Saturday, April 20, 2024
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वाद-विवाद का विषय नहीं है राष्ट्र : हितेश शंकर

 भोपाल। राष्ट्र वाद-विवाद का विषय नहीं है। इसे भाषण का विषय भी नहीं बनाया जा सकता। यह किसी भी प्रकार का 'इज्म' नहीं है। जन-तंत्र-जमीन राष्ट्र के तत्व हैं लेकिन मात्र इनको जोड़ देने से राष्ट्र नहीं बनता। बल्कि, आत्मीयता का होना जरूरी है। भारत के साथ उसके लोगों की यही आत्मीयता है। ये विचार पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने व्यक्त किए। नया मीडिया मंच और प्रवक्ता डॉट कॉम की ओर से 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सोशल मीडिया' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में श्री शंकर बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। परिसंवाद का आयोजन स्वराज भवन में हुआ। कार्यक्रम में देशभर के पत्रकार-बुद्धिजीवी मौजूद थे।             

श्री शंकर ने संस्कृति, राष्ट्र, समाज और मीडिया के अंर्तसंबंध पर भी अपनी राय जाहिर की। उन्होंने  कहा कि संस्कृति सूक्ष्म, अदृश्य और अनुभवजन्य है। संस्कृति को महसूस किया जा सकता है। इसे अपने भीतर टटोला जा सकता है। मीडिया के संबंध में उन्होंने कहा कि आज धर्म और वर्ग के आधार पर पत्रकारिता की जा रही है, यह ठीक नहीं है। मीडिया का निष्पक्ष होना जरूरी है। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार संतोष मानव ने कहा कि संस्कार से संस्कृति बना है। मीडिया में जहां पूँजीवाद है, वहां राष्ट्रवाद कैसे आ सकता है। भारत, गंगा और गाय को माँ कहने पर लोग हमें साम्प्रदायिक कहते हैं, जबकि साम्प्रदायिक तो वे लोग स्वयं हैं। अपनी वर्षों की संस्कृति का हमें ही तो पालन करना है। वहीं, मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विचारक संजय द्विवेदी ने कहा कि भारत एक सांस्कृतिक अवधारणा है। 

यह अवधारणा जब कमजोर हुई तो समस्याएं आईं। भारत राजाओं का देश नहीं था बल्कि समाज का देश था। इसीलिए यहां कहा गया कि कोउ नृप होये हमें का हानि। महापुरुषों ने कहा है कि राजनीति का सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप जितना कम होगा, उतना ही अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्र की जब बात होती है तो रामराज्य पर आपत्ति क्यों है? जबकि रामराज्य तो आदर्श व्यवस्था है। इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार बृजेश राजपूत ने उदाहरण देते हुए सोशल मीडिया की ताकत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का उपयोग कर युवा अपनी बात प्रभावी ढंग से सबके सामने रख सकता है।             

दूसरे सत्र में 'युवा, राजनीति और सोशल मीडिया' विषय पर वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया ने कहा कि पत्रकार को राज सत्ता की स्वीकृति का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि समाज सत्ता की स्वीकृति का इंतजार करना चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया को शहद लगी दोधारी तलवार बताया और कहा कि इसका उपयोग संभलकर करने की जरूरत है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष मनोरंजन मिश्रा ने युवा और सोशल मीडिया को ताकत बताया और कहा कि  युवा राजनीति की दिशा और दशा दोनों तय कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार दीप्ती चौरसिया ने कहा कि मीडिया में बहुत अंतर आ गया है। मीडिया अब सोशल हो गया है। अब पांच साल इंतजार करने की जरूरत नहीं है बल्कि युवा कभी भी सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीति में परिवर्तन ला सकते हैं। पत्रकार पश्यन्ति शुक्ला ने कहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज के जमाने में लाकर खड़ा कर दिया जाए तो वे भी निराश होंगे कि आज का युवा कर क्या रहा है? युवा अपनी ताकत को पहचाने। जबकि वेब मीडिया के पत्रकार संजीव सिन्हा ने कहा कि मीडिया आज खलनायक की भूमिका निभा रहा है। वैकल्पिक मीडिया को सच सामने लाना चाहिए। इस मौके पर पत्रकार अमरनाथ झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन लेखक एवं पत्रकार शिवानन्द द्विवेदी और आभार प्रदर्शन पृथक बटोही ने किया। इस मौके पर कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सौरभ मालवीय, डॉ. श्रीकांत सिंह, पुष्पेन्द्र पाल सिंह, डॉ. अविनाश वाजपेयी, डॉ. मयंक चतुर्वेदी सहित कई पत्रकार, प्रबुद्ध वर्ग और पत्रकारिता के विद्यार्थी मौजूद रहे।

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