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खूब मनाओ होली- होली खेलने से जितना पानी खर्च होता है उतना ही स्नेह और सद्भाव का रंग चढ़ता है
उन दिनों होली दबे पांव आती थी. और फिर, सर्द सुबह की गरमागरम चाय जैसे पहली चुस्की के साथ ही शरीर में घुलने लगती हैं, वैसे ही घुलने लगती थी – घर में, गली में, मुहल्ले में, शहर में, वातावरण में....