijaivargiya
Associate – Public Relations
Indian Institute of Mass Communication
JNU New Campus, Aruna Asaf Ali Marg
New Delhi – 110067
(M) +91 8826399822
(F) facebook.com/ankur.vijaivargiya
(T) https://twitter.com/AVijaivargiya
(L) linkedin.com/in/ankurvijaivargiya

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार