Saturday, April 20, 2024
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बज चुका आरक्षण के खिलाफ पाञ्चजन्य, संकट में भाजपा

समाज के सुधार के पहले क्रम में जातिवाद के समूल नाश के आगे एक राष्ट्र -एक कानून और एक तरह के लाभ की बात रखी जाती थी, राजनीति की सदैव से मंशा तो तरफदारी की रही परन्तु इस बार अनुसूचित जाति,जनजाति की सबलता के लिए बनाये गए अधिकार और संरक्षण की संवैधानिक कवायदों के हो रहे दुरूपयोग के चलते देश का सवर्ण समाज अब की बार नाराज-सा नजर आ रहा है। इस नाराजगी का एक कारण तो आरक्षण का भी समर्थन करना और दूसरा एट्रोसिटी एक्ट के हो रहे दुरूपयोग के बावजूद भी सुधार न करके सवर्ण समाज को कटघरे में खड़ा करना, जिसके कारण सवर्ण समाज खासा नाराज भी है और प्रताड़ित भी।

देशभर में आरक्षण के विरुद्ध चल रही गतिविधियां और ‘नोटा’ के समर्थन की बानगी से निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है कि आरक्षण के विरुद्ध होने वाले समर का पाञ्चजन्य बज ही चुका हैं। आरक्षण देश की सबसे बड़ी त्रासदी ही है, जहाँ अयोग्य व्यक्ति जब ऊँचे पदो पर पहुँच जाते है तो ना समाज का भला होता है और ना ही देश का। आरक्षण के कारण न तो उस तबके का भला होता है न ही आरक्षण का लाभ लेने वाले अन्य जरूरतमंद लोगो का भला कर पाते है। 1950 में जब संविधान बनाया जा रहा था तब आरक्षण को कुछ समय के लिए लागू किया था, क्योंकि बाबा साहब अंबेडकर एक बुद्धिमान व्यक्ति थे, उन्होंने उसी समय इसे कुछ समय के लिए लागू करके सुधार की कवायद की थी। परन्तु कतिपय राजनैतिक कारणों से या कहें वोट बैंक की अपनी विवशता के चलते आज तक इसी आरक्षण के अँधेरे में देश भी है और वे जातियाँ भी जिनके नाम पर भारत के संवैधानिक तवे पर सियासत की रोटियां सेकी जा रही है।

आरक्षण जिस तरह से नौकरशाह पैदा कर रहा है, प्रतिभाओं का दम घुट रहा है। आवाम की प्रतिभावान पौध आरक्षण के कारण कुचली जा रही है, गणित में ३४ प्रतिशत लेकर पास होने वाला लड़का या लड़की यदि गणित का प्राध्यापक बन जायेगा तो क्या आप उससे उम्मीद कर सकते है कि बच्चों को ८० से ज्यादा प्रतिशत लाने के गुर बता भी पाएगा ? सोचो की जिसने कश्मीर देखा ही नहीं वो क्या कश्मीर का हाल लिख पाएगा। इसी आरक्षण की बीमारी ने देश की ५० प्रतिशत से ज्यादा आबादी को पंगु बना दिया है।

आज जो जातिवाद की जो बातें होती है वो सिर्फ़ आरक्षण की मलाई खाने के लिए होती है। क्योंकि कइयों को बिना कुछ किए पाने की आदत जो लग चुकी है। इन जैसे लोगो की वजह से देश आगे नही बढ़ पा रहा क्योंकि बिना ज्ञान के अगर कोई ऊँचे पद पर सिर्फ़ जातिगत प्राप्त सुविधा के हिसाब से जाता है तो वो वहा पर कार्य भी कैसा करेगा? बिना योग्यता के वो पद तो उसने पा लिया परन्तु पद पाने के बाद जिन उत्तरदायित्वों का निर्वाह उसे करना है बिना योग्यता के वो उन उत्तर दायित्वों का निर्वाह नही कर पाता जिससे देश और समाज दोनों का अहित होता है। वर्तमान में तो आरक्षण का भोग करने वाले लोग भी सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते जातियों के नाम पर देश को तोड़ने की बात करते है, इतिहास में ये हुआ और ये हुआ इस तरह की काल्पनिक बातों का हवाला देकर देश को दीमक की तरह खोखला कर रहे है।

