Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चानोबेल विजेता रज्जाक भारत की नजर में ?

नोबेल विजेता रज्जाक भारत की नजर में ?

इस वर्ष के साहित्यवाले नोबेल पारितोष से नवाजे गये अश्वेत अफ्रीकी प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक गुर्नाह के माध्यम से विश्व के आमजन की विपदा पर मनन होगा। विषय है : विस्थापित, निष्कासित, शरणार्थी, पलायन कर रहे लोग, (काबुल, म्यांमार, हांगकांग के ताजा संदर्भ में)। अपनी किशोरावस्था में अब्दुल रज्जाक स्वभूमि जंजीबार द्वीप में नस्ली उथल—पुथल से उत्पीड़ित हो चुके थे। गोरे अरब मुसलमानों द्वारा समधर्मी अश्वेतों (हब्शी) को संतप्त करना उनकी एक विषादभरी प्रतीति थी। हालांकि इस्लाम समतामूलक मजहब है, जहां कलमा पढ़ते ही सब समान हो जाते हैं। हिन्दुओं जैसा भेदभाव नहीं। पर यह सरासर झूठ निकला। त्वचा के रंगभेद से इस्लाम भी मुक्त नहीं है। बस इसी गुत्थी को सुलझाना ही अब्दुल रज्जाक की कृति का मूलाधार रहा।

फिलवक्त प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक को जानकर उनकी मातृभूमि जंजीबार (तंगानियाका) और भारत के अत्यन्त आत्मीय प्रसंग अनायास मस्तिष्क पटल पर उभर आतें हैं। पड़ोसी राष्ट्र रहे तंगानियाका और द्वीप राष्ट्र जंजीबार दो सदियों के बाद यूरोपीय साम्राज्यवादियों से स्वतंत्र होकर तंजानिया नामक गणराज्य बने थे। तब राष्ट्रपति जूलियस नेरेरे की रहनुमाई में भारत का वह प्रगाढ़ मित्र बना था। नेरेरे ”अफ्रीकी गांधी” कहलाये। अंहिसा के अनन्य आराधक राष्ट्रपति नेरेरे कई मायनों में नेलसन मण्डेला से भी अधिक वरीय रहे। महात्मा गांधी शांति पुरस्कार और नेहरु एवार्ड से भारत द्वारा सम्मानित नेरेरे अफ्रीकी स्वाधीनता क्रान्ति के सृजक रहे। उनका राष्ट्रीय चिंतन था ”उजामा” (देश एक ही परिवार)। किन्तु यह भारत में प्रचलित विकृति (वंशवाद) जैसी नहीं है। समतावादी समाज का पर्याय बना। नेरेरे की इसी उक्ति से प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक अनुप्राणित रहे। वे कहते थे : ”गरीबी से भागना शिक्षा का लक्ष्य नहीं है। गरीबी से लड़ना है।” उसी दौर में ”गरीबी हटाओ” के नारे पर इन्दिरा गांधी पांचवीं लोकसभा (1971) का चुनाव लड़ रहीं थीं। जब वे राजधानी दारे सलाम गयीं थीं तो राष्ट्रपति नेरेरे ने भारतीय प्रधानमंत्री को मोर—मोरनी का जोड़ा भेंट दिया था। नेरेरे और प्रो. अब्दुल रज्जाक दोनों अश्वेत थे पर उनका धर्म पृथक था। ईसाई और इस्लाम।

अपनी पुरस्कृत रचना ”पेराडाइज” (बहिश्त) में अब्दुल रज्जाक इस्लाम के दूसरे पहलू पर भी गौर करते हैं। वे सैटानिक वर्सेज के लेखक सलमान रश्दी के साथी रहे। उनके उपन्यास का पात्र अजीज चाचा अपने सगे भतीजे यूसुफ को एक व्यापारी के पास रेहन रख देता है क्योंकि उसका उधार वह चुका नहीं पाया था। वह सौदागर भी सूद की राशि का भुगतान होने तक इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। जबकि इस्लाम में व्याज लेना गुनाह है। इसीलिये नेक मुसलमान बैंक खातों में जमा राशि पर सूद भी नकारते हैं।

इतनी ऊंचाई छूने के बाद भी अब्दुल रज्जाक अपनी जन्मभूमि जंजीबार में पर्याप्त प्रतिष्ठा, सम्मान और पहचान नहीं हासिल कर पाये। उनकी भांजी अभी तंजानिया के शिक्षा मंत्री की बीवी है। पर अब्दुल रज्जाक की पुस्तकें वहां प्रसारित नहीं हुईं हैं।

यह नोबेल विजेता उल्लेख भी करता रहा कि तंजानिया और भारत का अतीत यूरोपीय साम्राज्यवादियों से ग्रसित रहा। जब पुर्तगाल सम्राट ने गोवा कब्जियाया था उसी कालखण्ड में जंजीबारतंगानियका को भी उसने अपना उपनिवेश बनाया था। पुर्तगाली, फ्रांसीसी, फिर अंग्रेज बारी—बारी से इन भूस्थलों का औपनिवेशक शोषण करते रहे। प्रथम विश्व युद्ध (1914) में जर्मन सम्राट कैसर विल्हेम ने भी इस द्वीप राष्ट्र को अपना गुलाम बनाया था। शोषण किया था। तब भारत बच गया था।

प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक गुर्नाह के इंग्लैण्ड के कैन्ट विश्वविद्यालय में उत्तर—उपनिवेश युग के साहित्य के निष्णात हैं। उनकी डाक्टरेट का विषय भी अंग्रेजी साहित्य की इसी विधा पर है। भारत भी ब्रिटिश उपनिवेश रहा तो था, इसीलिये स्वातंत्र्योत्तर इंग्लिश साहित्य के कई भारतीय लेखक रहे। जैसे आरके नारायण (गाइड, उपन्यास के रचयिता), रवीन्द्रनाथ ठाकुर, विक्रम सेठ, राजा राव, भवानी भट्टाचार्य, मुल्कराज आनन्द, अनिता देसाई, मनोहर मलगांवकर, चेतन भगत आदि। इसी प्रकार राष्ट्रमंडल देशों में कनाडा, आस्ट्रेलिया, जमाइका आदि में भारतीय मूल के लेखक रहे हैं। अर्थात गैरब्रिटिश इंग्लिश लेखकों का अब अलग वैश्विक समाज है। प्रो. अब्दुल रज्जाक को उनमें शीर्ष पद मिल गया है। भारत के साहित्य प्रेमियों को इस उपलब्धि पर गर्व होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

image.png

K Vikram Rao
Mobile: 9415000909
Twitter ID: @Kvikramrao
E-mail: [email protected]

 

 

 

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार