Friday, April 19, 2024
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नौशेरा का शेर मोहम्मद उस्मान की अनसुनी दास्तां, जिनके नाम से खौफ खाता था पाकिस्तान

सियाचिन की बर्फीली चोटियां हों या फिर जैसलमेर की तपती रेत इन सब के बीच जो हमारी सरहदों की सुरक्षा में डंटे रहते हैं वो हैं हमारे भारतीय सेना के वीर। भारत माता के ऐसे ही वीर सपूत थे नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान। मोहम्मद उस्मान के त्याग, बलिदान और देश के लिए उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। नौशेरा के इस शेर ने महज 36 वर्ष की आयु में शौर्य और पराक्रम की ऐसी विजय गाथा लिखी जो भारत के इतिहास में आज भी अजर-अमर है और सदियों सदियों तक रहेगा। ब्रिगेडियर उस्मान ने देश के लिए जब अपने प्राणों की आहुति दी थी तब उनके 36 वें जन्मदिन में सिर्फ 12 दिन बचे थे।

भारतीय सेना के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को ब्रिटिश भारत के आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मोहम्मद उस्मान को ‘नौशेरा के शेर के’ रूप में जाने जाते है। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में जीत हासिल की थी। 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान ने नौशेरा पर अचानक बहुत बड़ा हमला कर दिया। इस हमले के दौरान ब्रिगेडियर उस्मान ने भारतीय सेना का नेतृत्व इतना बेहतर ढंग से किया कि कुछ ही समय में भारतीय सेना ने युद्ध में जीत हासिल कर ली थी।

तभी से मोहम्मद उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाने लगा था। ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी छोटी सी उम्र में ही वो सब हासिल कर लिया था जिसे लोग कई जन्मों तक हासिल नहीं कर पाते। 1948 की जंग में वीरगति को प्राप्त होने वाले ब्रिगेडियर उस्मान सबसे बड़े भारतीय सैन्य अधिकारी थे। उनके बलिदान को 74 वर्ष पूरे हो गए।

1947 में जब दो मुल्कों का बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना की तरफ से ब्रिगेडियर उस्मान को पर्सन ऑफर मिला कि वो पाकिस्तान आर्मी ज्वाइन कर लें। मुसलमान होने की दुहाई देकर भी ब्रिगेडियर उस्मान पर दबाव बनाया गया कि वो पाकिस्तान आर्मी ज्वाइन कर लें। परंतु उस्मान नहीं माने उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि चाहे मेरा धर्म जो भी हो परंतु मेरा देश हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान हो रहेगा। जिन्ना यहां भी नहीं मानें उन्होंने उस्मान को पाकिस्तानी आर्मी का सेनाध्यक्ष बनाने का ऑफर दिया जिसे ब्रिगेडियर उस्मान ने सीधा ठुकरा दिया।

पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग की साजिश 1947 में आजादी के समय ही कर ली थी। आजादी के वक्त दोनों देशों के बीच कई मुद्दों के बीच अहम मुद्दा कश्मीर ही था, जो 1947,1965 और 1999 कारगिल युद्ध की वजह था। यही कारण था कि अगस्त 1947 में भारत ने दुनिया के सामने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने के साथ ही यह भी घोषणा की थी कि भारत देश पाकिस्तान से किसी भी हमले से जम्मू-कश्मीर की रक्षा करेगा। आजादी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान ने भारत पर कई मोर्चों पर हमला करना शुरू कर दिया था।

उस दौरान नौशेरा सेक्टर में एक ऐसा मोर्चा बन रहा था, जहां हमलावर भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब रहे। हालांकि 1 फरवरी 1948 के दिन भारतीय सेना के 50 पैरा ब्रिगेड ने दुश्मन से नौशेरा सेक्टर को वापस जीत लिया और पाकिस्तान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। अक्टूबर 1947 में जब पाक सैनिकों ने जम्मू कश्मीर पर हमला बोला, तब भारत ने उन्हें रोकने के लिए अपने सैनिकों को भेजने का फ़ैसला किया।

लेकिन 7 नवंबर को पाक सैनिकों ने कबाइलियों के भेष में राजौरी पर क़ब्ज़ा कर लिया था और बहुत बड़ी संख्या में हिंदू और सिख महिलाओं का बलात्कार किया और वहाँ रहने वाले सैंकड़ों निर्दोष लोगों का क़त्लेआम किया था। हालांकि 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा में डटे तो हुए थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने उनके आसपास के इलाक़ों में ख़ासकर उत्तर में अपना नियंत्रण बना रखा था। उस्मान पाक सैनिकों को हटाकर चिंगास तक का रास्ता साफ़ कर देना चाहते थे, लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्या में सैनिक नहीं थे। इसलिए उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी।

पाकिस्तान एक खास रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा था। वो पुंछ तक कब्जा कर कश्मीर को भारत से पूरी तरह से काट देना चाहता था। इसी योजना के तहत उसने झंगड़ पर कब्जा कर लिया। झंगड़ पर कब्जा करने से पाकिस्तान को नौशेरा, राजौरी और पुंछ पर नियंत्रण करने में आसानी हो रही थी। युद्ध में भारत को अपनी पकड़ बनाने के लिए पाकिस्तान को यहां से पूरी तरह से बेदखल करना था। क्योंकि धीरे- धीरे पाकिस्तानी सेना नौशेरा को चारों तरफ से घेर रही थी। नौशेरा राजनयिक और सैन्य दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। इसके जरिए पाकिस्तानी सेना पूरे कश्मीर पर कब्जा कर सकती थी। ब्रिगेडियर उस्मान इस बात को अच्छी तरह से समझते थे। वहीं पाकिस्तान को भी मालूम था नौशेरा को फतह किए बिना आगे बढ़ना बेहद मुश्किल है।

6 फ़रवरी, 1948 के दिन सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई थी। क्योंकि उस दिन सुबह 6 बजे उस्मान कलाल पर हमला करने वाले थे, लेकिन तभी उन्हें पता चला कि पाक सेना उसी दिन फिर से नौशेरा पर हमला करने वाली हैं। इस हमले के लिए 11 हजार पाक सैनिकों का गुट शामिल था। पाकिस्तानी सेना की तरफ से 20 मिनट तक हुई गोलाबारी के बाद क़रीब 3 हजार पाक सैनिकों ने तेनधर पर हमला किया था और लगभग इतने ही लोगों ने कोट पर हमला किया। इसके अलावा लगभग 5 हजार पाक सैनिकों ने कंगोटा और रेदियाँ को अपना निशाना बनाया था।

1 राजपूत बटालियन की पलटन ने इस हमले को रोकने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन 27 लोगों की टीम के करीब 24 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। वहीं बचे हुए 3 सैनिकों ने तब तक लड़ना जारी रखा था, जब तक उनमें से 2 सैनिक बलिदान नहीं हो गए। आखिरी में सिर्फ़ एक सैनिक बचा था। तभी वहां दूसरी बटालियन पहुंच गई थी और उन्होंने स्थिति को बदल दिया था। अगर भारतीय सैनिकों को वहाँ पहुंचने में कुछ मिनटों की भी देरी हो जाती, तो तेनधार भारत के हाथ से चला जाता।

नौशेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान की चर्चा भारत में हर जगह होने लगी थी। जेएके डिवीज़न के जनरल ऑफ़िसर कमाँडिंग मेजर जनरल कलवंत सिंह ने एक प्रेस कान्फ़्रेंस कर नौशेरा की सफलता का पूरा श्रेष्य 50 पैरा ब्रिगेड के कमाँडर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को दिया था। हालांकि जब उस्मान को इसका पता चला तो उन्होंने कलवंत सिंह को अपना विरोध प्रकट करते हुए पत्र लिखा कि “इस जीत का श्रेय सैनिकों को मिलना चाहिए, जिन्होंने इतनी बहादुरी से लड़कर देश के लिए अपनी जान दी है। ना कि सिर्फ ब्रिगेड के कमांडर के रूप में उन्हें मिले।

10 मार्च, 1948 को मेजर जनरल कलवंत सिह ने झंगड़ पर पुन: क़ब्ज़ा करने के आदेश दिया था। जिसके बाद जब ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि पूरी दुनिया की निगाहें आप के ऊपर हैं। हमारे देशवासियों की उम्मीदें और आशाएं हमारे प्रयासों पर लगी हुई हैं। हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए। हम बिना डरे झंगड़ पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ेंगे। इस अभियान को ‘ऑपरेशन विजय’ का नाम दिया गया था।

इसको 12 मार्च को शुरू होना था, लेकिन भारी बारिश के कारण इसको 2 दिनों के लिए टाल दिया गया था। जब भारतीय सैनिकों ने पाक सैनिकों के बंकर में पहुंचे थे, तो उन्होंने पाया कि वहाँ खाना पक रहा था और केतलियों में चाय उबाली जा रही थी। जिसके बाद भारतीय सेना ने कार्रवाई की और 18 मार्च को झंगड़ भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया था।

जवानों के साथ ब्रिगेडियर उस्मान की बैठक

ब्रिगेडियर उस्मान हर शाम साढ़े 5 बजे अपने जवानों के साथ बैठक किया करते थे। लेकिन 3 जुलाई 1948 के दिन बैठक आधे घंटे पहले बुलाई गई और जल्दी समाप्त हो गई थी। जिसके बाद शाम 5.45 बजे पाक सैनिकों ने ब्रिगेड मुख्यालय पर गोले बरसाने शुरू कर दिए थे। अचानक उस्मान ने मेजर भगवान सिंह को आदेश दिया कि वो तोप को पश्चिम की तरफ़ घुमाएं और प्वाएंट 3150 पर निशाना लगाए। भगवान ये आदेश सुन कर थोड़ा चकित हुए थे, क्योंकि दुश्मन तो दक्षिण की तरफ़ से फ़ायर कर रहे थे। लेकिन उन्होंने उस्मान के आदेश का पालन करते हुए अपनी तोपों के मुँह उस तरफ़ कर दिए थे।

वहाँ पर पाकिस्तान सेना की ‘आर्टलरी ऑब्ज़रवेशन पोस्ट’ थी। उस्मान के निर्देश का नतीजा ये हुआ कि वहाँ से फ़ायर आना बंद हो गया। गोलाबारी रुकने के बाद सिग्नल्स के लेफ़्टिनेंट राम सिंह अपने साथियों के साथ नष्ट हो गए एरियल्स की मरम्मत करने लगे थे। उस्मान भी ब्रिगेड कमांड की पोस्ट की तरफ़ बढ़ने लगे थे। लेकिन जब उस्मान कमांड पोस्ट के दरवाज़े पर पहुंचकर सिग्नल वालों से बात कर रहे थे। तभी एक गोला पास की चट्टान पर गिरा और उसके उड़ते हुए टुकड़े ब्रिगेडियर उस्मान के शरीर में धँस गए थे और वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उस दिन पूरी रात गोलाबारी हुई और झंगड़ पर करीब 800 गोले दागे गए।

ब्रिगेडियर उस्मान के जनाजे को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में दफनाया गया। भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ मौजूद थे। इसके तुरंत बाद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र देने की घोषणा कर दी गई।

साभार- https://www.jammukashmirnow.com/ से

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