बहुमंजिला इमारतों में तो सभी जातियों के लोग सदभाव से रहते है, परन्तु जब स्कूलों में पढने वाले बच्चे अपने सहपाठी की जाति नही जानते और यकायक बड़े होने पर उन्हें ये पता चलता है कि इसकी जाति के कारण कम अंक लाने पर भी यह अफसरशाही तक पहुँच गया है, तब जाकर ये जहर जेहन में घर कर जाता है। जातिवाद को धीरे धीरे अब तक तो खत्म हो जाना था, परन्तु आरक्षण भोगी लोग उसे खत्म नही होने देंगे। क्योंकि ये लोग जानते है कि अगर शोर ना मचाया तो कुछ पीढ़ियों के बाद आने वाली सन्तति भूल जायेगी कि जाति क्या होती है। और ये होने के बाद कही आरक्षण कि मलाई हाथ से ना निकाल जाए और जाति के नाम पर चलने वाले वोट बैंक बंद ना हो जाए। ऐसे लोग अपने ख़ुद के उद्धार के लिए जातिवाद को जीवित रखने का प्रयास कर रहे है।

आरक्षण के साथ जुड़ा ‘एट्रोसिटी एक्ट’ नामक कांटा तो आग में घी डाल ही रहा है। जातिगत आधार पर प्रतिभाओं की हत्या के साथ-साथ अब तो बेगुनाह को भी एट्रोसिटी एक्ट के सहारे बिना जाँच के अपराधी मानने की परंपरा देशभर में सत्तासीन राजनैतिक दल के खिलाफ सवर्ण समाज को एक जुट कर रही है। सत्ता के गलियारे में सवर्ण समाज की हुंकार आगामी आम चुनाव में राजनितिक बिसात को तीतर-बितर कर सकती है।

जिस तरह से देश में एट्रोसिटी एक्ट के दुरूपयोग के मामले सामने आ रहे है, उसके बाद भी अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी यदि आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट की पैरवी कर रहे हो तो सवर्ण समाज का ग़ुस्सा जायज भी है।

वर्तमान में सवर्ण समाज द्वारा राष्ट्रव्यापी अभियान चला कर ‘नोटा’ को वोट डालने की बात कही जा रही है। जिस तरह से ‘नोटा’ के समर्थन की माँग की जा रही है, यदि ऐसा ही रहा तो निश्चित तौर पर नुकसान बीजेपी का ही होगा। इस अभियान से ये तो जाहिर होता है कि सवर्ण वर्ग का कांग्रेस से प्रेम तो नहीं है, यदि होता तो वे कांग्रेस को ही वोट देने की बात करते। परन्तु सवर्ण वर्ग नोटा की वकालत कर रहा है तो निश्चित तौर पर यह भाजपा की हार का हार बन सकता है। आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट का समर्थन करना भाजपा की राजनैतिक चौसर पर उल्टा दांव ही माना जायेगा।

यदि देश में आरक्षण रखना भी है तो आर्थिक आधार पर रखा जाये, जिस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति दयनीय है वो इसका लाभ ले और साथ में यह दर्शाएं की आर्थिक रूप से असक्षम होने के कारण वो शासकीय लाभ में आरक्षण चाहता है। परन्तु जातिगत आधार होना तो सरासर देश में जातिवाद को बढ़ावा देना ही माना जाएगा। जातिगत आरक्षण से उस वर्ग को भी नुकसान ही हुआ है।

इस आरक्षण के बाद जब बात एट्रोसिटी एक्ट की आती है तो देश में ऐसे कई मामले हो रहे है जहाँ जान बुझ कर प्रतिष्ठित लोग भी लाभ लेते हुए सवर्ण पर अनुसूचित जाति जनजाति कानून का सहारा ले कर गैर जमानती प्रकरण दर्ज करवा रहे है। इस पर भाजपा का मौन समर्थन इसी बात की ओर इशारा करता है कि सवर्ण को देश में रहने का अधिकार नहीं है, न ही उसे रहने दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में यदि सवर्ण समाज अपने पारम्परिक नेतृत्व को ठुकराकर ‘नोटा’ या अन्य राजनैतिक विकल्प को को तलाशता है तो गलत भी क्या है। समय रहते भाजपा ने इस कानून की शल्य चिकित्सा नहीं करी तो आगामी चुनाव में सवर्ण समाज की एकता भाजपा की हार का कारण बन सकती है।

डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५
अणुडाक: [email protected]
अंतरताना:www.arpanjain.com

[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान,भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं ]

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